🔸 धार्मिक सहिष्णुता की कब्रगाह बनता बांग्लादेश
बांग्लादेश, जो एक समय भारत से कटकर एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में उभरा था, आज वहां का अल्पसंख्यक हिंदू समाज गहरी पीड़ा और अपमान के दौर से गुजर रहा है। हाल ही में ढाका के खिलखेत इलाके में स्थित श्री श्री दुर्गा मंदिर को इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा घेरना, धमकियाँ देना और फिर जमीनों पर कब्ज़ा जैसे कृत्य ये दर्शाते हैं कि अब वहां मंदिर भी सुरक्षित नहीं बचे हैं। धर्म के नाम पर आक्रोश, और प्रशासन की मूक सहमति, इन घटनाओं को और भी अधिक भयावह बना रही है।
🔸 ढाका में दुर्गा मंदिर को घेरा गया: ‘मंदिर हटा लो, नहीं तो तोड़ देंगे’
ढाका के खिलखेत क्षेत्र में स्थित श्री श्री दुर्गा मंदिर, जो स्थानीय हिंदू समुदाय का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है, को 23 जून 2025 की रात एक मुस्लिम भीड़ ने घेर लिया। उस समय बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर में मौजूद थे। कट्टरपंथियों ने स्पष्ट रूप से कहा, “मंगलवार दोपहर 12 बजे तक मंदिर को खुद हटा लो, वरना हम उसे जमींदोज कर देंगे।” मंदिर में मौजूद भक्तों के अनुसार, धमकी देने वाले लोग ‘धार्मिक आदेश’ का हवाला दे रहे थे और अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय से झुकने की मांग कर रहे थे।
News coming in from #Dhaka of #Bangladesh.
— Hindu Voice (@HinduVoice_in) June 23, 2025
Right now, thousands of Islamists have gathered in front of a Durga Temple in the #Khilkhet area.
Islamists are demanding to remove the Durga Temple from the area because seeing Durga Murti is haram for them.
The administration… pic.twitter.com/FAh1FSonZG
🔸 पुलिस की भूमिका: शांतिदूत या राजनीतिक दबाव में?
इस पूरे घटनाक्रम में बांग्लादेश की पुलिस की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। भीड़ के इकट्ठा होने के बाद पुलिस मौके पर पहुँची जरूर, लेकिन कोई सख्त कदम नहीं उठाया गया। इंस्पेक्टर मोहम्मद आशिकुर रहमान ने बयान में कहा, “हम मामले को शांतिपूर्वक सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं।” उन्होंने इस घटना को सिर्फ एक ‘बहसबाजी’ बताया और अल्टीमेटम जैसी धमकियों को हल्का करने की कोशिश की। क्या प्रशासन भी इस्लामी कट्टरपंथियों के दबाव में है? या फिर हिंदुओं की सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं दी जा रही?
🔸 कूमिला में 1400 साल पुराने चंडी माता मंदिर की जमीन पर कब्ज़ा
एक और गंभीर मामला बांग्लादेश के कूमिला ज़िले से सामने आया है, जहाँ 1400 साल पुराने शिव चंडी माता मंदिर की जमीन पर एक स्थानीय व्यक्ति अब्दुल अली ने कब्जा कर लिया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, अली ने इस जमीन पर टिन का मकान बनाकर उसे ‘पैतृक संपत्ति’ घोषित कर दिया। जब स्थानीय हिंदू महिला चंदना राहुत ने इस अवैध अतिक्रमण का विरोध किया, तो अली और उसके साथियों ने उस पर हमला कर दिया।
News coming in from #Coomilla district of #Bangladesh.
— Hindu Voice (@HinduVoice_in) June 21, 2025
In broad daylight, Islamists are grabbing the land of Sri Sri Chandi Mata temple in #Lalmai area of #Coomilla district.
Islamists are building shops on the lands of the temple. The administration and the Police are not… pic.twitter.com/M7FXCOQNMC
🔸 ऐतिहासिक मंदिर की जमीन हथियाई गई: विश्रामगृह पर कब्जा
शिव चंडी मंदिर समिति के अध्यक्ष दीपक साहा ने बताया कि मंदिर की जमीन सरकारी दस्तावेज़ों में पंजीकृत है और यहाँ हाल ही में एक विश्रामगृह भी बनाया गया था। यह प्रयास श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए किया गया था, लेकिन अब्दुल अली ने न सिर्फ उस भूमि पर कब्जा किया बल्कि वहां निर्माण कर उसे अपनी पारिवारिक सम्पत्ति घोषित कर दिया।
17 जून को स्थानीय हिंदू समाज ने इस कब्ज़े के खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी किया। इसके बावजूद प्रशासन की तरफ से कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई, जो बांग्लादेश के न्यायिक और प्रशासनिक तंत्र की निष्क्रियता को उजागर करता है।
🔸 मुस्ताक नामक कट्टरपंथी की करतूतें: दो मंदिरों पर कब्ज़ा और हत्या की धमकी
बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरपंथियों की मनमानी यहीं नहीं रुकी। एक अन्य मामले में मुस्ताक नामक एक व्यक्ति ने अपने समर्थकों के साथ मिलकर संन्यास मंदिर और राधा गोविंदो मंदिर पर कब्जा कर लिया। हिंदू श्रद्धालुओं को धमकी दी गई कि यदि किसी ने पूजा करने की कोशिश की तो उन्हें जान से मार दिया जाएगा।
16 जून को, मुस्ताक के समर्थकों ने मंदिर कमेटी के अध्यक्ष अतुल चंद्र सरकार पर जानलेवा हमला किया, जिसमें वह गंभीर रूप से घायल हो गए। यह घटना केवल धार्मिक कट्टरता ही नहीं बल्कि योजनाबद्ध आतंक का भी उदाहरण है।
🔸 बांग्लादेश का मौजूदा सामाजिक ताना-बाना: बहुसंख्यकवाद बनाम अल्पसंख्यक अस्तित्व
बांग्लादेश में आज अल्पसंख्यकों, विशेषकर हिंदुओं की स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई है। एक समय था जब यह देश खुद को ‘धर्मनिरपेक्ष’ कहता था, लेकिन अब हालात ये हैं कि मंदिरों को तोड़ने की धमकियाँ आम हो चुकी हैं, ज़मीनों पर कब्जा एक रणनीति बन चुकी है और श्रद्धालुओं को खुलेआम धमकियाँ मिल रही हैं।
इन घटनाओं का मकसद स्पष्ट है — हिंदुओं को डराकर, उनकी धार्मिक आस्थाओं को नष्ट कर, उन्हें बांग्लादेश छोड़ने पर मजबूर करना।
🔸 अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की चुप्पी और भारत की भूमिका
इस तरह की घटनाओं पर संयुक्त राष्ट्र, मानवाधिकार संगठन और यहां तक कि भारत सरकार की भी प्रतिक्रिया बेहद सीमित रही है। यह एक चिंताजनक स्थिति है, क्योंकि ये केवल धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमला नहीं, बल्कि मानवता पर सीधा प्रहार है।
भारत, जो विश्व का सबसे बड़ा हिंदू बहुल राष्ट्र है, उसे इस तरह के अत्याचारों के विरुद्ध मजबूत आवाज उठानी चाहिए। साथ ही, बांग्लादेश को भी यह संदेश देना ज़रूरी है कि धार्मिक सहिष्णुता कोई विकल्प नहीं, बल्कि ज़रूरी शर्त है।
🔸 क्या बचेगा हिंदू समाज? आगे की राह और संघर्ष
बांग्लादेश के हिंदुओं के लिए अब यह लड़ाई केवल अस्तित्व की बन गई है। मंदिरों पर हमला, ज़मीनों पर कब्ज़ा, महिलाओं पर हमला और धार्मिक स्वतंत्रता पर रोक — ये सब संकेत हैं कि वहां का हिंदू समाज एक सुनियोजित सामाजिक सफ़ाए का शिकार हो रहा है।
लेकिन इन सबके बीच उम्मीद की किरण यह है कि वहां के हिंदू अब एकजुट होकर खड़े हो रहे हैं, विरोध कर रहे हैं और अपनी पहचान के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यह संघर्ष एक चेतावनी भी है — अगर अभी नहीं चेते, तो आने वाले वर्षों में बांग्लादेश में हिंदू संस्कृति केवल किताबों में रह जाएगी।
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