25 जून 1975 की रात भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक ऐसा मोड़ साबित हुई, जिसे आज भी 'काला अध्याय' कहा जाता है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में आपातकाल की घोषणा की गई, जो 21 मार्च 1977 तक जारी रहा। इस अवधि ने भारतीय राजनीति, समाज और आम जनता पर गहरा प्रभाव डाला। इस लेख में हम आपातकाल के कारणों, प्रभावों और इसके बाद के घटनाक्रमों की विस्तार से चर्चा करेंगे।
आपातकाल की घोषणा, आधी रात का फैसला :
25 जून 1975 की आधी रात को तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने भारतीय संविधान की धारा 352 के अंतर्गत आपातकाल की घोषणा की। यह कदम इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर उठाया गया था। अगले सुबह, यानी 26 जून को, इंदिरा गांधी ने रेडियो पर आपातकाल की घोषणा की, जिससे समूचे देश को इस निर्णय के बारे में पता चला।
आपातकाल और मौलिक अधिकार :
आपातकाल की घोषणा होते ही भारतीय संविधान के अनुच्छेद 36, 37, 38, 39, 40 और 42 में सूचीबद्ध सभी मौलिक अधिकार निलंबित हो जाते हैं और ये अधिकार तब तक निलंबित रहते हैं जब तक आपातकाल समाप्त नहीं हो जाता। इसके परिणामस्वरूप, कार्यकारी अधिकारी इन अधिकारों के विरुद्ध कोई भी कदम उठा सकते हैं और उसके अनुसार कानून बना सकते हैं। आपातकाल की घोषणा के दौरान भी, राष्ट्रपति के पास संविधान द्वारा प्रदत्त सभी मौलिक अधिकारों को निलंबित करने का अधिकार होता है।
आपातकाल की पृष्ठभूमि :
1.इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला :
कहा जाता है कि आपातकाल की नींव 12 जून 1975 को ही रख दी गई थी। इस दिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को रायबरेली के चुनाव अभियान में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करने का दोषी पाया था और उनके चुनाव को खारिज कर दिया था। इतना ही नहीं, इंदिरा पर छह साल तक चुनाव लड़ने पर और किसी भी तरह के पद संभालने पर रोक भी लगा दी गई थी।
2. राज नारायण द्वारा मामला दाखिल करवाना :
राज नारायण ने 1971 में रायबरेली में इंदिरा गांधी के हाथों हारने के बाद मामला दाखिल कराया था। जस्टिस जगमोहनलाल सिन्हा ने यह फैसला सुनाया था। हालांकि 24 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश बरकरार रखा, लेकिन इंदिरा को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बने रहने की इजाजत दी।
3. इस्तीफे के लिए व्यापक प्रदर्शन :
एक दिन बाद जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा के इस्तीफा देने तक देश भर में रोज प्रदर्शन करने का आह्वाहन किया। देश भर में हड़तालें चल रही थीं। जय प्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई सहित कुछ नेताओं के नेतृत्व में व्यापक विरोध प्रदर्शन किया जा रहा था। इंदिरा आसानी से सिंहासन खाली करने के मूड में नहीं थीं। संजय गांधी कतई नहीं चाहते थे कि उनकी मां के हाथ से सत्ता जाए। उधर विपक्ष सरकार पर लगातार दबाव बना रहा था। नतीजा ये हुआ कि इंदिरा ने 25 जून की रात देश में आपातकाल लागू करने का फैसला लिया।आधी रात इंदिरा ने तत्कालीन राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद से आपाताकाल के फैसले पर दस्तखत करवा लिया।
आपातकाल के कारण :
1.इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला :
12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के खिलाफ फैसला सुनाया, जिसमें उन्हें रायबरेली चुनाव में सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का दोषी पाया गया। इस फैसले ने इंदिरा गांधी की राजनीतिक स्थिति को खतरे में डाल दिया और आपातकाल की घोषणा का एक प्रमुख कारण बना।
2.मुख्यमंत्री एसएस राय की सलाह :
इंदिरा गांधी के प्राइवेट सेक्रेटरी रहे दिवंगत आर.के. धवन के अनुसार पश्चिम बंगाल के तत्कालीन सीएम एसएस राय ने जनवरी 1975 में ही इंदिरा गांधी को आपातकाल लगाने की सलाह दी थी। इमरजेंसी की योजना तो काफी पहले से ही बन गई थी। धवन ने बताया था कि तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को आपातकाल लागू करने के लिए उद्घोषणा पर हस्ताक्षर करने में कोई आपत्ति नहीं थी। वह तो इसके लिए तुरंत तैयार हो गए थे। धवन ने यह भी बताया था कि किस तरह आपातकाल के दौरान मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाकर उन्हें निर्देश दिया गया था कि आरएसएस के उन सदस्यों और विपक्ष के नेताओं की लिस्ट तैयार कर ली जाए, जिन्हें अरेस्ट किया जाना है। इसी तरह की तैयारियां दिल्ली में भी की गई थीं।
2.अपने ही नेताओं का दबाव :
आर.के. धवन के अनुसार आपातकाल इंदिरा के राजनीतिक करियर को बचाने के लिए नहीं लागू किया गया था, बल्कि वह तो खुद ही इस्तीफा देने को तैयार थीं। जब इंदिरा ने जून 1975 में अपना चुनाव रद्द किए जाने का इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश सुना था तो उनकी पहली प्रतिक्रिया इस्तीफे की थी। उन्होंने अपना त्यागपत्र लिखवाया था। उन्होंने कहा था कि वह त्यागपत्र टाइप किया गया। लेकिन उस पर हस्ताक्षर कभी नहीं किए गए। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उनके मंत्रिमंडल के सहयोगी उनसे मिलने आए और सबने जोर दिया कि उन्हें इस्तीफा नहीं देना चाहिए।
3.संजय गांधी का प्रभाव :
इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी भी नहीं चाहते थे कि उनकी मां सत्ता से बाहर हों। संजय गांधी का प्रभाव और उनकी महत्वाकांक्षाएं भी आपातकाल लागू करने के पीछे एक प्रमुख कारण बनीं।
आपातकाल के दौरान की घटनाएं :
1. राजनीतिक दमन
आपातकाल के दौरान सरकारी मशीनरी ने विपक्ष के नेताओं और समर्थकों पर कठोर दमनकारी कार्रवाई की। अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, मुलायम सिंह यादव सहित अनेक विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया।
2.मीडिया पर सेंसरशिप
मीडिया पर कठोर सेंसरशिप लागू कर दी गई थी। सभी अखबारों और समाचार पत्रों को सरकारी निर्देशों का पालन करना पड़ा और सरकार के खिलाफ कोई भी खबर छापने की अनुमति नहीं थी। मीडिया की स्वतंत्रता को पूरी तरह से कुचल दिया गया।
3.जबरन नसबंदी अभियान
संजय गांधी के निर्देश पर जबरन नसबंदी अभियान चलाया गया। हजारों पुरुषों की जबरन नसबंदी कर दी गई, जो मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन था। इस अभियान ने जनता में सरकार के प्रति भारी असंतोष पैदा किया।
4.आपातकाल के परिणाम
1.राजनीतिक परिदृश्य का बदलाव
आपातकाल के बाद 1977 में हुए चुनावों में कांग्रेस पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा। जनता पार्टी ने चुनावों में जीत हासिल की और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। यह पहली बार था जब कांग्रेस के बाहर कोई अन्य पार्टी सत्ता में आई।
2.लोकतंत्र की पुनर्स्थापना :
आपातकाल के खत्म होने के बाद लोकतंत्र की पुनर्स्थापना हुई। आपातकाल की समाप्ति के बाद जनता में लोकतांत्रिक मूल्यों की महत्वपूर्णता और स्वतंत्रता की महत्ता का पुनः आभास हुआ।
3.इंदिरा गांधी की छवि पर असर
आपातकाल ने इंदिरा गांधी की छवि को गहरा धक्का पहुंचाया। हालांकि बाद में उन्होंने 1980 में सत्ता में वापसी की, लेकिन उनकी छवि पर आपातकाल का काला धब्बा हमेशा बना रहा।
इंदिरा गांधी को इमरजेंसी का नही था पछतावा :
इंदिरा गांधी के प्राइवेट सेक्रेटरी रहे दिवंगत आर.के. धवन ने कहा था कि इंदिरा गांधी के मन में इमरजेंसी को लेकर किसी तरह का संदेह या पछतावा नहीं था। यही नहीं, मेनका गांधी को इमरजेंसी से जुड़ी सारी बातें पता थीं। वह हर कदम पर पति संजय गांधी के साथ थीं। वह मासूम या अनजान होने का दावा नहीं कर सकतीं। दिवंगत आर.के. धवन ने यह खुलासा एक न्यूज चैनल को दिए गए इंटरव्यू में किया था।
भारत में 3 बार लागू की गई आपातकाल :
भारत में आपातकाल की घोषणा तीन बार की गई। भारत-चीन युद्ध के दौरान 1962 में पहली बार आपातकाल की घोषणा की गई; भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान 1971 में दूसरी बार आपातकाल की घोषणा की गई; और तीसरी और सबसे विवादास्पद आपातकाल की घोषणा 1975 में इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में की गई।
निष्कर्ष :
आपातकाल भारतीय राजनीति के इतिहास में एक ऐसा समय था जिसने लोकतंत्र और मानवाधिकारों के महत्व को गहराई से उजागर किया। यह अवधि जनता, मीडिया और राजनीतिक नेताओं के लिए कठिन साबित हुई, लेकिन इसके परिणामस्वरूप लोकतंत्र की पुनर्स्थापना और राजनीतिक परिदृश्य का महत्वपूर्ण बदलाव भी हुआ। आपातकाल का यह अध्याय हमें सिखाता है कि किसी भी राष्ट्र में लोकतांत्रिक मूल्यों की सुरक्षा और स्वतंत्रता कितनी महत्वपूर्ण है।

