हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने हाल ही में लोकसभा में शपथ लेने के दौरान "जय फिलिस्तीन" का नारा दिया। यह घटना न केवल राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बनी, बल्कि संवैधानिक और कानूनी दृष्टिकोण से भी सवाल खड़े कर रही है। संविधान के आर्टिकल 102(D) के तहत यह मुद्दा खासकर महत्वपूर्ण हो जाता है।
अपने मजहबी प्रेम के चलते ओवैसी संविधान के उन नियमों का उल्लंघन कर गए जिसके कारण उनकी सदस्यता भी रद्द की जा सकती थी। अब सवाल उठता है कि, जहां एक तरफ विपक्ष भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के छोटे-छोटे मुद्दों को पकड़कर राई का पहाड़ बनाता है, वहीं बीजेपी विपक्षी नेताओं के ऐसे मुद्दों को रेत की तरह हाथ से फिसलने देती है। इसका फायदा विपक्ष पूरी तरह से उठाता है। शायद यही कारण है कि बीजेपी इस बार के लोकसभा चुनाव में 272 के आंकड़े तक भी नहीं पहुंच पाई। यहां पर बीजेपी को ओवैसी का विरोध करते हुए उनकी सदस्यता रद्द करने की मांग को जोर-शोर से उठाना चाहिए था, लेकिन बीजेपी ऐसा करने में चूक गई।

