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केजरीवाल सरकार ने 2015 से नहीं खरीदी एक भी बस हर वर्ष 1000 करोड़ से अधिक का नुकसान

वैसे तो हम सब जानते हैं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल फ्री वाले नेता हैं, जो फ्री में बिजली देते हैं फ्री में पानी देते हैं और शायद इसी का नतीजा है कि दिल्ली परिवहन विभाग यानी डीटीसी 2015 से सालाना हजार करोड़ रुपए से अधिक के घाटे में चल रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली परिवहन विभाग की हालत ऐसी है कि मौजूदा समय में वह एक बस की संख्या बढ़ाने में भी असमर्थ है। आपको जानकर हैरानी होगी कि वर्ष 2015 के बाद दिल्ली परिवहन निगम ने एक भी बस नहीं खरीदी है। 


आम आदमी पार्टी ने इन आरोपों का खंडन किया है :
हालाकी इन तमाम आरोपों का आम आदमी पार्टी की सरकार ने खंडन किया है और बताया है कि, "व्यापक वार्षिक रखरखाव अनुबंध के लिए डीटीसी द्वारा खरीदी जा रही 1000 लो फ्लोर बसों के वीनिर्माताओं को 1000 करोड़ रुपए अतिरिक्त राशि का भुगतान किया जाना है"। विभाग ने इस पर कहा है कि, "दिल्ली इंटीग्रेटेड मल्टीमॉडल ट्रांजिट सिस्टम यानी DIMTS संचालित क्लस्टर योजना के तहत 2015 के बाद 1387 बसों की खरीदी की गई है"।

किस वर्ष कितने घाटे में रही दिल्ली परिवहन विभाग :
आपकी जानकारी के लिए बता दे की पिछले 6 वर्षों में लगातार 1000 करोड़ से अधिक के नुकसान में रही है। अगर हम प्रति वर्ष घाटे की बात करे तो डीटीसी को 2014-15 में 1,019.36 करोड़ रुपए, 2015-16 में 1,250.15 करोड़ रुपए, 2016-17 में 1,381.78 करोड़ रुपए 2017-18 में 1,730.02 करोड़ रुपए और 2018-19 में 1,664.56 करोड़ रुपए का घाटा हुआ। वहीं 2019-20 में 1,834.67 करोड़ रुपए का घाटा लगा है। डीटीसी द्वारा 1000 लो फ्लोर बसों की खरीद का आदेश दो विनिर्माताओं को जारी किया गया था, लेकिन परिवहन विभाग द्वारा प्रक्रिया को रोक दिया गया है। इस हिसाब से आम आदमी पार्टी जिन 1387 बसों की खरीद की बात करती है उसको परिवहन विभाग द्वारा घाटे के कारण पहले ही रद्द कर दिया गया था।

एलजी अनिल बैजल द्वारा गठित समिति ने पाया कॉन्ट्रैक्ट में प्रक्रियात्मक खामियां :
जानकारी के लिए बता दें कि एलजी अनिल बैजल द्वारा एक समिति का गठन किया गया था और इसी समिति ने पाया कि कॉन्ट्रैक्ट में प्रक्रियात्मक खामियां हैं, जो अब कार्रवाई के लिए अब एलजी द्वारा गृह मंत्रालय को भेजा गया है। वही परिवहन विभाग ने बताया है कि, "बसों की वारंटी और उनकी सीएएमसी अलग-अलग चीजें हैं। वारंटी में विनिर्माण दोष शामिल है, जबकि रखरखाव से संबंधित गतिविधियां इसका हिस्सा नहीं है यह सीएएमसी में शामिल है"।

बीजेपी के विधायक विजेंद्र गुप्ता के सवाल पर क्या कहना है परिवहन विभाग का :
गौरतलब है कि भारतीय जनता पार्टी के विधायक विजेंद्र गुप्ता ने सवाल किया था कि बसों पर 3 साल की वारंटी के बावजूद रखरखाव शुल्क के नाम पर 1000 करोड़ रुपए अतिरिक्त क्यों दिए जा रहे हैं ? जिस पर परिवहन विभाग में जवाब देते हुए बताया था कि, "डीटीसी द्वारा जारी निविदाओं के सीएएमसी के नियम और शर्तें समान हैं, यह नियम और शर्तें 2006 और 2008 में डीटीसी द्वारा जारी किए गए निविदाओं के समान है। इसमें कहा गया है कि 1000 लो फ्लोर बसों के सीएएमसी के लिए अनुबंध की सामान्य शर्तें स्पष्ट रूप से कहती है कि ठेकेदार को रखरखाव से संबंधित सभी काम करने होंगे। सीएएमसी मे रखरखाव, सामान्य टूट-फूट, बड़ी छोटी मरम्मत, असेंबली और सबअसेंबली की ओवरहालिंग, ब्रेकडाउन के कारण क्षति, खराब हो चुके टायरों को बदलना, बस बॉडी की मरम्मत, फिटनेस और  प्रदूषण नियंत्रण प्रमाण पत्र करना शामिल है"।