हाल ही में लॉस एंजेलिस में एक घटना ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ध्यान खींचा। अमेरिकी पुलिस ने गुरप्रीत सिंह नामक एक व्यक्ति को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया क्योंकि वह हाथ में माचेटी लेकर खड़ा था और बार-बार चेतावनी के बावजूद उसने हथियार नहीं फेंका। वहीं दूसरी ओर भारत में किसान आंदोलन के दौरान गणतंत्र दिवस पर लाल किले पर पुलिस पर तलवारों और लाठियों से हमला किया गया, लेकिन भारतीय पुलिस ने न तो गोली चलाई और न ही हिंसक जवाब दिया। इसके बावजूद तथाकथित "इकोसिस्टम" भारत को फासीवादी कहता है और लोकतंत्र को मृत घोषित करता है।
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लॉस एंजेलिस की घटना : पुलिस की गोली से मौत
अमेरिका के लॉस एंजेलिस में गुरप्रीत सिंह नामक शख्स माचेटी लेकर पुलिस के सामने खड़ा था। पुलिस ने उसे बार-बार चेतावनी दी कि वह हथियार नीचे रख दे, अन्यथा कार्रवाई होगी। लेकिन जब उसने इनकार कर दिया तो पुलिस ने सीधे गोली चलाई और मौके पर ही उसकी मौत हो गई। इस घटना से यह स्पष्ट हो जाता है कि अमेरिका जैसे लोकतांत्रिक देश में भी पुलिस किसी भी तरह की चुनौती या खतरे को बर्दाश्त नहीं करती। वहां मानवाधिकार या "फासीवाद" जैसे आरोपों का मुद्दा तक नहीं उठाया गया।
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भारत का धैर्य : लाल किले की घटना
26 जनवरी 2021 को किसान आंदोलन के नाम पर हजारों लोग लाल किले तक पहुँच गए। वहां उन्होंने पुलिस पर लाठियों, तलवारों और अन्य हथियारों से हमला किया। कई पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल हुए। लेकिन इसके बावजूद भारतीय पुलिस ने न गोली चलाई और न ही किसी प्रदर्शनकारी की जान ली। यह भारतीय लोकतंत्र और सहनशीलता का प्रमाण है। ऐसे माहौल में अगर यह घटना अमेरिका में होती, तो निश्चित रूप से पुलिस गोली चलाती और कई लोग मारे जाते।
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लोकतंत्र की असली परीक्षा
लोकतंत्र का अर्थ केवल चुनाव और वोट नहीं है, बल्कि इसमें यह भी शामिल है कि सरकार और कानून-व्यवस्था विरोधी स्वर और असहमति को किस हद तक सहन कर सकते हैं। भारत ने यह साबित किया कि यहां विरोध की आवाज को भी सुरक्षा दी जाती है और कानून के दायरे में रहने की छूट दी जाती है। लेकिन जब यही स्थिति पश्चिमी देशों में आती है, तो वहां पुलिस का रवैया कठोर और निर्मम होता है। इस तुलना से स्पष्ट होता है कि भारत का लोकतंत्र कहीं ज्यादा सहिष्णु और मजबूत है।
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भारत को फासीवादी बताने का नैरेटिव
भारत विरोधी इकोसिस्टम हमेशा यह दिखाने की कोशिश करता है कि भारत में लोकतंत्र खतरे में है। चाहे वह अंतरराष्ट्रीय मीडिया हो या कुछ घरेलू राजनीतिक दल, वे लगातार यह नैरेटिव फैलाते हैं कि भारत फासीवादी बन चुका है। लेकिन लाल किले की घटना और उसके बाद पुलिस का संयम इस झूठे नैरेटिव को पूरी तरह ध्वस्त कर देता है। भारत में लोकतंत्र जीवित है और वह पश्चिमी देशों की तुलना में अधिक उदार है।
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अमेरिका और भारत की तुलना
अमेरिका जैसे देश में जहां पुलिस कानून तोड़ने वाले को तुरंत गोली मार देती है, वहीं भारत में पुलिस महीनों तक धैर्य रखती है। यह तुलना केवल दो देशों की पुलिस कार्रवाई नहीं, बल्कि उनकी लोकतांत्रिक सोच का भी प्रतीक है। भारत में जनता को ज्यादा अधिकार और सुरक्षा दी जाती है। यहां तक कि हिंसक प्रदर्शनकारियों को भी गोली का शिकार नहीं बनाया जाता। यह भारत के लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत है।
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मानवाधिकार और दोहरी सोच
जब अमेरिका या यूरोप में पुलिस किसी को गोली मार देती है, तो इसे "कानून-व्यवस्था" का हिस्सा कहकर स्वीकार कर लिया जाता है। वहीं भारत में जब पुलिस संयम दिखाती है और गोली नहीं चलाती, तब भी इसे कमजोरी और "फासीवाद" बताकर बदनाम किया जाता है। यह दोहरी मानसिकता इस बात को दर्शाती है कि भारत के खिलाफ एक सुनियोजित प्रचार चलाया जा रहा है। असल में, भारत की उदारता और सहिष्णुता को कमजोरी की तरह पेश किया जा रहा है।
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भारतीय पुलिस का संयम : लोकतंत्र की जीत
लाल किले की घटना में पुलिस ने अपने कई जवानों को घायल होते देखा। लेकिन उन्होंने न तो गोली चलाई और न ही हिंसक भीड़ पर जानलेवा कार्रवाई की। यही लोकतंत्र का असली स्वरूप है। पुलिस का यह संयम दुनिया को दिखाता है कि भारत में कानून व्यवस्था सिर्फ दमन नहीं है बल्कि जनता की सुरक्षा और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा भी है। यह भारतीय लोकतंत्र की परिपक्वता का बड़ा उदाहरण है।
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भारत की छवि और इकोसिस्टम की साजिश
भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम करने की कोशिश लगातार की जाती रही है। चाहे वह किसान आंदोलन का मुद्दा हो या नागरिकता कानून का, हमेशा यह दिखाया गया कि भारत फासीवादी बन चुका है। लेकिन जब वास्तविकता पर नजर डालते हैं, तो भारत में लोकतंत्र पहले से कहीं ज्यादा मजबूत है। इकोसिस्टम का मकसद केवल राजनीतिक लाभ और भारत की छवि को धूमिल करना है। लाल किले की घटना इसका ज्वलंत उदाहरण है।
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निष्कर्ष : भारत का लोकतंत्र पश्चिम से बेहतर
लॉस एंजेलिस की घटना और लाल किले की घटना के बीच तुलना यह साबित करती है कि भारत का लोकतंत्र पश्चिम से कहीं बेहतर और सहिष्णु है। यहां सरकार और पुलिस विरोध के बावजूद जनता को अभिव्यक्ति की पूरी स्वतंत्रता देती है। लोकतंत्र की असली ताकत यही है कि विरोध और असहमति को भी जगह दी जाए। इसलिए यह कहना कि भारत फासीवादी है या लोकतंत्र खत्म हो चुका है, न केवल झूठ है बल्कि एक सुनियोजित दुष्प्रचार है। भारत ने अपनी परिपक्वता से साबित किया है कि उसका लोकतंत्र दुनिया का सबसे सशक्त लोकतंत्र है।
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