❖ पश्चिम बंगाल का कालीचक बना बम धमाके का गवाह
पश्चिम बंगाल के कालीचक से एक बेहद दर्दनाक और झकझोर देने वाली खबर सामने आई है। एक 10 साल की मासूम बच्ची, तमन्ना खातून की जान एक क्रूड बम धमाके में चली गई। यह हादसा तब हुआ जब तृणमूल कांग्रेस (TMC) के कार्यकर्ता उपचुनाव में मिली जीत का जश्न मना रहे थे। आरोप है कि जीत की खुशी में TMC कार्यकर्ताओं ने विपक्षी पार्टियों के घरों की ओर क्रूड बम फेंकने शुरू किए। इसी दौरान एक बम फटा और उस धमाके में तमन्ना की जान चली गई। सवाल ये है कि क्या सत्ता में आकर इंसानियत मर जाती है? क्या चुनावी जीत अब निर्दोषों की कब्रगाह बन चुकी है?
In Kaliachak, West Bengal today,
— Facts (@BefittingFacts) June 23, 2025
A 10-year-old kid got killed in crude bomb explosion.
TMC was celebrating their victory in Bypolls and throwing crude bombs at opposition parties' homes.
Tamanna Khatun lost her life in explosion.
This is how TMC celebrates victory!
❖ ममता सरकार में अराजकता क्यों बनती जा रही है सामान्य?
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार तीसरे कार्यकाल में है, लेकिन राज्य की कानून व्यवस्था दिनोंदिन बिगड़ती जा रही है। कभी रामनवमी की हिंसा, कभी पंचायत चुनावों में खून-खराबा और अब उपचुनाव की जीत पर मौत का जश्न—क्या यही है ‘मां माटी मानुष’ की राजनीति? हर बार जब TMC जीतती है, तो विपक्षी कार्यकर्ताओं के घर जलाए जाते हैं, महिलाओं से बदसलूकी होती है और अब तो मासूम बच्चों की जान भी चली जा रही है। यह वही राज्य है जहां एक पार्टी की सत्ता इतनी निरंकुश हो चुकी है कि अब उसे कानून और मानवता की भी कोई परवाह नहीं।
❖ तमन्ना खातून: एक मासूम की मौत और एक लोकतंत्र की हार
तमन्ना खातून केवल 10 साल की थी। उसकी दुनिया स्कूल, खेल और सपनों से भरी थी। लेकिन एक राजनीतिक पार्टी के गुंडों ने उसकी जिंदगी खत्म कर दी। न तो वो किसी पार्टी से जुड़ी थी, न ही राजनीति को समझती थी। फिर भी राजनीति ने उसकी जान ले ली। तमन्ना की मौत TMC की जीत का उत्सव बन गई, और इसी से बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है? क्या अब हम इतने अमानवीय हो गए हैं कि जीत के जश्न में निर्दोषों की कुर्बानी भी मानी जाने लगी है?
❖ केंद्र सरकार की चुप्पी: साजिश या लाचारगी?
घटना के बाद यह सवाल उठता है कि क्या केंद्र सरकार इस प्रकार की घटनाओं पर आंख मूंदे बैठी है? जब बंगाल में चुनावों के बाद बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी, तब भी केंद्र की प्रतिक्रिया बेहद सीमित थी। अब जब एक मासूम की जान गई है, तो भी कोई निर्णायक कदम नहीं दिख रहा है। क्या राष्ट्रपति शासन की मांग केवल संविधान की किताबों तक सीमित है? क्या राष्ट्रीय सुरक्षा और नागरिकों की जान-माल की रक्षा की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की नहीं है?
❖ TMC कार्यकर्ताओं या गुंडों का राज?
पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता अब कार्यकर्ता नहीं रह गए हैं, बल्कि कई जगहों पर वे गुंडागर्दी की मिसाल बन चुके हैं। ये लोग बम, बंदूक, हिंसा और डर के जरिए सत्ता कायम रखना चाहते हैं। ये वही TMC है जिसने लोकतंत्र के नाम पर सत्ता ली थी, लेकिन अब लोकतंत्र का गला घोंटने में कोई कसर नहीं छोड़ रही। राजनीतिक विरोधियों का घर जलाना, बच्चों को मार डालना और फिर "उत्सव" मनाना—ये कैसी राजनीति है?
❖ मीडिया की चुप्पी और विपक्ष की नपुंसकता
अगर यही घटना उत्तर प्रदेश या मध्य प्रदेश जैसे किसी बीजेपी-शासित राज्य में हुई होती, तो अब तक मीडिया चैनलों पर हेडलाइन बन चुकी होती: "मासूम की हत्या", "फासीवादी शासन में मौत का खेल", आदि। लेकिन यह घटना बंगाल की है, और वहां की सत्ता मीडिया को भी नियंत्रित करती है। इतना ही नहीं, बंगाल के विपक्षी दल भी इस घटना पर सिर्फ प्रेस कांफ्रेंस तक सीमित हैं। वो जनसड़क पर उतरकर ममता सरकार को घेरने की हिम्मत नहीं दिखा पा रहे।
❖ संवैधानिक संकट और लोकतंत्र पर हमला
जब किसी राज्य में पुलिस मूकदर्शक बनी रहती है, कानून व्यवस्था नाम मात्र की हो, और सत्ता पार्टी खुलेआम गुंडागर्दी करे, तो वह राज्य संवैधानिक संकट का शिकार हो चुका होता है। पश्चिम बंगाल अब ऐसे ही दौर से गुजर रहा है। लोकतंत्र की बुनियाद ही है कि सत्ता जवाबदेह हो, लेकिन बंगाल में जवाबदेही नाम की कोई चीज नहीं बची। चुनावी हिंसा, बमबाजी, और अब मासूम की हत्या—ये सब इस बात का संकेत हैं कि लोकतंत्र को एक गहरी चोट लगी है।
❖ क्या राष्ट्रपति शासन ही समाधान है?
पश्चिम बंगाल में जिस तरह से हिंसा और अराजकता की घटनाएं बढ़ रही हैं, उसे देखते हुए राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग ज़ोर पकड़ रही है। यह कोई राजनीतिक मांग नहीं, बल्कि जनता की सुरक्षा का सवाल बन गया है। तमन्ना जैसी बच्चियों की मौत अगर इसी तरह होती रही और प्रशासन मौन रहा, तो यह पूरा तंत्र ही एक दिन ध्वस्त हो जाएगा। केंद्र सरकार को अब चुप्पी तोड़नी होगी और कड़े फैसले लेने होंगे।
❖ सोशल मीडिया पर गुस्सा, लेकिन कार्रवाई कब?
इस घटना को लेकर सोशल मीडिया पर जनता का गुस्सा फूटा है। ट्विटर, फेसबुक और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म पर लोग ममता सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। #JusticeForTamanna जैसे ट्रेंड चल रहे हैं। लेकिन क्या डिजिटल गुस्से से किसी को न्याय मिलेगा? क्या बंगाल की सड़कों पर उतरेगा जनाक्रोश? जब तक जनता खुद नहीं उठ खड़ी होती, तब तक इस प्रकार की हिंसा रुकने वाली नहीं है।
❖ एक बच्ची की मौत और एक राष्ट्र की चेतना
तमन्ना की मौत सिर्फ एक बच्ची की मौत नहीं है, बल्कि यह पूरे राष्ट्र की चेतना को झकझोरने वाली घटना है। यह हमें याद दिलाती है कि अगर हमने समय रहते अपनी आवाज़ नहीं उठाई, तो आने वाला कल और भी भयावह हो सकता है। यह घटना हमें याद दिलाती है कि राजनीति की बिसात पर सबसे बड़ी कीमत आम जनता को चुकानी पड़ती है—कभी अपनी जान से, कभी अपने बच्चों से।
🔖 महत्वपूर्ण तथ्य
- घटना स्थान: कालीचक, पश्चिम बंगाल
- तारीख: 23 जून 2025
- मृतक का नाम: तमन्ना खातून (उम्र: 10 साल)
- दोषी पक्ष: तृणमूल कांग्रेस (TMC) कार्यकर्ता
- घटना का कारण: उपचुनाव जीत की खुशी में क्रूड बम फेंके गए
- प्रतिक्रिया: सोशल मीडिया पर भारी गुस्सा, केंद्र सरकार की चुप्पी
- प्रमुख हैशटैग: #JusticeForTamanna, #TMCViolence, #PresidentRuleInBengal
- जनता की मांग: राष्ट्रपति शासन की घोषणा और दोषियों को सख्त सज़ा
- मुख्य सवाल: क्या यही है लोकतंत्र का नया चेहरा? क्या मासूमों की जान अब सिर्फ चुनावी "कोलैटरल डैमेज" बनकर रह गई है?