🔴 भूमिका
उत्तर प्रदेश की राजनीति लंबे समय से जातिगत समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमती रही है। इसमें समाजवादी पार्टी (सपा) की भूमिका विशेष रूप से उल्लेखनीय रही है, जो स्वयं को पिछड़े वर्गों और विशेष रूप से यादव समुदाय का प्रतिनिधि मानती है। लेकिन हाल ही में इटावा में हुई एक साधारण सी घटना को जिस प्रकार से समाजवादी पार्टी ने जातिगत रंग देकर “यादव बनाम ब्राह्मण” का मुद्दा बना दिया, उसने एक बार फिर सपा की राजनीति की सच्चाई उजागर कर दी है।
🔴 घटना की पृष्ठभूमि: क्या हुआ इटावा में?
इटावा जिले में दो आम नागरिकों के बीच किसी निजी विवाद को लेकर मामूली झड़प हुई थी। यह झगड़ा ना तो साम्प्रदायिक था, ना ही जातिगत। स्थानीय पुलिस के अनुसार, यह पूरी तरह व्यक्तिगत कारणों से उपजा विवाद था, जिसमें कानून व्यवस्था की कोई बड़ी समस्या नहीं थी। न तो FIR में किसी जाति विशेष का उल्लेख किया गया, और न ही किसी समुदाय ने जातिगत भेदभाव की शिकायत की।
🔴 अखिलेश यादव की राजनीति: एक झगड़े को बना दिया जातीय मुद्दा
लेकिन जिस तरह से इस छोटे से झगड़े को अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी ने एक जातिगत लड़ाई के रूप में प्रचारित किया, वह चिंताजनक है। उन्होंने इस पूरे मामले को “यादव बनाम ब्राह्मण” का रंग देने की कोशिश की और सोशल मीडिया तथा राजनीतिक मंचों पर इसे जातीय उत्पीड़न का मामला बताकर पेश किया।
सवाल ये है — जब पुलिस के पास ऐसा कोई मामला दर्ज नहीं हुआ, तो अखिलेश यादव को इस मुद्दे पर राजनीति करने की जरूरत क्यों पड़ी?
🔴 ब्राह्मण समाज को निशाना बनाने की साजिश
अखिलेश यादव के बयानों से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि उनका निशाना किसी एक व्यक्ति या घटना पर नहीं, बल्कि पूरे ब्राह्मण समुदाय पर है। उनकी बयानबाज़ी से ब्राह्मणों के खिलाफ एक नकारात्मक माहौल बन रहा है, मानो वे सत्ता में रहते हुए अन्य जातियों पर अत्याचार करते रहे हों। यह न केवल तथ्यहीन है, बल्कि समाज में जातीय वैमनस्य फैलाने वाला भी है।
🔴 कथित आध्यात्मिक प्रवक्ता की भूमिका
इस पूरे प्रकरण में एक कथित आध्यात्मिक प्रवक्ता को भी अचानक सक्रिय किया गया। यह व्यक्ति खुद को सनातन धर्म और ब्राह्मण संस्कृति का प्रवक्ता बताता है, लेकिन उसने समाजवादी पार्टी के पक्ष में बयानबाज़ी शुरू कर दी। बाद में खुलासा हुआ कि यह प्रवक्ता समाजवादी पार्टी के संपर्क में था और उसे इस मुद्दे को गरमाने के लिए प्रायोजित किया गया था।
सूत्रों के अनुसार, इस व्यक्ति को पार्टी की ओर से धनराशि दी गई ताकि वह ब्राह्मण समुदाय के भीतर भ्रम और असंतोष पैदा कर सके, और एक नया राजनीतिक नैरेटिव गढ़ा जा सके।
🔴 ब्राह्मणों का राजनैतिक दोहन
ब्राह्मण समाज को अब सियासी मोहरा बनाया जा रहा है। जब वोट बैंक की राजनीति हावी हो जाती है, तो सच्चाई, न्याय और सामाजिक संतुलन जैसी बातें पीछे छूट जाती हैं। समाजवादी पार्टी जानती है कि उसका परंपरागत मुस्लिम-यादव समीकरण अब पर्याप्त नहीं रहा, इसलिए अब वह अन्य जातियों में विभाजन पैदा करने की चाल चल रही है।
ब्राह्मणों को कभी “ठग” बताया जाता है, कभी “सवर्ण उत्पीड़क”, और अब जब जरूरत पड़ी, तो उन्हें जातीय झगड़े में जबरन घसीटा जा रहा है। यह रणनीति सत्ता के लिए किसी भी हद तक गिरने की राजनीति का प्रमाण है।
🔴 पुलिस की स्थिति और सच्चाई
स्थानीय प्रशासन और पुलिस ने स्पष्ट रूप से कहा है कि उन्हें किसी प्रकार की जातिगत हिंसा की शिकायत नहीं मिली है। ना ही इस मामले में कोई सांप्रदायिक या जातीय तनाव पाया गया। पुलिस के बयान से साफ है कि अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी का दावा झूठा और मनगढ़ंत है।
इस झूठे प्रचार का मकसद सिर्फ और सिर्फ जातीय ध्रुवीकरण कर आगामी चुनावों में लाभ उठाना है। लेकिन यह देश और समाज के लिए बेहद खतरनाक संकेत है।
🔴 सोशल मीडिया पर फैलाया गया झूठ
समाजवादी पार्टी के आईटी सेल और समर्थक सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को वायरल करने में लगे हुए हैं। फर्जी पोस्ट, एडिटेड वीडियो, और भावनात्मक अपीलों के जरिए एक झूठ को सच की तरह पेश किया जा रहा है। लेकिन सवाल उठता है — क्या झूठ को सौ बार दोहराने से वह सच बन जाएगा?
सोशल मीडिया पर ये झूठ फैलाकर न केवल ब्राह्मणों को बदनाम किया जा रहा है, बल्कि यादव समुदाय को भी भड़काया जा रहा है। यह राष्ट्रविरोधी मानसिकता है, जो समाज को टुकड़ों में बांटती है।
🔴 राजनैतिक लाभ के लिए समाज में जहर घोलना
जातिगत संघर्षों का उपयोग कर राजनीति चमकाने की यह परंपरा भारत के लोकतंत्र के लिए गंभीर चुनौती है। समाजवादी पार्टी का यह व्यवहार दर्शाता है कि उनके पास विकास, रोजगार, शिक्षा या कानून-व्यवस्था जैसे मुद्दों पर बात करने के लिए कुछ नहीं बचा, इसलिए वे जातिवाद का सहारा ले रहे हैं।
देश और राज्य को पीछे धकेलने वाली ऐसी राजनीति को जनता ने पहले भी नकारा है और आगे भी नकारेगी।
🔴 निष्कर्ष: जनता को रहना होगा सतर्क
समाजवादी पार्टी की यह रणनीति केवल राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध करने की कोशिश है। यह ब्राह्मणों और यादवों दोनों के खिलाफ है — ब्राह्मणों को दोषी बनाकर और यादवों को उकसाकर।
यह समय है कि सभी जातियों के लोग इस प्रकार की नफरत फैलाने वाली राजनीति को पहचानें और मिलकर इसका विरोध करें। लोकतंत्र में हर जाति, हर वर्ग की भागीदारी होती है, और उसे कोई भी राजनीतिक दल अपनी जागीर नहीं बना सकता।
जातिगत वैमनस्य नहीं, समरसता ही भारत की असली शक्ति है।