चीन एक बार फिर अपने सैन्य और तकनीकी कौशल के दम पर दुनिया को चौंकाने में कामयाब रहा है। हाल ही में चीन ने ऐसा कदम उठाया है जिससे वैश्विक स्तर पर हलचल मच गई है। चाइना स्टेट शिपबिल्डिंग कॉर्पोरेशनके रिसर्च इंस्टीट्यूट ने एक अत्यधिक शक्तिशाली, गैर-परमाणु हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया है। इस परीक्षण ने वैज्ञानिकों, सैन्य विशेषज्ञों और राजनयिकों को चौंका दिया है क्योंकि यह बम बेहद उच्च तापमान और विस्फोटक ऊर्जा उत्पन्न करता है।
यह परीक्षण विश्व की सैन्य रणनीति और सुरक्षा समीकरणों को नए रूप में परिभाषित कर सकता है।
इस हाइड्रोजन बम की खास बात यह है कि यह परमाणु बम नहीं है, लेकिन इसके प्रभाव उतने ही भयावह हैं। यह बम परमाणु हथियारों की तरह रेडियोधर्मी प्रभाव नहीं छोड़ता, लेकिन इसकी ऊर्जा क्षमताएं किसी भी परंपरागत हथियार से कहीं अधिक हैं। परीक्षण के दौरान यह देखा गया कि बम के विस्फोट से करीब 1000 डिग्री सेल्सियस तापमान का आग का गोला बना जिसने आसपास के क्षेत्र को कुछ ही सेकंड में पूरी तरह राख कर दिया।
यह तापमान सामान्य स्टील को पिघलाने के लिए पर्याप्त है, जो इसके विध्वंसक स्वरूप को दर्शाता है।
चीन द्वारा बनाए गए इस बम का वजन मात्र 2 किलोग्राम बताया गया है, लेकिन इसकी शक्ति TNT विस्फोट से 15 गुना अधिक आंकी गई है। TNT का प्रयोग आमतौर पर विस्फोटकों की ताकत मापने के लिए किया जाता है। इसका मतलब यह है कि एक छोटा सा बम भी भारी तबाही मचाने में सक्षम है। इसके परिणामस्वरूप यह बम आधुनिक युद्ध की परिभाषा को पूरी तरह बदल सकता है।
छोटे आकार में बड़ी विनाशक क्षमता सैन्य रणनीतियों को नई दिशा दे सकती है।
इस बम की शक्ति का रहस्य इसके रासायनिक घटक — मैग्नीशियम हाइड्राइड — में छिपा है। यह पदार्थ अत्यधिक प्रतिक्रियाशील होता है और ऑक्सीजन के संपर्क में आते ही अत्यधिक गर्मी पैदा करता है। इसके अलावा, यह वातावरण में ऊर्जा छोड़ने की क्षमता रखता है जिससे तेज विस्फोट उत्पन्न होता है। चीन ने इसे मिलिट्री रिसर्च में एक बड़ा गेम चेंजर बताया है।
मैग्नीशियम हाइड्राइड के प्रयोग से कम लागत में अधिक घातक हथियार तैयार किए जा सकते हैं।
रिपोर्ट्स के अनुसार, चीन इस तकनीक को आगे सैन्य ड्रोन, मिसाइल व छोटे हथियारों में प्रयोग करने की योजना बना रहा है। इस तरह के हथियार अत्यधिक घातक होंगे और बेहद कम समय में बड़ी तबाही मचा सकते हैं। खास बात यह है कि यह हथियार कम वजन के कारण आसानी से ले जाए जा सकते हैं और इन्हें गुप्त तरीके से तैनात भी किया जा सकता है।
इस प्रकार के हथियार गुप्त सैन्य अभियानों को अधिक प्रभावी बना सकते हैं।
इस परीक्षण से अंतरराष्ट्रीय समुदाय में चिंता की लहर दौड़ गई है। अमेरिका, रूस, भारत सहित कई देश इस नई तकनीक के खतरों पर नजर बनाए हुए हैं। हालांकि यह बम परमाणु नहीं है, लेकिन इसका प्रयोग अगर युद्ध में हुआ तो इसके परिणाम बेहद भयावह हो सकते हैं। इससे शहरी क्षेत्रों में भीषण आगजनी और जनहानि की आशंका बनी रहती है।
सैन्य रणनीतिकार इस बम को “नई पीढ़ी का थर्मोकेमिकल हथियार” कह रहे हैं।
भारत जैसे देशों के लिए यह चिंता का विषय हो सकता है क्योंकि चीन के साथ पहले से ही सीमाई विवाद चल रहे हैं। यदि चीन इस तकनीक को बड़े पैमाने पर विकसित करता है और सीमाओं पर तैनात करता है, तो इससे क्षेत्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है। भारत को अब अपनी सुरक्षा नीति और हथियार प्रणाली की समीक्षा करनी पड़ सकती है।
भारतीय रक्षा विशेषज्ञ इसे “सुरक्षा संतुलन को तोड़ने वाला कदम” मान रहे हैं।
हालांकि चीन ने इस परीक्षण को “वैज्ञानिक प्रयोग” बताया है, लेकिन इसका संभावित सैन्य उपयोग किसी से छिपा नहीं है। चीन का इतिहास रहा है कि वह वैज्ञानिक आविष्कारों को जल्दी ही रक्षा उपकरणों में बदल देता है। ऐसे में यह नया बम भविष्य में युद्ध का स्वरूप बदल सकता है।
वैज्ञानिक प्रयोग की आड़ में सैन्य शक्ति का प्रदर्शन एक रणनीतिक चाल हो सकती है।
अंतरराष्ट्रीय नियमों और संधियों के तहत इस तरह के हथियारों की निगरानी और सीमाएं तय होती हैं, लेकिन गैर-परमाणु हथियारों की श्रेणी में आने के कारण यह बम फिलहाल इन संधियों के दायरे से बाहर है। इसका मतलब यह है कि चीन इस तकनीक को खुले तौर पर विकसित कर सकता है।
यह तकनीक अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा व्यवस्था के लिए एक नई चुनौती पेश कर रही है।
अब सवाल यह उठता है कि क्या अन्य देश भी इस दिशा में कदम बढ़ाएंगे? यदि अमेरिका, रूस या भारत जैसे देश भी इस दिशा में रिसर्च शुरू करते हैं तो यह एक नई हथियारों की होड़ का संकेत होगा। यह स्थिति शीत युद्ध के दौर जैसी हो सकती है जहां हथियारों की होड़ ने दुनिया को कई बार युद्ध के मुहाने पर ला खड़ा किया था।
यह बम विश्व में हथियारों की नई रेस का कारण बन सकता है।
संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं अब इस तकनीक के प्रभाव और उपयोग पर निगरानी रखने की योजना बना सकती हैं। यदि इस बम का प्रयोग युद्ध में किया गया, तो इसके पर्यावरणीय और मानवीय परिणाम अत्यंत भयानक होंगे। इसकी उच्च तापमान क्षमता बड़े पैमाने पर आगजनी और ध्वंस का कारण बन सकती है।
सिर्फ सैन्य नहीं, यह तकनीक मानवीय संकट को भी जन्म दे सकती है।
अंत में यह कहा जा सकता है कि चीन का यह नया कदम तकनीकी दृष्टि से एक बड़ी उपलब्धि है, लेकिन इसका संभावित सैन्य उपयोग वैश्विक शांति के लिए खतरा भी बन सकता है। अब यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय पर निर्भर करता है कि वह कैसे इस नई तकनीक को नियंत्रित करने के लिए कदम उठाता है।
तकनीक का संतुलित उपयोग ही विश्व शांति का रास्ता सुनिश्चित कर सकता है।