Default Image

Months format

View all

Load More

Related Posts Widget

Article Navigation

Contact Us Form

404

Sorry, the page you were looking for in this blog does not exist. Back Home

Ads Area

'अजमेर शरीफ पर चादर चढ़ाने से पीएम मोदी को रोका जाए': याचिका में दावा - पहले शिव मंदिर था आज का दरगाह :

अजमेर शरीफ दरगाह, जो सूफी संत मोइनुद्दीन चिश्ती की मजार है, भारतीय मुसलमानों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। इस दरगाह का उर्स हर साल बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से चादर पेश करने की परंपरा वर्षों से जारी है। हालांकि, इस बार एक याचिका ने इस पर अस्थायी रोक लगाने की मांग की है। याचिका हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने दायर की है, जिनका कहना है कि दरगाह स्थल विवादित है और इससे अदालत की निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है।


याचिका में क्या दलीलें दी गई हैं?

याचिका में विष्णु गुप्ता ने यह तर्क दिया है कि अजमेर शरीफ दरगाह एक प्राचीन हिंदू मंदिर को तोड़कर बनवाया गया था। उनका कहना है कि दरगाह स्थल पर जो वास्तुकला मौजूद है, वह हिंदू मंदिरों से मेल खाती है। मुख्य प्रवेश द्वार और छतरियों की डिजाइन हिंदू वास्तुकला के स्पष्ट संकेत देती है, जो इस बात को प्रमाणित करती है कि यह स्थल पहले एक हिंदू मंदिर था। गुप्ता ने अदालत से अपील की है कि दरगाह स्थल की जांच की जाए और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) से इसे लेकर रिपोर्ट मंगाई जाए।


चादर पेश करने से अदालत की निष्पक्षता पर असर पड़ सकता है

विष्णु गुप्ता का कहना है कि इस विवादित स्थल पर प्रधानमंत्री द्वारा चादर भेजने से अदालत की निष्पक्षता पर प्रभाव पड़ सकता है। उनके मुताबिक, चूंकि इस समय दरगाह पर एक मामला अदालत में चल रहा है, इसलिए इस समय चादर भेजना अदालत की स्वतंत्रता और निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है। गुप्ता का दावा है कि हिंदू धर्म के अनुयायी इस स्थल पर अपनी धार्मिक गतिविधियों को करने का संवैधानिक अधिकार रखते हैं, लेकिन इसे वर्तमान में बाधित किया जा रहा है।


दरगाह का ऐतिहासिक महत्व और विवाद

अजमेर शरीफ दरगाह को लेकर कई तरह के विवाद होते रहे हैं। एक ओर जहां मुस्लिम समुदाय इसे एक पवित्र धार्मिक स्थल मानता है, वहीं दूसरी ओर हिंदू संगठनों का यह आरोप है कि यह स्थल एक प्राचीन हिंदू मंदिर को ध्वस्त करके बनाया गया है। गुप्ता की याचिका में भी यह दावा किया गया है कि दरगाह के नीचे एक शिवलिंग मौजूद है, जिसे हिंदू पूजा करते आए हैं। वे इसे हिंदू धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन मानते हैं, क्योंकि वे चाहते हैं कि हिंदू धर्म के अनुयायी यहां अपने धार्मिक अधिकारों का प्रयोग कर सकें।


याचिका में अन्य दावें

गुप्ता ने अपनी याचिका में यह भी दावा किया है कि दरगाह के भूमिगत मार्ग में जो शिवलिंग पाया गया है, उसे पूजा करने का संवैधानिक अधिकार हिंदुओं को दिया जाना चाहिए। उनका मानना है कि यह अधिकार वर्तमान में बाधित हो रहा है। उन्होंने अदालत से यह भी मांग की है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) से इस स्थल की जांच कराई जाए ताकि यह साबित हो सके कि यह स्थल असल में एक हिंदू मंदिर था। उनका कहना है कि अगर अदालत ने इस दिशा में कार्यवाही की तो यह हिंदू धर्म के अनुयायियों का एक बड़ा अधिकार होगा।


प्रधानमंत्री मोदी की चादर पेश करने की परंपरा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर साल अजमेर शरीफ दरगाह पर उर्स के मौके पर चादर पेश करते हैं। 2 जनवरी 2025 को केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने प्रधानमंत्री की ओर से चादर सौंपी, जो दरगाह पर पेश की जानी थी। इस चादर को भारतीय संस्कृति का प्रतीक माना जाता है। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने इसे ट्वीट कर प्रधानमंत्री की भावना को ‘भारत की सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक’ बताया था। प्रधानमंत्री मोदी ने भी इसे री-ट्वीट कर इस पर अपनी स्वीकृति दी थी।


क्या अदालत इस याचिका पर फैसला देगी?

यह मामला अब अदालत में विचाराधीन है और यह देखना होगा कि अदालत इस याचिका पर क्या फैसला देती है। अगर अदालत गुप्ता की याचिका को स्वीकार करती है, तो इससे प्रधानमंत्री द्वारा भेजी जाने वाली चादर पर अस्थायी रोक लग सकती है। इसके परिणामस्वरूप यह सवाल उठ सकता है कि धार्मिक गतिविधियों के मामले में न्यायपालिका का हस्तक्षेप कितना उचित है, खासकर जब यह धार्मिक परंपराओं और संवैधानिक अधिकारों से जुड़ा हो।


हिंदू धर्म और मुस्लिम धर्म के बीच सामंजस्य की आवश्यकता

इस विवाद के दोनों पक्षों के बीच सामंजस्य की आवश्यकता है। जहां एक ओर हिंदू संगठनों का कहना है कि उनकी धार्मिक भावनाओं का उल्लंघन हो रहा है, वहीं दूसरी ओर मुस्लिम समुदाय का यह मानना है कि दरगाह एक पवित्र स्थल है और वहां की धार्मिक परंपराएं सदियों से चली आ रही हैं। इस तरह के विवादों को केवल कानूनी दृष्टिकोण से हल नहीं किया जा सकता, बल्कि इसके लिए सामूहिक सामाजिक समझ की जरूरत है।


न्यायपालिका का स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर जोर

इस मामले में अदालत की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह संविधान द्वारा प्रदत्त न्यायिक स्वतंत्रता और निष्पक्षता की रक्षा करने के लिए बाध्य है। अदालत को यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी धार्मिक विवाद ऐसे रूप में न उभरे जिससे समाज में असमंजस और अशांति फैलने का खतरा हो। यह समय है जब न्यायपालिका को इस विवाद को सुलझाने के लिए संवैधानिक दृष्टिकोण से विचार करना होगा।


निष्कर्ष

अजमेर शरीफ दरगाह पर चादर भेजने को लेकर दायर की गई याचिका न केवल धार्मिक परंपराओं को लेकर सवाल उठाती है, बल्कि यह अदालत की निष्पक्षता और स्वतंत्रता पर भी असर डालने की संभावना को लेकर चिंताएँ पैदा करती है। विष्णु गुप्ता की याचिका ने इस विवादित स्थल के ऐतिहासिक पहलुओं और हिंदू धर्म के अधिकारों को सामने रखा है। हालांकि, यह मामला अभी अदालत में विचाराधीन है, लेकिन इससे यह साफ है कि समाज में धार्मिक सौहार्द और न्यायपालिका की निष्पक्षता को बनाए रखना बेहद जरूरी है।


सारांश

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अजमेर शरीफ दरगाह पर उर्स के मौके पर चादर भेजने के खिलाफ एक याचिका दायर की गई है। हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता का कहना है कि दरगाह स्थल एक प्राचीन हिंदू मंदिर था और इसके नीचे शिवलिंग मौजूद है, जिसे पूजा करने का अधिकार हिंदू समुदाय को दिया जाना चाहिए। गुप्ता ने अदालत से दरगाह पर चादर भेजने पर अस्थायी रोक लगाने की मांग की है, ताकि अदालत की निष्पक्षता और स्वतंत्रता बनी रहे।