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मिशनरियों के हत्या के आरोपी बजरंगी कार्यकर्ता दारा सिंह की रिहाई पर सुनवाई, क्या कहा कोर्ट ने ?

सुप्रीम कोर्ट ने 6 जनवरी 2024 को ग्राहम स्टेन्स और उनके दो बच्चों की हत्या के मामले में दोषी दारा सिंह की रिहाई को लेकर दायर याचिका पर ओडिशा सरकार और सीबीआई से जवाब मांगा। दारा सिंह ने 25 वर्षों से अधिक समय तक जेल में बिता लिया है और अब उनकी रिहाई के लिए कई दलीलें दी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान सीबीआई को पक्षकार बनाने और ओडिशा सरकार से रिपोर्ट तलब की है।


सुप्रीम कोर्ट का आदेश और सुनवाई की प्रक्रिया
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 6 जनवरी 2024 को एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया, जिसमें उसने ग्राहम स्टेन्स और उनके दो बच्चों की हत्या के दोषी दारा सिंह की रिहाई की याचिका पर ओडिशा सरकार और सीबीआई से जवाब मांगा। इस मामले की सुनवाई जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस एस.वी.एन. भट्टी की बेंच द्वारा की गई। दारा सिंह ने जेल में 25 साल से अधिक समय बिताया है और अब वह अपनी रिहाई के लिए अदालत में याचिका दायर कर चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में ओडिशा सरकार को निर्देश दिया कि वह उन पांच समितियों की रिपोर्ट पेश करे जिन्होंने दारा सिंह की रिहाई पर विचार किया था।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि सीबीआई को इस मामले में पक्षकार के रूप में जोड़ा जाए क्योंकि हत्याकांड की जांच सीबीआई ने की थी। यह आदेश बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे पहले ओडिशा सरकार ने फरवरी 2023 में इन समितियों द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट का हवाला देते हुए रिहाई के लिए और समय मांगा था। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को चार हफ्ते का समय देते हुए रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है।


दारा सिंह की रिहाई की याचिका: सुधारात्मक न्याय का दावा
दारा सिंह ने अपनी याचिका में दावा किया कि उन्होंने 25 साल बिना किसी पैरोल के जेल में बिताए हैं और अब उन्हें रिहाई का हक है। उन्होंने अपनी याचिका में राजीव गांधी हत्याकांड के दोषी ए.जी. पेरारिवलन की रिहाई को आधार बनाते हुए यह तर्क दिया कि सुधारात्मक न्याय (Reformative Justice) के सिद्धांत को उनके मामले में भी लागू किया जाना चाहिए। दारा सिंह ने अपने वकील के माध्यम से यह भी दलील दी कि वह अब 61 साल के हो चुके हैं और उन्हें किसी भी प्रकार की पैरोल का अवसर नहीं मिला है।

सिंह ने यह बताया कि जब उनकी माँ का निधन हुआ, तब भी उन्हें अंतिम संस्कार में शामिल होने की अनुमति नहीं दी गई। दारा सिंह ने यह भी आरोप लगाया कि उन्होंने कई बार राज्य सरकार से अपनी रिहाई के लिए आवेदन किया था, लेकिन राज्य सरकार ने उनकी किसी भी अपील को अनदेखा कर दिया। उन्होंने यह भी कहा कि उनके संविधानिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है और इसके तहत उन्हें रिहाई का हक मिलना चाहिए।


ग्राहम स्टेन्स हत्याकांड: एक भयावह घटना
यह मामला 1999 में ओडिशा के क्योंझर जिले में घटित हुआ था। ग्राहम स्टेन्स, जो एक ऑस्ट्रेलियाई मिशनरी थे, अपनी दो बच्चों के साथ एक रात अपनी कार में सो रहे थे, तभी कुछ अज्ञात हमलावरों ने उनकी कार को आग के हवाले कर दिया, जिससे उनकी और उनके बच्चों की जलकर मौत हो गई। इस हत्या का आरोप बजरंग दल के कार्यकर्ता दारा सिंह पर लगा, जिसे बाद में गिरफ्तार कर लिया गया।

दारा सिंह के खिलाफ आरोप साबित होने के बाद उसे 2003 में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। यह हत्याकांड न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया में एक गंभीर और भयावह घटना के रूप में उभरा था। ग्राहम स्टेन्स की हत्या ने सांप्रदायिक तनाव को भी जन्म दिया और इस मामले ने देश और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धार्मिक असहमति और हिंसा के मुद्दे को उजागर किया।


दारा सिंह की जेल में बिताई गई लंबी सजा
दारा सिंह ने अपने जीवन के 25 वर्षों से अधिक समय जेल में बिताए हैं, लेकिन इस दौरान उन्हें किसी भी प्रकार की पैरोल नहीं मिली। उनकी उम्र अब 61 साल हो चुकी है और उनका कहना है कि वह सुधार की प्रक्रिया से गुजर चुके हैं। दारा सिंह का तर्क है कि उन्होंने अपनी सजा पूरी कर ली है और अब उन्हें रिहाई मिलनी चाहिए। उनके वकील विष्णु जैन ने अदालत में यह दलील दी कि सुधारात्मक न्याय के सिद्धांत को उनके मामले पर भी लागू किया जाना चाहिए, जैसा कि राजीव गांधी हत्याकांड के दोषी ए.जी. पेरारिवलन के मामले में हुआ था।

सिंह ने अपनी याचिका में यह भी कहा कि उन्हें किसी भी प्रकार का मानवीय अधिकार नहीं मिला है, और उनके मूल अधिकारों का उल्लंघन हुआ है। वह संविधान के अनुच्छेद 21 का हवाला देते हुए अपने जेल में बिताए गए समय को अत्यधिक और अनावश्यक मानते हैं। वह कहते हैं कि उन्होंने अब तक जेल में सजा काटने के बाद सुधार के संकेत दिए हैं और उन्हें पुनः समाज में एक सशक्त नागरिक के रूप में अवसर दिया जाना चाहिए।


ओडिशा सरकार का रुख और समितियों की रिपोर्ट
इस मामले में ओडिशा सरकार ने दारा सिंह की रिहाई पर विचार करने के लिए पाँच समितियाँ बनाई थीं। इन समितियों ने अपनी रिपोर्ट में दारा सिंह की रिहाई की अनुशंसा की थी। हालांकि, राज्य सरकार ने इन रिपोर्टों के आधार पर अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। राज्य सरकार ने फरवरी 2023 में इन समितियों द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट का हवाला देते हुए रिहाई के लिए और समय मांगा था।

सुप्रीम कोर्ट ने ओडिशा सरकार को निर्देश दिया कि वह इन रिपोर्टों को अदालत में प्रस्तुत करे ताकि यह मामला पूरी तरह से स्पष्ट हो सके। यह निर्देश इस मामले में ओडिशा सरकार की भूमिका को महत्वपूर्ण बनाता है, क्योंकि सरकार के कदम इस फैसले पर असर डाल सकते हैं। इसके अलावा, सीबीआई को भी इस मामले में पक्षकार बनाने का आदेश दिया गया है, क्योंकि हत्याकांड की जांच इस संस्था द्वारा की गई थी।


न्याय और समाज में पुनः एक अवसर
दारा सिंह की रिहाई को लेकर जो सवाल उठ रहे हैं, वह समाज में न्याय और पुनः अवसर की अवधारणा को छेड़ते हैं। क्या एक व्यक्ति जिसने गंभीर अपराध किया है, उसे एक निश्चित समय के बाद समाज में पुनः शामिल होने का अवसर मिलना चाहिए? दारा सिंह ने अपनी याचिका में यही तर्क दिया है कि सुधारात्मक न्याय के सिद्धांत के तहत, उन्हें सजा की अवधि पूरी करने के बाद रिहाई मिलनी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट का इस मामले में निर्णय सिर्फ दारा सिंह के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एक उदाहरण बन सकता है कि कैसे सुधारात्मक न्याय के सिद्धांत को लागू किया जाता है। यदि अदालत दारा सिंह की रिहाई के पक्ष में निर्णय देती है, तो यह भारत के न्यायिक प्रणाली के लिए एक महत्वपूर्ण प्रस्थान बिंदु हो सकता है।


निष्कर्ष
दारा सिंह की रिहाई के मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय न्यायिक दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण होगा। इस निर्णय से न केवल दारा सिंह की भविष्यवाणी पर असर पड़ेगा, बल्कि यह सुधारात्मक न्याय की प्रक्रिया पर भी एक महत्वपूर्ण दिशा तय कर सकता है। इस मामले में ओडिशा सरकार और सीबीआई का भी महत्वपूर्ण योगदान रहेगा, और उनकी रिपोर्ट और पक्षकार के रूप में भूमिका इस निर्णय को प्रभावित करेगी।