26 जनवरी 2018 को उत्तर प्रदेश के कासगंज में हिंदू कार्यकर्ता चंदन गुप्ता की हत्या ने देशभर को झकझोर दिया। एनआईए की स्पेशल कोर्ट ने मामले में 28 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई। सुनवाई के दौरान यह खुलासा हुआ कि हत्या के आरोपियों को बचाने के लिए विदेशी फंडिंग और एनजीओ का सहारा लिया गया। अदालत ने इसे संविधान की भावना के खिलाफ बताया और सरकार से मामले की जांच की सिफारिश की। यह लेख इस हत्याकांड में विदेशी फंडिंग और एनजीओ की भूमिका पर प्रकाश डालता है।
चंदन गुप्ता हत्याकांड: एक भयावह घटना
26 जनवरी 2018 को उत्तर प्रदेश के कासगंज में तिरंगा यात्रा के दौरान सांप्रदायिक हिंसा भड़की, जिसमें चंदन गुप्ता की गोली मारकर हत्या कर दी गई। यह घटना धार्मिक कट्टरता का एक भयावह उदाहरण है। घटना के बाद पूरे देश में आक्रोश की लहर दौड़ गई।
चंदन गुप्ता, एक हिंदू कार्यकर्ता, को उनके धार्मिक विचारों के कारण निशाना बनाया गया। एनआईए की स्पेशल कोर्ट ने इस मामले में 28 लोगों को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई। इन दोषियों में आसिफ कुरैशी उर्फ हिटलर, असलम, असीम, शबाब और अन्य शामिल हैं।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि इस हत्याकांड के पीछे सांप्रदायिक दंगे भड़काने की साजिश थी। दोषियों ने इस घटना को अंजाम देकर समाज में धार्मिक तनाव फैलाने का प्रयास किया।
विदेशी फंडिंग और एनजीओ की संदिग्ध भूमिका
मामले की सुनवाई के दौरान यह खुलासा हुआ कि आरोपियों को बचाने के लिए विदेशी फंडिंग का सहारा लिया गया। अमेरिका, ब्रिटेन और पाकिस्तान जैसे देशों से धनराशि भारत के विभिन्न एनजीओ के माध्यम से पहुंचाई गई। इन एनजीओ का उद्देश्य आर्थिक रूप से कमजोर आरोपियों को कानूनी मदद देना बताया गया, लेकिन कोर्ट ने इसे संविधान की भावना के खिलाफ माना।
लोक अभियोजकों ने अदालत में दलील दी कि ये एनजीओ सांप्रदायिक ताकतों को बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं। जमीयत-उलेमा-ए-हिंद के लीगल सेल और अन्य एनजीओ ने इस मामले में आरोपियों के पक्ष में पैरवी की।
अंतरराष्ट्रीय एनजीओ और भारत-विरोधी गतिविधियाँ
सुनवाई के दौरान वकील जियाउल जिलानी ने कई अंतरराष्ट्रीय एनजीओ की रिपोर्टों का हवाला दिया। इनमें न्यूयॉर्क स्थित अलायंस फॉर जस्टिस एंड अकाउंटिबिलिटी, वॉशिंगटन डीसी स्थित इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल, लंदन स्थित साउथ एशिया सॉलिडेरिटी ग्रुप और नई दिल्ली स्थित पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज प्रमुख थे।
इन रिपोर्टों में दावा किया गया कि कासगंज की घटना में पुलिस ने हिंदुओं को बचाने और मुस्लिमों को फंसाने का काम किया। हालाँकि, अदालत ने पाया कि इनमें से किसी भी संगठन ने घटना की जांच के लिए स्थल का दौरा नहीं किया था।
साउथ एशिया सॉलिडेरिटी ग्रुप: विवादित संगठन
लंदन स्थित साउथ एशिया सॉलिडेरिटी ग्रुप (SASG) की फाउंडर अमृत विल्सन पर भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप है। विल्सन ने नए संसद भवन के उद्घाटन को लेकर विवादित बयान दिए और हल्द्वानी में बुलडोजर कार्रवाई पर सरकार की निंदा की।
इस समूह की सदस्य निर्मला राजसिंघम पर भी श्रीलंका के आतंकी संगठन लिट्टे (LTTE) से जुड़े होने का आरोप है। अदालत ने इन संगठनों की भूमिका को संविधान की भावना के खिलाफ बताया।
चंदन के पिता का आरोप: हत्या के पीछे कट्टरपंथी साजिश
चंदन गुप्ता के पिता सुशील गुप्ता ने आरोप लगाया कि हत्या के आरोपियों को बचाने के लिए महंगे वकील नियुक्त किए गए और इसके लिए विदेशी फंडिंग का सहारा लिया गया। उन्होंने दावा किया कि आरोपियों को पाकिस्तान और अन्य देशों से आर्थिक मदद मिली।
एनआईए कोर्ट ने इन आरोपों को गंभीरता से लिया और सरकार से मामले की जांच की सिफारिश की। यह भी कहा गया कि ऐसे एनजीओ को विदेशों से फंडिंग रोकने के लिए ठोस कदम उठाए जाने चाहिए।
अदालत की टिप्पणी और सरकार की जिम्मेदारी
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि विदेशी फंडिंग के जरिए दोषियों को कानूनी मदद उपलब्ध कराना संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। यह भारत की न्याय प्रणाली और सामाजिक सद्भाव पर सीधा प्रहार है।
केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। विदेशी फंडिंग और एनजीओ की संदिग्ध गतिविधियों की जांच के लिए सख्त कानून बनाए जाने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
चंदन गुप्ता हत्याकांड ने भारत में धार्मिक कट्टरता और विदेशी फंडिंग के खतरनाक गठजोड़ को उजागर किया है। इस घटना ने न्याय प्रणाली और संविधान की भावना पर गहरे सवाल खड़े किए हैं। सरकार और न्यायपालिका को इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए मिलकर काम करना चाहिए।
भारत के विकास और सामाजिक सद्भाव के लिए यह आवश्यक है कि विदेशी फंडिंग और एनजीओ की गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रखी जाए। इस मामले में एनआईए कोर्ट का फैसला एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन इसे लागू करना और दोषियों को सजा देना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए।