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निकिता सिंघानिया के खिलाफ दर्ज आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले पर कर्नाटक हाई कोर्ट की टिप्पणी

कर्नाटक हाई कोर्ट ने निकिता सिंघानिया द्वारा अपने खिलाफ दर्ज आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले को रद्द करने की याचिका पर सख्त टिप्पणी की। अदालत ने मामले की गंभीरता को समझते हुए जांच को आगे बढ़ाने का आदेश दिया। इस मामले में आरोप है कि निकिता और उसके परिवार ने अतुल सुभाष को मानसिक रूप से उत्पीड़ित किया था, जिसके कारण उसने आत्महत्या कर ली। कोर्ट ने इस मुद्दे को संज्ञान में लेते हुए मामले की सुनवाई जारी रखने का फैसला लिया है। आइए इस पूरे घटनाक्रम पर एक विस्तृत नजर डालते हैं।


कर्नाटक हाई कोर्ट का कड़ा रुख

6 जनवरी, 2025 को कर्नाटक हाई कोर्ट ने निकिता सिंघानिया की याचिका पर सुनवाई की, जिसमें उसने अपने खिलाफ दर्ज FIR को रद्द करने की मांग की थी। इस FIR में आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया था। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से यह कहा कि शिकायत और FIR में सभी जरूरी जानकारी दी गई है, और यह मामला ऐसे आरोपों से नहीं बच सकता जिसे खारिज किया जा सके। कोर्ट ने कहा, "इस शिकायत के बारे में मेरा मानना है कि FIR में सारी बातें लिखी गई हैं और यह ऐसा मामला नहीं है, जिसे खारिज किया जाए।"

हाई कोर्ट के न्यायाधीश SR कृष्णा कुमार ने यह भी कहा कि यदि कोई मामला खुद ही संज्ञेय अपराध नहीं बनता, तो उसे रद्द किया जा सकता है। लेकिन इस मामले में शिकायत और FIR की सामग्री को देखकर ऐसा नहीं लगता कि इसे खारिज किया जा सकता है। अदालत ने पुलिस से भी मामले में और तथ्यों की जानकारी मांगी और पूछा कि अब तक क्या नई जानकारी जुटाई गई है। कोर्ट ने इस मामले की गंभीरता को समझते हुए जांच को आगे बढ़ाने का फैसला लिया और इसे निपटाने की कोई संभावना नहीं दिखी।


आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप

अतुल सुभाष ने 9 दिसंबर, 2023 को बेंगलुरु स्थित अपने फ्लैट में आत्महत्या कर ली थी। इसके बाद उसने एक सुसाइड नोट और वीडियो जारी किया था, जिसमें उसने आरोप लगाया कि निकिता और उसके परिवार ने उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित किया, जिसके कारण उसने आत्महत्या का कदम उठाया। सुसाइड नोट और वीडियो में यह दावा किया गया कि अतुल की सैलरी का बड़ा हिस्सा निकिता को गुजरा भत्ता के रूप में दिया गया था और उसके बेटे से भी उसे मिलने नहीं दिया गया।

इससे पहले भी कई मामलों में आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप लग चुके थे, लेकिन इस मामले में विशेष बात यह है कि अतुल ने अपनी स्थिति को लेकर खुलकर अपने सुसाइड नोट में स्पष्ट किया था। उसने अपनी मानसिक स्थिति और उसके परिवार के उत्पीड़न को लेकर विस्तार से जानकारी दी थी। अतुल के अनुसार, उसके पास आत्महत्या के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचा था। अतुल का यह वीडियो और सुसाइड नोट पुलिस के लिए महत्वपूर्ण साक्ष्य बन गए थे।


निकिता की गिरफ्तारी और जमानत

आत्महत्या के बाद, पुलिस ने निकिता सिंघानिया और उसके परिवार के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने की FIR दर्ज की। इसमें निकिता, उसके माता-पिता और भाई के नाम शामिल थे। पुलिस ने इस मामले की जांच शुरू की और 4 जनवरी, 2025 को निकिता को बेंगलुरु में गिरफ्तार कर लिया था। गिरफ्तारी के बाद, निकिता ने जमानत के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

निचली अदालत ने उसे जमानत दे दी, और यह निर्णय एक महत्वपूर्ण मोड़ था। जमानत मिलने के बाद, निकिता का प्रयास अब यह था कि यह पूरा मामला ही खत्म कर दिया जाए। हालांकि, कर्नाटक हाई कोर्ट ने इस मामले को खारिज करने से इनकार करते हुए इसे आगे की सुनवाई के लिए स्थगित कर दिया। कोर्ट ने इस मामले में फिर से मामले की जांच की जरूरत जताई, ताकि पूरी सच्चाई सामने आ सके और आरोपों की सही जांच हो सके।


अदालत का जांच को लेकर रुख

कर्नाटक हाई कोर्ट ने इस मामले में एक अहम सवाल उठाया। अदालत ने कहा, "ऐसे मामले में जांच को निपटाने करने का सवाल ही कहाँ है, आप क्यों नहीं चाहती कि जांच हो?" यह सवाल निकिता के प्रयासों के संदर्भ में उठाया गया था, जो मामले की जांच को रोकने की कोशिश कर रही थी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसे गंभीर आरोपों के संदर्भ में मामले की जांच पूरी करनी होगी ताकि न्याय दिलवाया जा सके।

इस टिप्पणी के बाद यह स्पष्ट हो गया कि हाई कोर्ट किसी भी हालत में जांच को रोकने या रद्द करने की प्रक्रिया को स्वीकार नहीं करेगा। कोर्ट ने इस मामले में एक बार फिर से स्पष्ट किया कि आत्महत्या के लिए उकसाने के मामलों में विशेष सतर्कता बरतनी चाहिए, और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि आरोपों की पूरी जांच हो। अदालत ने यह भी कहा कि अगर जांच के बाद कोई सुसंगत अपराध नहीं बनता तो उसे रद्द किया जा सकता है, लेकिन इस समय यह फैसला जल्दबाजी में नहीं लिया जा सकता।


कर्नाटक हाई कोर्ट की गंभीरता

इस मामले में कर्नाटक हाई कोर्ट की गंभीरता स्पष्ट दिखाई देती है। अदालत ने न केवल निकिता की याचिका को खारिज किया, बल्कि जांच की दिशा को भी पूरी तरह से नियंत्रित किया। अदालत के इस रुख से यह साफ हो गया कि आत्महत्या के लिए उकसाने जैसे मामलों में कानून का पालन सख्ती से किया जाएगा और आरोपों की सच्चाई का पता लगाने के लिए सभी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया जाएगा।

निकिता सिंघानिया और उसके परिवार के खिलाफ लगाए गए आरोप गंभीर हैं और अदालत इन आरोपों पर पूरी तरह से ध्यान दे रही है। कोर्ट ने पुलिस को यह निर्देश दिया है कि वह जांच में कोई कोताही न बरते और मामले की सही जांच पूरी करे। इससे यह भी संकेत मिलता है कि न्याय की प्रक्रिया को पूरी तरह से निष्पक्ष और पारदर्शी रूप से किया जाएगा।


अतुल सुभाष का परिवार और उनकी पीड़ा

इस मामले में एक और महत्वपूर्ण पक्ष है अतुल सुभाष का परिवार। अतुल की मां और भाई ने भी इस मामले में आरोप लगाए थे कि निकिता और उसके परिवार ने अतुल को मानसिक रूप से प्रताड़ित किया, जिसके कारण वह आत्महत्या करने पर मजबूर हुआ। परिवार के सदस्यों ने यह भी दावा किया कि अतुल की सैलरी का बड़ा हिस्सा निकिता को दिया जाता था, जिससे उसकी आर्थिक स्थिति प्रभावित हुई थी।

अतुल के परिवार ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी और उनकी शिकायत पर ही FIR दर्ज की गई थी। अतुल के परिवार का कहना है कि उन्होंने कई बार निकिता और उसके परिवार से मदद की गुहार लगाई थी, लेकिन इसके बावजूद उन्हें कोई राहत नहीं मिली। इस संदर्भ में अब कर्नाटक हाई कोर्ट में सुनवाई हो रही है और कोर्ट इस पूरे मामले की गहराई से जांच करने के लिए प्रतिबद्ध है।


समाप्ति और आगे की कानूनी प्रक्रिया

कर्नाटक हाई कोर्ट ने निकिता सिंघानिया की याचिका को खारिज करते हुए मामले की आगे की सुनवाई के लिए तारीख निर्धारित की है। इस पूरे घटनाक्रम से यह साफ हो गया है कि आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में अदालत सख्त रुख अपनाएगी और किसी भी आरोपी को जांच से बचने का अवसर नहीं दिया जाएगा।

इस मामले में आगे की कानूनी प्रक्रिया के तहत और भी तथ्य सामने आ सकते हैं, जो इस मामले की दिशा तय करेंगे। फिलहाल, अदालत ने जांच को रोकने का कोई आदेश नहीं दिया है, और यह उम्मीद की जाती है कि जांच पूरी होने के बाद इस मामले में सच्चाई सामने आएगी।