केरल हाई कोर्ट ने 6 जनवरी को एक मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि महिला के शरीर की बनावट को ‘बढ़िया’ या ‘मस्त’ कहना प्रथम दृष्टया यौन उत्पीड़न की श्रेणी में आता है। न्यायालय ने IPC की धारा 354A(1)(iv), 509 और केरल पुलिस अधिनियम, 2011 की धारा 120 के तहत दर्ज अपराधों को रद्द करने से इनकार कर दिया। अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि आरोपित ने महिला पर अश्लील टिप्पणी और संदेश भेजकर उसकी गरिमा को ठेस पहुँचाई। अदालत ने इसे गंभीर अपराध मानते हुए याचिकाकर्ता की दलील को खारिज कर दिया।
महिला के शरीर पर टिप्पणी: यौन उत्पीड़न का प्रथम दृष्टया अपराध
केरल हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि महिला के शरीर की बनावट पर टिप्पणी करना यौन उत्पीड़न के दायरे में आता है। अदालत ने इसे IPC की धारा 354A(1)(iv) के तहत गंभीर अपराध माना। जस्टिस ए. बदरुद्दीन ने अपने फैसले में कहा कि इस प्रकार की टिप्पणियाँ महिला की गरिमा को ठेस पहुँचाने और उसकी निजता में दखल देने का प्रयास होती हैं।
इस मामले में आरोपित ने महिला की शारीरिक बनावट को लेकर टिप्पणी की थी, जिसे अदालत ने यौन रूप से प्रेरित माना। यह टिप्पणी न केवल महिला के आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाती है, बल्कि समाज में महिलाओं के प्रति असम्मानजनक दृष्टिकोण को भी बढ़ावा देती है।
न्यायालय ने इस मामले में याचिकाकर्ता द्वारा अपराध को रद्द करने की मांग को खारिज कर दिया। यह निर्णय यह दर्शाता है कि न्यायालय महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के प्रति प्रतिबद्ध है।
IPC की धारा 354A और धारा 509 का महत्व
IPC की धारा 354A:
यह धारा महिलाओं को यौन उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करती है। इसके अंतर्गत किसी महिला पर यौन रूप से भड़काऊ टिप्पणी करना, अश्लील संकेत देना या उसकी गरिमा को ठेस पहुँचाने वाला कोई भी कार्य अपराध माना जाता है।
IPC की धारा 509:
यह धारा महिला की गरिमा और आत्मसम्मान की रक्षा करती है। यदि कोई व्यक्ति किसी महिला की निजता में दखल देने या उसकी गरिमा को ठेस पहुँचाने का प्रयास करता है, तो उसे इस धारा के तहत दंडित किया जा सकता है।
इस मामले में अदालत ने दोनों धाराओं का हवाला देते हुए कहा कि आरोपित ने इन प्रावधानों का उल्लंघन किया है। यह न्यायालय का कर्तव्य है कि वह महिलाओं के सम्मान और गरिमा की रक्षा करे।
अभियोजन पक्ष के आरोप और बचाव पक्ष की दलील
अभियोजन पक्ष ने अदालत में यह तर्क दिया कि आरोपित ने महिला के शरीर की बनावट पर टिप्पणी करते हुए उसकी गरिमा को ठेस पहुँचाई। इसके अलावा, आरोपित ने महिला के मोबाइल नंबर पर यौन रूप से भड़काऊ संदेश भी भेजे। अभियोजन पक्ष ने इसे यौन उत्पीड़न का स्पष्ट मामला बताया।
दूसरी ओर, बचाव पक्ष ने दावा किया कि आरोपित ने केवल महिला की शारीरिक संरचना को ‘अच्छा’ कहा था। उन्होंने इसे IPC की धारा 354A(1)(iv) और 509 के तहत अपराध मानने से इनकार किया। हालांकि, अदालत ने बचाव पक्ष की इस दलील को खारिज कर दिया और कहा कि ऐसी टिप्पणियाँ महिला की गरिमा को ठेस पहुँचाने वाली होती हैं।
न्यायालय की टिप्पणी: महिलाओं की गरिमा की रक्षा आवश्यक
न्यायालय ने इस मामले में स्पष्ट किया कि महिलाओं की गरिमा और आत्मसम्मान की रक्षा करना समाज और कानून दोनों की जिम्मेदारी है। किसी महिला पर अश्लील टिप्पणी करना या उसकी निजता में दखल देना गंभीर अपराध है।
अदालत ने कहा कि महिला की गरिमा को ठेस पहुँचाने के इरादे से कोई भी शब्द, संकेत, या व्यवहार IPC की धारा 509 के तहत अपराध है। यह महिलाओं के अधिकारों और सम्मान की रक्षा के लिए आवश्यक है कि ऐसे अपराधों पर सख्त कार्रवाई की जाए।
केरल पुलिस अधिनियम और सार्वजनिक व्यवस्था का उल्लंघन
केरल पुलिस अधिनियम, 2011 की धारा 120 सार्वजनिक व्यवस्था और महिला की गरिमा का उल्लंघन करने वाले कृत्यों से संबंधित है। इस धारा के तहत किसी महिला पर यौन उत्पीड़न की टिप्पणी करना अपराध है।
अदालत ने कहा कि इस मामले में आरोपित का कृत्य इस धारा के तहत भी अपराध माना जाएगा। यह स्पष्ट है कि इस प्रकार की टिप्पणियाँ केवल व्यक्तिगत अधिकारों का हनन नहीं करतीं, बल्कि समाज में सार्वजनिक शांति और व्यवस्था को भी भंग करती हैं।
याचिकाकर्ता की दलील को खारिज किया गया
याचिकाकर्ता ने अदालत में तर्क दिया कि महिला की शारीरिक संरचना पर टिप्पणी करना अपराध नहीं है। उन्होंने इसे सामान्य बातचीत का हिस्सा बताया। लेकिन अदालत ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि इस प्रकार की टिप्पणियाँ महिला की गरिमा और निजता का उल्लंघन करती हैं।
न्यायालय ने कहा कि यह आवश्यक है कि समाज में महिलाओं के प्रति सम्मानजनक दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया जाए। इस प्रकार की घटनाएँ समाज में असमानता और भेदभाव को जन्म देती हैं।
निष्कर्ष: महिला अधिकारों की रक्षा में सख्त कदम
केरल हाई कोर्ट का यह निर्णय महिलाओं के अधिकारों और सम्मान की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि महिलाओं के खिलाफ किसी भी प्रकार की अपमानजनक टिप्पणी या व्यवहार अस्वीकार्य है।
इस प्रकार के फैसले समाज में महिलाओं के प्रति सम्मान और उनके अधिकारों की सुरक्षा को सुनिश्चित करते हैं। न्यायालय का यह रुख महिलाओं की गरिमा और आत्मसम्मान की रक्षा के लिए एक साहसिक और सराहनीय कदम है।