चीन और भारत, दोनों ही एशिया के प्रमुख देश हैं, लेकिन अनुसंधान और विकास (R&D) में निवेश और इसके परिणामों के मामले में भारी अंतर है। चीन हर साल $496.32 बिलियन अनुसंधान और विकास पर खर्च करता है, जबकि भारत केवल $17.2 बिलियन खर्च करता है। इस खर्च का असर भी साफ दिखता है—चीन ने DeepSeek AI, 6वीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान, और कृत्रिम सूर्य जैसी कई तकनीकी उपलब्धियाँ हासिल कर ली हैं, जबकि भारत अभी भी आरक्षण की राजनीति में उलझा हुआ है।
यह लेख भारत और चीन की R&D नीतियों, उनकी प्राथमिकताओं और उनके परिणामों की तुलना करेगा।
चीन और भारत की R&D रणनीतियाँ
चीन की R&D रणनीति
चीन का अनुसंधान और विकास का बजट दुनिया में दूसरे नंबर पर है। यह देश अपनी तकनीकी प्रगति को राष्ट्रीय प्राथमिकता मानता है। चीनी सरकार ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), अंतरिक्ष अनुसंधान, क्वांटम कंप्यूटिंग, और जैव-प्रौद्योगिकी को मजबूत करने के लिए कई बड़े कार्यक्रम चलाए हैं।
कुछ प्रमुख उपलब्धियाँ:
- DeepSeek AI – चीन का अपना उन्नत भाषा मॉडल, जो AI के क्षेत्र में अमेरिका को टक्कर दे रहा है।
- 6वीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान – स्टील्थ तकनीक से लैस नए लड़ाकू विमानों का विकास।
- कृत्रिम सूर्य (EAST) – चीन ने एक ऐसा रिएक्टर बनाया है, जो सौर ऊर्जा को कृत्रिम रूप से उत्पन्न करने में सक्षम है।
इन परियोजनाओं का उद्देश्य चीन को तकनीकी और सैन्य रूप से आत्मनिर्भर बनाना है ताकि वह वैश्विक शक्ति बन सके।
भारत की R&D रणनीति
भारत में अनुसंधान और विकास के लिए सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का केवल 0.7% ही खर्च किया जाता है, जबकि चीन का यह आंकड़ा 2.4% से अधिक है।
भारत में:
- बजट का बड़ा हिस्सा सामाजिक कल्याण योजनाओं और वोट बैंक की राजनीति पर खर्च होता है।
- आरक्षण आधारित नीतियों के कारण वैज्ञानिक और तकनीकी प्रतिभाओं को पर्याप्त अवसर नहीं मिलते।
- सरकार की प्राथमिकता अनुसंधान की बजाय राजनीतिक लाभ उठाना है।
भारत में आरक्षण की राजनीति और इसके दुष्प्रभाव
1. प्रतिभाओं का पलायन (Brain Drain)
हर साल हजारों भारतीय वैज्ञानिक और इंजीनियर अमेरिका, कनाडा, यूरोप और चीन जैसे देशों में जाकर शोध कार्य करते हैं।
- अगर भारत में बेहतर R&D वातावरण होता, तो ये प्रतिभाएँ देश में रहकर भारत को आगे बढ़ा सकती थीं।
2. तकनीकी विकास में पिछड़ापन
भारत में AI, क्वांटम कंप्यूटिंग, और स्पेस टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में सीमित प्रगति हुई है।
- चीन और अमेरिका से तुलना करें, तो भारत अभी भी तकनीकी रूप से 10-15 साल पीछे है।
3. रक्षा क्षेत्र की कमजोरी
भारत को राफेल और अन्य आधुनिक हथियार खरीदने पड़ते हैं, जबकि चीन अपने लड़ाकू विमान और मिसाइलें खुद बनाता है।
- रूस और अमेरिका पर रक्षा जरूरतों के लिए निर्भर रहना भारत के लिए खतरे की घंटी है।
चीन का आत्मनिर्भरता मॉडल और भारत की राजनीति
चीन ने जिस तरह स्वदेशी तकनीक विकसित की, वह भारत के लिए एक उदाहरण हो सकता था। लेकिन भारत में:
- सरकारें आरक्षण और मुफ्त योजनाओं से वोट बैंक बनाने में लगी रहती हैं।
- अनुसंधान और शिक्षा को राजनीति से प्रभावित कर दिया गया है।
- विज्ञान और तकनीक में निवेश बढ़ाने की जगह, लोकलुभावन नीतियों पर अधिक ध्यान दिया जाता है।
चीन से सीखने की जरूरत
- तकनीकी आत्मनिर्भरता ही किसी देश को आर्थिक और सैन्य रूप से मजबूत बनाती है।
- शिक्षा और अनुसंधान में गुणवत्ता को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, न कि जाति आधारित नीतियों को।
- सरकार को वैज्ञानिक सोच और नवाचार को प्रोत्साहित करना चाहिए।
निष्कर्ष
अगर भारत को वैश्विक स्तर पर चीन और अमेरिका जैसी महाशक्तियों से मुकाबला करना है, तो उसे अपनी प्राथमिकताओं को बदलना होगा। आरक्षण और राजनीति पर ध्यान देने की बजाय, अनुसंधान और विकास को प्राथमिकता देनी होगी।
- जब तक भारत तकनीकी रूप से आत्मनिर्भर नहीं होगा, तब तक उसे दूसरे देशों से रक्षा उपकरण खरीदने पड़ेंगे, विदेशी कंपनियों पर निर्भर रहना पड़ेगा, और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पीछे रहना पड़ेगा।
भारत को विज्ञान, तकनीक और नवाचार पर जोर देना होगा, तभी वह चीन को टक्कर दे सकता है। अन्यथा, भारत वोट खरीदता रहेगा और चीन तकनीक बनाता रहेगा।

