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वक्फ बिल पर JPC में BJP का दबदबा, सत्ता पक्ष के सभी संशोधन मंजूर, विपक्ष बेअसर

खबर का सारांश:

वक्फ बोर्ड बिल पर जॉइंट पार्लियामेंट कमेटी (जेपीसी) की बैठक सोमवार को हुई, जिसमें बीजेपी और एनडीए ने अपने संशोधनों को बहुमत के आधार पर मंजूरी दिलाई। विपक्षी सांसदों ने इस प्रक्रिया का विरोध करते हुए हंगामा किया और आरोप लगाया कि यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया का उल्लंघन है। जेपीसी के अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने बैठक को लोकतांत्रिक बताते हुए बताया कि हर संशोधन पर चर्चा की गई थी। जेपीसी की बैठक में वक्फ विधेयक के 14 खंडों पर बीजेपी और एनडीए द्वारा किए गए सभी संशोधनों को स्वीकार किया गया।


वक्फ संशोधन बिल पर जॉइंट पार्लियामेंट कमेटी की बैठक

सोमवार को वक्फ बोर्ड संशोधन बिल पर चर्चा करने के लिए जॉइंट पार्लियामेंट कमेटी (जेपीसी) की बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में बीजेपी और एनडीए ने अपने संशोधनों को बहुमत से पारित कराने में सफलता हासिल की, जबकि विपक्षी सांसदों ने इन संशोधनों का विरोध करते हुए हंगामा किया। जेपीसी के अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने बैठक के बाद संवाददाताओं से बात करते हुए कहा कि समिति द्वारा किए गए संशोधन कानून को बेहतर और अधिक प्रभावी बनाने के लिए किए गए थे।

जेपीसी की बैठक में वक्फ विधेयक के 14 खंडों पर बीजेपी और एनडीए द्वारा किए गए सभी संशोधनों को स्वीकार किया गया। वहीं, विपक्षी दलों द्वारा पेश किए गए संशोधन प्रस्तावों को ठुकरा दिया गया। इस प्रक्रिया ने एक बार फिर से संसद के भीतर विपक्ष और सरकार के बीच तल्खी को बढ़ा दिया। विपक्ष का आरोप है कि उनके संशोधनों को सुनने के बजाय उन्हें एकतरफा तरीके से खारिज कर दिया गया।


विपक्ष का आरोप: लोकतांत्रिक प्रक्रिया का उल्लंघन

विपक्षी सांसदों ने जेपीसी की बैठक की प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए। टीएमसी के सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा कि यह प्रक्रिया पूरी तरह से हास्यास्पद थी, और इसे तानाशाही तरीके से संचालित किया गया। उनका आरोप था कि विपक्ष की आवाज को नकारते हुए सभी उनके संशोधन खारिज कर दिए गए।

विपक्ष के नेताओं ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार और उसकी समर्थक पार्टियों ने पूरी प्रक्रिया को अपनी मर्जी से अंजाम दिया। उन्हें यह आशंका है कि इस विधेयक के जरिए वक्फ संपत्तियों पर सरकार का नियंत्रण बढ़ेगा, जो धार्मिक संस्थाओं की स्वायत्तता को कमजोर कर सकता है। विपक्ष का कहना था कि इस संशोधन विधेयक को पारित करने में जल्दबाजी की जा रही है, जिससे सभी पक्षों को अपनी बात रखने का उचित अवसर नहीं मिल पा रहा है।


बीजेपी और एनडीए का रुख: बहुमत से बदलाव की मंजूरी

बीजेपी और एनडीए के सांसदों ने इस बैठक में अपने सभी संशोधनों को बहुमत के आधार पर स्वीकार करवाया। जॉइंट पार्लियामेंट कमेटी की बैठक में, जहां विपक्षी सांसदों के प्रस्तावों को खारिज किया गया, वहीं बीजेपी और एनडीए ने वक्फ बोर्ड से संबंधित विधेयक में अपने संशोधन पेश किए और उन्हें मंजूरी दिलवाने में सफलता हासिल की।

बीजेपी और एनडीए ने बैठक में अपने संशोधनों को इस तर्क के साथ प्रस्तुत किया कि यह विधेयक वक्फ बोर्ड की कार्यप्रणाली को बेहतर बनाएगा और अधिक प्रभावी तरीके से काम करेगा। हालांकि, विपक्ष ने इस तर्क को नकारते हुए कहा कि सरकार का असली उद्देश्य वक्फ संपत्तियों का नियंत्रण बढ़ाना है, जो उनके अनुसार धार्मिक संस्थाओं के अधिकारों का उल्लंघन है।


जेपीसी बैठक के बाद का हंगामा और निलंबन

जेपीसी की पिछली बैठक में हुए हंगामे के कारण 10 विपक्षी सांसदों को निलंबित कर दिया गया था। इस निलंबन के बाद विपक्षी सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को पत्र लिखकर निष्पक्ष और संतुलित चर्चा कराने की मांग की थी। विपक्षी दलों का कहना था कि सरकार के पक्ष में एकतरफा तरीके से निर्णय लिए जा रहे हैं और उनके विचारों को नजरअंदाज किया जा रहा है।

इस निलंबन ने संसद के भीतर ही एक नई राजनीति को जन्म दिया है, जिसमें विपक्ष और सरकार के बीच लगातार टकराव देखने को मिल रहा है। विपक्षी सांसदों का कहना है कि यह घटना लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करती है और संसद की कार्यवाही को प्रभावित करती है।


विपक्ष के संशोधनों को खारिज करना और सरकार का रुख

जेपीसी की बैठक में, विपक्षी सांसदों ने विधेयक में सुधार के लिए कई संशोधन प्रस्ताव किए थे, लेकिन उन सभी को वोटिंग के जरिए खारिज कर दिया गया। विपक्षी सांसदों ने यह आरोप लगाया कि उनकी बातों को अनसुना किया गया और सभी उनके प्रस्तावों को अवैध तरीके से खारिज कर दिया गया।

विपक्षी नेताओं का कहना था कि यह विधेयक पूरी तरह से समय के खिलाफ है और इसे और अधिक विचार विमर्श की आवश्यकता है। कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने इस विधेयक के खिलाफ अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा था कि इस विधेयक के माध्यम से वक्फ संपत्तियों को हड़पने की एक साजिश की जा रही है और इसके जरिए देश में सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा दिया जा रहा है।


विधेयक का उद्देश्य और विपक्ष की आशंकाएं

वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के प्रशासन में सुधार करना और वक्फ संपत्तियों के मामलों को पारदर्शी तरीके से हल करना था। हालांकि, विपक्षी दलों का कहना है कि इस विधेयक के माध्यम से सरकार वक्फ संपत्तियों पर अपना नियंत्रण बढ़ाना चाहती है, जो उनके अनुसार धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ है।

विपक्ष ने यह भी आशंका जताई कि इस विधेयक के जरिए सरकार धार्मिक संस्थाओं के स्वायत्तता को खत्म करने की योजना बना रही है। उनका कहना था कि यह विधेयक न केवल धार्मिक स्वतंत्रता को खतरे में डाल सकता है, बल्कि इससे समुदायों के बीच तनाव भी बढ़ सकता है।


केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू की बैठक और एनडीए की रणनीति

जेपीसी बैठक से पहले केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने एनडीए सांसदों के साथ एक बैठक की थी और उन्हें एकजुट रहने की सलाह दी थी। इस बैठक में एनडीए के सांसदों को विधेयक के समर्थन में मतदान करने के लिए तैयार किया गया था। रिजिजू ने सांसदों को इस मुद्दे पर एकजुट रहने का आह्वान किया था, ताकि सरकार के संशोधन विधेयक को संसद में पारित करवाया जा सके।

रिजिजू ने यह भी कहा था कि सभी संशोधन विधेयक पर विचार किया जाएगा और जो भी सही होगा उसे मंजूरी दी जाएगी। उन्होंने एनडीए के सांसदों से आग्रह किया कि वे पार्टी के फैसले के अनुसार मतदान करें ताकि विधेयक आसानी से पारित हो सके।


लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला का कर्तव्य और विपक्ष की मांग

विपक्षी सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से इस मुद्दे पर हस्तक्षेप करने की मांग की थी। उनका कहना था कि सरकार और उनके पक्ष के सांसदों ने इस पूरी प्रक्रिया में विपक्ष की आवाज दबाई है। वे चाहते थे कि लोकसभा अध्यक्ष यह सुनिश्चित करें कि सभी सांसदों को अपनी बात रखने का पूरा अवसर मिले।

विपक्षी दलों का कहना था कि यह विधेयक बिना उचित चर्चा के पारित किया जा रहा है, और सरकार ने इसे जल्दीबाजी में रखा है, जिससे सभी पक्षों को अपनी राय व्यक्त करने का समय नहीं मिल पा रहा है।


निष्कर्ष: वक्फ बोर्ड संशोधन बिल की जटिलता

वक्फ बोर्ड संशोधन बिल की चर्चा ने संसद में एक बार फिर से विपक्ष और सरकार के बीच गंभीर मतभेदों को उजागर किया है। इस विधेयक के जरिए सरकार ने वक्फ बोर्ड के प्रशासन में सुधार करने का प्रस्ताव दिया है, जबकि विपक्षी दल इसे धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला मानते हैं। इस पूरी प्रक्रिया ने भारतीय राजनीति में नई चुनौतियाँ और सवाल खड़े किए हैं।


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