सुप्रीम कोर्ट ने 19 दिसंबर 2024 को भरण-पोषण और गुजारा भत्ता के मामलों पर एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाते हुए महिला कल्याण और पति-पत्नी के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर दिया। अदालत ने कहा कि ये कानून महिला कल्याण के लिए बनाए गए हैं, न कि पतियों को दंडित करने या उनसे जबरन वसूली का साधन बनाने के लिए। यह निर्णय वैवाहिक विवादों में बढ़ते कानूनी दुरुपयोग की पृष्ठभूमि में आया है।
सारांश
सुप्रीम कोर्ट ने गुजारा भत्ता और भरण-पोषण के मामलों पर महिलाओं और पतियों के अधिकारों और जिम्मेदारियों को स्पष्ट किया। अदालत ने कहा कि ये कानून महिला कल्याण के लिए हैं, न कि पतियों को दंडित करने के लिए। विवाह को एक पवित्र प्रथा बताते हुए कोर्ट ने वैवाहिक विवादों में कठोर कानूनी धाराओं के दुरुपयोग पर चिंता जताई। कोर्ट ने गुजारा भत्ता की मांग में व्यावसायिक सोच को खारिज करते हुए इसे उचित जीवन स्तर बनाए रखने का साधन बताया।
महिला कल्याण के लिए कानून, दंड के लिए नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि महिला कल्याण के लिए बनाए गए कानूनों का उद्देश्य महिलाओं को सुरक्षा और सम्मान देना है। कोर्ट ने चेतावनी दी कि इन कानूनों का उपयोग पतियों को दंडित करने, धमकाने या उनसे जबरन वसूली करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
कानून का दुरुपयोग: बढ़ती समस्या
अदालत ने पाया कि कई वैवाहिक मामलों में दुष्कर्म, क्रूरता और आपराधिक धमकी जैसे आरोप लगाए जाते हैं, जिनका अक्सर दुरुपयोग होता है। अदालत ने कहा कि ऐसे आरोपों के चलते पतियों और उनके परिवार को अत्यधिक मानसिक और आर्थिक तनाव झेलना पड़ता है।
विवाह: पवित्र प्रथा, व्यावसायिक समझौता नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने विवाह को एक पवित्र प्रथा बताया, जो परिवार की नींव होती है। कोर्ट ने कहा कि विवाह किसी व्यावसायिक समझौते की तरह नहीं देखा जा सकता।
भरण-पोषण की मांग में असंगति
अदालत ने कहा कि अक्सर महिलाएँ भरण-पोषण के लिए अपने पति की संपत्ति और आय के बराबर की राशि मांगती हैं। लेकिन यह मांग तभी की जाती है जब पति की आर्थिक स्थिति मजबूत हो।
गुजारा भत्ता: समानता का नहीं, जरूरत का आधार
सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि गुजारा भत्ता पति-पत्नी की आर्थिक समानता के लिए नहीं है, बल्कि आश्रित महिला को उचित जीवन स्तर प्रदान करने के लिए है। पति की मौजूदा वित्तीय स्थिति को ध्यान में रखते हुए ही यह तय किया जाना चाहिए।
मामले की पृष्ठभूमि: 5,000 करोड़ की संपत्ति विवाद
यह मामला एक महिला द्वारा अपने पति के खिलाफ दाखिल याचिका से जुड़ा है, जिसमें उसने तलाक के मामले को भोपाल से पुणे स्थानांतरित करने की माँग की थी।
पति की संपत्ति का दावा
महिला ने अपने पति की संपत्ति का दावा करते हुए कहा कि वह 5,000 करोड़ रुपए की संपत्ति का मालिक है, जिसमें भारत और अमेरिका में कई व्यवसाय और संपत्तियाँ शामिल हैं।पत्नी ने यह बताया था कि उसका अलग रह रहा पति अपनी पहली पत्नी को उससे अलग होने के बाद वर्जीनिया स्थित घर को छोड़कर कम से कम 500 करोड़ रुपए का भुगतान किया था।
हालाँकि, कोर्ट ने अलग रह रहे पति को आदेश दिया कि वह अलग रह रही अपनी पत्नी को अंतिम एवं एकमुश्त स्थायी गुजारा भत्ता के रूप में 12 करोड़ रुपए दे। यह राशि एक महीने के भीतर देने के लिए कहा। इसके साथ ही पति को तलाक भी दे दी। सर्वोच्च न्यायालय ने अलग रह रहे पति के खिलाफ पत्नी द्वारा दायर आपराधिक मामले को भी रद्द कर दिया।
अदालत का अंतिम निर्णय
अदालत ने अलग रह रहे पति को आदेश दिया कि वह अपनी पत्नी को 12 करोड़ रुपए का एकमुश्त गुजारा भत्ता दे। इसके साथ ही, पति को तलाक की मंजूरी दी गई और पत्नी द्वारा दायर आपराधिक मामला रद्द कर दिया गया।
महिलाओं को सावधान रहने की जरूरत
सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को चेताया कि वे इन कानूनों का सही उद्देश्य समझें। महिलाओं को यह जानने की आवश्यकता है कि ये कानून उनकी भलाई के लिए हैं, न कि पतियों को परेशान करने के लिए।
कंगाल पति से संपत्ति की मांग का सवाल
कोर्ट ने कहा कि यदि पति आर्थिक रूप से कमजोर हो जाता है, तो क्या पत्नी उसी आधार पर संपत्ति के बराबर भरण-पोषण की माँग करेगी? यह सवाल उठाकर अदालत ने इस मुद्दे पर गहराई से सोचने की जरूरत बताई।
अदालत का निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर दिया। अदालत ने कहा कि भरण-पोषण का उद्देश्य महिलाओं को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना है, न कि उन्हें पतियों से बराबरी की संपत्ति हासिल करने का अधिकार देना।
भरण-पोषण: सामाजिक न्याय का माध्यम
भरण-पोषण का मकसद महिलाओं को उचित जीवन स्तर प्रदान करना है। यह पति-पत्नी के बीच वित्तीय समानता लाने का साधन नहीं है। अदालत ने पतियों की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए एक न्यायसंगत दृष्टिकोण अपनाने की सलाह दी।
न्यायालय की सख्त टिप्पणी का महत्व
इस फैसले से यह साफ हो गया है कि कानून का दुरुपयोग न केवल पतियों के लिए हानिकारक है, बल्कि यह वैवाहिक संस्थान के मूल्यों को भी कमजोर करता है।
भविष्य के लिए संदेश
यह फैसला एक चेतावनी है कि वैवाहिक मामलों में दोनों पक्षों के अधिकारों और जिम्मेदारियों का सम्मान किया जाना चाहिए। महिला कल्याण के कानूनों का उद्देश्य समानता और सुरक्षा प्रदान करना है, न कि प्रतिशोध का साधन बनना।
यह निर्णय वैवाहिक विवादों में बढ़ते कानूनी दुरुपयोग पर रोक लगाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे पति-पत्नी के बीच न्यायपूर्ण और संतुलित दृष्टिकोण को बढ़ावा मिलेगा।