हिमाचल प्रदेश, जो एक समय में आर्थिक स्थिरता का प्रतीक था, आज भारी आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। राज्य में कॉन्ग्रेस की सरकार आने के बाद से स्थिति और बिगड़ गई है। करीब 2 लाख सरकारी कर्मचारियों और 1.5 लाख पेंशनरों को समय पर वेतन और पेंशन नहीं मिल रही है, जो कि हिमाचल के इतिहास में पहली बार हुआ है। राज्य पर कर्ज का बोझ भी बढ़ता जा रहा है, और इसके चलते राज्य सरकार के पास अपने खर्चों को पूरा करने के लिए भी पैसे नहीं बच रहे हैं। सरकार की आर्थिक नीतियों और चुनावी वादों ने राज्य की वित्तीय स्थिति को और गंभीर बना दिया है।
1. आर्थिक संकट के मुख्य कारण : हिमाचल प्रदेश की आर्थिक स्थिति में गिरावट का मुख्य कारण राज्य सरकार की नीतियां और उसके चुनावी वादे हैं। कॉन्ग्रेस सरकार के सत्ता में आने के बाद, राज्य पर कर्ज का बोझ तेजी से बढ़ा है। राज्य की आय और खर्च के बीच का अंतर भी गहराता जा रहा है, जिससे सरकार को अपने खर्च पूरे करने के लिए नए कर्ज लेने पड़ रहे हैं। सरकार द्वारा किए गए चुनावी वादों, जैसे पुरानी पेंशन स्कीम लागू करना, ने राज्य की वित्तीय स्थिति को और कमजोर कर दिया है। राज्य सरकार की नीतियों में आय के नए स्रोतों पर ध्यान न देने के कारण, राज्य की आर्थिक स्थिति और बिगड़ गई है।
2. वेतन और पेंशन में देरी : हिमाचल प्रदेश में पहली बार, राज्य के 2 लाख सरकारी कर्मचारियों और 1.5 लाख पेंशनरों को उनकी सैलरी और पेंशन समय पर नहीं मिली है। सितंबर माह के तीन दिन बीत जाने के बाद भी उन्हें वेतन और पेंशन नहीं मिली है। आमतौर पर हर महीने की पहली तारीख को वेतन और पेंशन मिल जाती है, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। पहले इसे बैंकिंग प्रणाली की देरी माना गया, लेकिन 2 और 3 तारीख को भी पैसे नहीं मिले। इसका मुख्य कारण राज्य की आर्थिक स्थिति को बताया जा रहा है, जिससे राज्य के कर्मचारियों और पेंशनरों में असंतोष बढ़ता जा रहा है।
3. राजकोषीय घाटा और कर्ज का बढ़ता बोझ : हिमाचल प्रदेश की आर्थिक स्थिति 2024-25 के बजट से स्पष्ट हो जाती है। राज्य सरकार ने इस वित्तीय वर्ष के लिए ₹58,444 करोड़ का बजट पेश किया था, जिसमें से ₹10,784 करोड़ का राजकोषीय घाटा है। यह घाटा राज्य की आय और खर्च के बीच के अंतर को दर्शाता है, जिसे सरकार को कर्ज लेकर पूरा करना पड़ रहा है। राज्य पर कुल कर्ज ₹88,000 करोड़ से भी अधिक हो गया है, जो राज्य की जीडीपी का 40% है। इसके अलावा, राज्य का राजकोषीय घाटा भी जीडीपी का 5% है, जो कि निर्धारित सीमा से काफी अधिक है।
4. पुरानी पेंशन स्कीम का असर : कॉन्ग्रेस सरकार ने अपने चुनावी वादे के अनुसार पुरानी पेंशन स्कीम (OPS) को लागू कर दिया था, जिसका राज्य की आर्थिक स्थिति पर भारी असर पड़ा है। इस स्कीम के लागू होने से राज्य पर पेंशन का बोझ और बढ़ गया है। वर्तमान में राज्य का पेंशन खर्च लगभग ₹10,000 करोड़ है, जो 2030-31 तक बढ़कर ₹19,728 करोड़ हो जाएगा। पेंशन पर होने वाला यह खर्च राज्य सरकार के कर्मचारियों को दी जाने वाली तनख्वाह के लगभग बराबर होगा। इस पेंशन स्कीम के कारण राज्य के अन्य विकास कार्यों के बजट में कटौती होने की संभावना है।
5. राज्य की आय और खर्च का असंतुलन : हिमाचल प्रदेश की आय के साधन सीमित हैं, और राज्य का खर्च उसकी आय से कहीं अधिक है। राज्य का खर्च उसकी आय और केंद्र से मिलने वाली सहायता से पूरा होता है, लेकिन फिर भी राज्य को कर्ज लेना पड़ता है। राज्य का अधिकांश बजट कर्ज चुकाने और कर्मचारियों की तनख्वाह और पेंशन देने में चला जाता है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में, राज्य सरकार ने अपने बजट का 66% केवल कर्ज, ब्याज, तनख्वाह और पेंशन पर खर्च किया है। इसके चलते राज्य के पास अन्य विकास कार्यों के लिए धन की कमी हो गई है।
6. सब्सिडी का बोझ : हिमाचल प्रदेश सरकार 2024-25 में लगभग ₹1200 करोड़ सब्सिडी पर खर्च करने वाली है, जिसमें सबसे बड़ा हिस्सा बिजली सब्सिडी का है। राज्य की आर्थिक स्थिति को देखते हुए, यह सब्सिडी भी एक भारी बोझ बन रही है। राज्य सरकार 125 यूनिट बिजली मुफ्त देती है, जो कि राज्य की आर्थिक स्थिति को और कमजोर कर रही है। इसके अलावा, राज्य सरकार महिलाओं को ₹1500 की सहायता राशि भी दे रही है, जिससे राज्य के बजट पर और दबाव बढ़ रहा है।
7. भविष्य की चुनौतियाँ : हिमाचल प्रदेश की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए राज्य सरकार को आय के नए स्रोतों पर ध्यान देना होगा। राज्य को अपनी आर्थिक नीतियों में सुधार करना होगा और कर्ज के बोझ को कम करने के लिए उपाय करने होंगे। राज्य की आर्थिक स्थिति को देखते हुए, यह अनुमान लगाया जा रहा है कि राज्य 2026-27 से 2030-31 के बीच तनख्वाह और पेंशन पर कुल ₹2.11 लाख करोड़ खर्च करेगा। इस स्थिति को सुधारने के लिए राज्य सरकार को केंद्र से विशेष मदद की जरूरत होगी।
8. कॉन्ग्रेस सरकार की आर्थिक नीतियाँ : कॉन्ग्रेस सरकार की आर्थिक नीतियाँ और उसके चुनावी वादे राज्य की वित्तीय स्थिति को कमजोर कर रहे हैं। पुरानी पेंशन स्कीम का लागू होना, राज्य पर कर्ज का बोझ बढ़ाना, और राज्य की आय के नए स्रोतों पर ध्यान न देना, राज्य की आर्थिक स्थिति को और बिगाड़ रहे हैं। राज्य सरकार को अपनी आर्थिक नीतियों में सुधार करने की जरूरत है, ताकि राज्य की आर्थिक स्थिति को सुधारा जा सके और राज्य के विकास कार्यों को गति मिल सके।
9. आर्थिक संकट के परिणाम : हिमाचल प्रदेश के आर्थिक संकट का सबसे बड़ा असर राज्य के कर्मचारियों और पेंशनरों पर पड़ा है। समय पर वेतन और पेंशन न मिलने के कारण उनके सामने आर्थिक समस्याएं खड़ी हो गई हैं। राज्य की आर्थिक स्थिति के कारण, सरकार को अपने विकास कार्यों में कटौती करनी पड़ रही है, जिससे राज्य के विकास पर भी असर पड़ रहा है। राज्य सरकार को इस आर्थिक संकट से उबरने के लिए त्वरित और सख्त कदम उठाने की जरूरत है।
10. निष्कर्ष : हिमाचल प्रदेश की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए राज्य सरकार को अपनी नीतियों में सुधार करना होगा। राज्य को अपनी आय के नए स्रोतों पर ध्यान देना होगा और कर्ज के बोझ को कम करने के उपाय करने होंगे। राज्य सरकार को पुरानी पेंशन स्कीम के फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए और राज्य की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए सख्त कदम उठाने चाहिए। अगर राज्य सरकार इस दिशा में सही कदम उठाती है, तो हिमाचल प्रदेश की आर्थिक स्थिति को सुधारा जा सकता है और राज्य के विकास कार्यों को गति मिल सकती है।