असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने राज्य में बांग्लादेशी घुसपैठियों की बढ़ती संख्या के खिलाफ चेतावनी दी है। उनका कहना है कि अगर यही हाल रहा तो 2044 तक असम इस्लाम बहुल हो जाएगा। इस मुद्दे पर उनकी चेतावनियाँ निराधार नहीं हैं, बल्कि वास्तविकताओं पर आधारित हैं।
असम के मुख्यमंत्री की चेतावनी :
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने हाल ही में चेतावनी दी है कि अगर बांग्लादेशी घुसपैठियों की बढ़ती तादाद को नहीं रोका गया, तो 2044 तक असम इस्लाम बहुल हो जाएगा। मुख्यमंत्री सरमा का यह बयान उनके राज्य के मौजूदा हालात और पिछले दशकों में हुए अनुभवों पर आधारित है।
1977-78 में घुसपैठ की घटना :
असम में बांग्लादेशियों की घुसपैठ की पहली बड़ी घटना 1977-78 में हुई थी, जब मंगलदोई की एक लोकसभा सीट पर 80000 वोटर एक साल में बढ़ गए थे। इस घटना ने सभी को चौंका दिया था। शिकायतों के बाद यह स्पष्ट हुआ कि यह वृद्धि बांग्लादेश से हुई घुसपैठ का परिणाम थी।
वोटर लिस्ट में बदलाव :
1977 के चुनावों के बाद मंगलदोई में 560297 मतदाता थे, लेकिन एक साल बाद यह संख्या 80000 बढ़ गई थी। इसमें से 70000 मतदाता मुस्लिम थे। इस घुसपैठ की जानकारी 'द लास्ट बैटल ऑफ सरायघाट' किताब में दी गई है। बाद में जांच के दौरान 70000 में से केवल 26900 ही वैध पाए गए, बाकी सब अवैध घुसपैठिए साबित हुए।
असम में वर्तमान स्थिति :
1977 से लेकर 2024 तक असम में हालात और भी भयावह हो गए हैं। मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा लगातार इस मुद्दे पर चेतावनी दे रहे हैं। उनका कहना है कि 2044 तक असम मुस्लिम बहुल हो जाएगा और बंगाल 2051 तक। उनका यह बयान राज्य की स्थिति को देखते हुए है, जहाँ मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ रही है।
धुबरी में मुस्लिम आबादी :
असम के धुबरी इलाके में मुस्लिम आबादी 85 प्रतिशत तक पहुँच गई है। पूरे राज्य में मुस्लिम आबादी 40 प्रतिशत तक पहुँच गई है, जबकि 1951 में यह संख्या केवल 12 प्रतिशत थी। इस जनसांख्यिकी बदलाव को मुख्यमंत्री सरमा जीवन और मृत्यु का मामला बताते हैं।
राजनैतिक और सामाजिक प्रभाव :
मुख्यमंत्री सरमा का मानना है कि राज्य में हिंदू बहुल इलाके धीरे-धीरे मुस्लिम बहुल हो रहे हैं। बांग्लादेश और पड़ोसी देशों से आए प्रवासियों के कारण संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है, जो असम की मूल जनता के लिए होने चाहिए। इस जनसांख्यिकी बदलाव को लेकर चिंता 1977-78 से ही उठाई जा रही है।
राज्यपाल एसके सिन्हा की रिपोर्ट :
1988 में असम के राज्यपाल एसके सिन्हा ने तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायण को पत्र लिखकर असम में हो रही अवैध घुसपैठ के मुद्दे की रिपोर्ट दी थी। पत्र में बांग्लादेशियों की बढ़ती तादाद और जनसांख्यिकी में हो रहे बदलाव की ओर ध्यान दिलाया गया था। इसे असमिया लोगों की पहचान और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बताया गया था।
गृह राज्य मंत्री की रिपोर्ट :
2004 में, गृह राज्य मंत्री श्रीप्रकाश जयसवाल ने भारतीय संसद में कहा था कि 31 दिसंबर 2001 तक देश में 12 मिलियन अवैध बांग्लादेशी थे, जिनमें से 5 मिलियन असम में थे। यह आंकड़ा बताता है कि असम में अवैध प्रवासियों का मुद्दा दशकों से चला आ रहा है और स्थिति बद से बदतर हो रही है।
मनोहर पार्रिकर रक्षा अध्य्यन एवं विश्लेषण संस्थान की रिपोर्ट :
2010 में मनोहर पार्रिकर रक्षा अध्य्यन एवं विश्लेषण संस्थान पर प्रकाशित रिपोर्ट में भी इस मुद्दे को उठाया गया था। नम्रता गोस्वामी की रिपोर्ट में बताया गया था कि कैसे असम राज्य को अवैध प्रवासियों का मुद्दा दशकों से परेशान कर रहा है और यह कैसे असमिया लोगों के जीवन जीने के तरीके को प्रभावित कर रहा है।
मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा की चिंता :
मुख्यमंत्री सरमा ने भी तथ्यों को आधार बनाते हुए अपनी चिंता जाहिर की है। उन्होंने कहा है कि जो भी उन्होंने कहा है वह तथ्यों और आँकड़ों के आधार पर है। अगर किसी को उन्हें झूठा साबित करना है तो तथ्यों को गलत बता सकता है, लेकिन इस सच को नहीं पलटा जा सकता कि राज्य में मुस्लिम बढ़ रहे हैं।
बंगाल और झारखंड की स्थिति :
मुख्यमंत्री सरमा ने अपने राज्य के साथ-साथ बंगाल और झारखंड में भी मुस्लिमों की बढ़ती संख्या पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा है कि बंगाल 2051 तक मुस्लिम बहुल हो जाएगा और झारखंड में भी मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ रही है। यह स्थिति पूरे देश के लिए खतरा बन सकती है।
निष्कर्ष :
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा की चेतावनियाँ और चिंता वास्तविकताओं पर आधारित हैं। बांग्लादेशी घुसपैठियों की बढ़ती तादाद को नकारना देश के लिए खतरे से कम नहीं है। यह न केवल असम बल्कि पूरे देश की जनसांख्यिकी, राष्ट्रीय सुरक्षा और सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित कर सकती है। इसे रोकने के लिए कड़े कदम उठाए जाने चाहिए।