यूरोप, पश्चिमी देश और अमेरिका, अब भारत के मामलों में दखल देना बंद करें। मुसलमानों के उत्पीड़न के लिए चिल्ल पों अब बंद होनी चाहिए। उनका उत्पीड़न है तो उन्हें अपने देशों में शरण दे सकते हैं।
अमेरिका की संस्था USCIRF 1998 में स्थापना के बाद से ही भारत के विरुद्ध मुस्लिमों के उत्पीड़न का आरोप लगाती रही है। शायद ही इसकी कोई रिपोर्ट आई हो जिसमें भारत की निंदा न की गई हो। अभी इस संस्था “अमेरिकी धार्मिक स्वतंत्रता आयोग” में एक भी हिंदू सदस्य नहीं रखा गया है और इसी से साबित होता है कि यह भारत के विरुद्ध नेरेटिव बनाने के लिए एकतरफा रिपोर्ट बनाता है।
ब्रिटेन के समाचार पत्र “डेली एक्सप्रेस” के असिस्टेंट एडिटर सैम स्टीवनसन भारत के लोकसभा चुनावों को कवर करने आए हुए हैं। उन्होंने कल खुल कर कहा कि यूरोप और पश्चिमी देशों ने अपने मीडिया के जरिए भारत के खिलाफ “नकारात्मक और पक्षपातपूर्ण” कहानियों के हुजूम लगा दिए हैं। जबकि जमीनी हकीकत है कि प्रधानमंत्रियों की चुनावी रैलियों में सांप्रदायिक सद्भाव की झांकी देखी जा सकती है।
स्टीवनसन ने कहा कि ब्रिटिश मीडिया कुछ जटिल चीज़ों को सतही रुप से देखने का प्रयास कर रहा है और मोदी को इस्लाम विरोधी बताते हैं जबकि मोदी की रैलियों में मुस्लिम महिलाओं समेत हर धर्म के लोग आते हैं। इस देश की समृद्ध विरासत और समग्रता को नज़रअंदाज किया जा रहा है। स्टीवनसन ने कहा कि भारत विरोधी बकवास के साथ भारत को नीचा दिखाने के प्रयास बंद होने चाहियें। दुर्भाग्य से पश्चिमी और यूरोप के देशों का नजरिया भारत एक लिए अच्छा नहीं है।
स्टीवनसन की बातों में मुझे और जोड़ना है कि ये पश्चिमी और यूरोपियन देश अपने मीडिया के जरिए ही भारत की नकारात्मक छवि नहीं बना रहे बल्कि उन्हें ऐसा करने में भारत के अनेक ढक्कन पत्रकार इन देशों में ही नहीं अमेरिका में भी बहरत के खिलाफ जहर पैदा करने में सहायक है और उनके काम में कुछ राजनेता भी भरपूर सहयोग कर रहे हैं। सैम पित्रोदा जैसे लोग तो अमेरिका में ही बैठे हुए हैं। मोदी को इस्लाम विरोधी बताने में इन विदेशी शक्तियों को भारत के राजनेता भी पूरा योगदान दे रहे हैं।
लेकिन ये पश्चिमी, यूरोपीय देश और अमेरिका आदि अपने अपने देशों में मुस्लिमों को दी हुई छूट से कैसे मकड़जाल में फंसते जा रहे हैं, उन्हें इसका आभास भी नहीं है। ब्रिटेन आज विभाजन के कगार पर खड़ा है, फ्रांस में जब मर्जी मुस्लिम आग लगाने में सक्षम हैं जैसे पिछले साल जनवरी में किया था और यही हाल जर्मनी और अन्य देशों का है।
ब्रिटेन को यह विभाजन का दिन देखना ही पड़ेगा क्योंकि उसने जितने भी देश आज़ाद किए उनमे केवल एक भारत के टुकड़े किए मुस्लिमो के लिए और उस “कुकर्म” का फल तो भुगतना पड़ेगा हर हाल में।
अमेरिका को ऐसा देखने में कुछ समय लगेगा लेकिन इस्लामिक फोबिया जिसका वह विरोध करता है, उसे ऐसा भुगतना पड़ेगा कि स्थिति को संभालना मुश्किल हो जायेगा। इसलिए बेहतर है अपने अपने मुल्कों को देखें, भारत पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है।
लेकिन इन देशों को समझना चाहिए कि भारत में मुस्लिमों के “उत्पीड़न” नाम की कोई चीज़ नहीं है क्योंकि अगर होती फिर मुस्लिम भारत में आ कर क्यों रहना चाहते हैं। पाकिस्तान बना कर भी पाकिस्तानी भारत आना चाहते हैं, बांग्लादेशी आए घुसपैठ करके और रोहिंग्या भी आए। यहां आने से बेहतर था चीन चले जाते।
लेकिन फिर भी अगर इन देशों को लगता है मुस्लिमों का “उत्पीड़न” हो रहा है तो जो भी “पीड़ित” हैं, उन्हें अपने यहां ले जाएं और शरण दे दें। इन देशों में जो मिल सकता है मुस्लिमों को, वह भारत नहीं दे सकता जैसे बेरोजगारी भत्ता।
भारतीय मामलों में पश्चिमी देशों और यूरोप के हस्तक्षेप की आलोचना, खासकर धार्मिक स्वतंत्रता और मुसलमानों के उत्पीड़न के संदर्भ में, एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।
पश्चिमी हस्तक्षेप और भारतीय संप्रभुता:
कई भारतीय नागरिक और नेता मानते हैं कि पश्चिमी देशों का भारतीय मामलों में हस्तक्षेप भारतीय संप्रभुता का उल्लंघन है। यह एक संवेदनशील मुद्दा है, जहां बाहरी देशों की नकारात्मक टिप्पणियों को भारतीय संप्रभुता के खिलाफ देखा जाता है। USCIRF (अमेरिकी धार्मिक स्वतंत्रता आयोग) द्वारा भारत पर की जाने वाली रिपोर्ट्स में धार्मिक अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों के उत्पीड़न की बातें की जाती हैं। हालांकि, यह बात सही है कि यह संस्था भारतीय सरकार की नीतियों की आलोचना करती रही है, यह जरूरी नहीं कि ये रिपोर्ट्स हमेशा निष्पक्ष हों। भारतीय दृष्टिकोण से इसे एकतरफा देखा जा सकता है।
मीडिया और पश्चिमी देशों का दृष्टिकोण:
सैम स्टीवनसन की टिप्पणी बताती है कि पश्चिमी मीडिया अक्सर भारतीय राजनीति और समाज को एक नकारात्मक दृष्टिकोण से देखता है। यह मीडिया रिपोर्ट्स जमीनी हकीकत से मेल नहीं खाती हैं और सांप्रदायिक सद्भाव की झलक को नज़रअंदाज़ करती हैं।
पश्चिमी देशों की आंतरिक चुनौतियाँ:
पश्चिमी देश खुद भी आंतरिक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, खासकर मुसलमानों के मुद्दे पर। ब्रिटेन, फ्रांस, और जर्मनी में सामाजिक विभाजन और तनाव की स्थिति बनी रहती है। यह ध्यान देने योग्य है कि इन देशों में भी सांप्रदायिक सद्भाव की चुनौतियाँ हैं।
भारत में मुसलमानों की स्थिति:
भारतीय संदर्भ में मुसलमानों का उत्पीड़न एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा है। यह सही है कि भारत में मुस्लिम समुदाय के कई सदस्य सामान्य जीवन जी रहे हैं और विकास में भाग ले रहे हैं। फिर भी, कुछ घटनाएँ और नीतियाँ हैं जो विवादास्पद रही हैं और जिनके बारे में चर्चा की जाती है।
वैश्विक राजनीति और राजनयिक संबंध:
वैश्विक राजनीति में हर देश अपने हितों की रक्षा के लिए कार्य करता है। भारत और पश्चिमी देशों के बीच संबंधों में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। यह महत्वपूर्ण है कि दोनों पक्ष संवाद के माध्यम से एक-दूसरे की चिंताओं को समझें और समाधान निकालें। अंत में, यह महत्वपूर्ण है कि किसी भी देश की संप्रभुता का सम्मान किया जाए और आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप से बचा जाए। इसके साथ ही, संवाद और सहिष्णुता के माध्यम से वैश्विक समस्याओं का समाधान खोजा जा सकता है।