भारत की न्यायपालिका को हमेशा एक पवित्र और निष्पक्ष संस्था के रूप में देखा गया है। लेकिन समय-समय पर ऐसे मामले सामने आते हैं जो इस धारणा को चुनौती देते हैं और हमें यह सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि न्यायपालिका में सुधार की कितनी आवश्यकता है। नीचे दिए गए दो केस स्टडीज़ इस स्थिति को और स्पष्ट करते हैं।
केस नंबर एक:
एक मजदूर ने साइकिल चलाते हुए एक मर्सेडीज बेंज क्लास-A कार से टक्कर मार दी। वकील का दावा था कि "मर्सेडीज जैसी पवित्र कार" को नुकसान पहुंचाया गया है और इसे जघन्य अपराध की तरह देखा जाना चाहिए। जज ने तुरंत मजदूर को 14 दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया। यह फैसला दिखाता है कि न्यायपालिका में गरीब और मजदूर वर्ग के प्रति संवेदनशीलता की कमी है। ऐसा प्रतीत होता है कि न्यायालय की नजर में मजदूर का अपराध सिर्फ उसकी आर्थिक स्थिति के कारण ही गंभीर बना दिया गया।
केस नंबर दो :
एक 15 साल के बच्चे ने अपनी Porsche कार चलाते हुए दो लोगों को कुचल दिया, जिससे उनकी मृत्यु हो गई। वकील ने तर्क दिया कि बच्चा पुणे शहर के एक बड़े बिल्डर का संस्कारी पुत्र है और उसने जानबूझकर गलती नहीं की। जज ने बच्चे को 300 शब्दों का निबंध लिखने की शर्त पर जमानत दे दी। इस फैसले ने न्यायपालिका के प्रति जनता का विश्वास हिला दिया है। यह मामला दर्शाता है कि प्रभावशाली और अमीर लोगों को न्यायपालिका से विशेष लाभ मिल सकता है।
भारतीय न्यायपालिका की समस्याएँ :
1. वर्ग भेदभाव: उपरोक्त दोनों मामलों में न्यायपालिका के निर्णय वर्ग भेदभाव को स्पष्ट रूप से उजागर करते हैं। अमीर और प्रभावशाली लोगों को सजा देने में ढिलाई और गरीबों को कड़ी सजा देने की प्रवृत्ति न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सवाल खड़े करती है।
2. पक्षपातपूर्ण न्याय: न्यायपालिका के फैसलों में पक्षपात का आरोप नया नहीं है। प्रभावशाली और धनी व्यक्तियों को अक्सर कम सजा दी जाती है या उन्हें जमानत जल्दी मिल जाती है।
3. न्यायिक निष्क्रियता: कई मामलों में न्यायपालिका की धीमी गति से काम करने की प्रवृत्ति भी एक बड़ी समस्या है। जमानत, सुनवाई और निर्णय लेने की प्रक्रिया में देरी से न्याय का मखौल बनता है।
सुधार के उपाय:
1. न्यायाधीशों की जवाबदेही: न्यायपालिका की निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए न्यायाधीशों की जवाबदेही तय की जानी चाहिए। इसके लिए एक स्वतंत्र निगरानी समिति बनाई जा सकती है जो न्यायाधीशों के कार्यों की समीक्षा करे।
2. समान न्याय: सभी नागरिकों के लिए समान न्याय सुनिश्चित करना न्यायपालिका का मुख्य कर्तव्य है। इसके लिए एक सख्त आचार संहिता बनाई जानी चाहिए जो सभी न्यायाधीशों और वकीलों के लिए अनिवार्य हो।
3. न्यायिक प्रशिक्षण: न्यायाधीशों और वकीलों के लिए नियमित प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए ताकि वे सामाजिक और आर्थिक संदर्भ में न्याय करने के लिए संवेदनशील हों।
4. सुनवाई की गति बढ़ाना: न्यायालयों में मामलों की तेजी से सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिए। इसके लिए न्यायालयों में तकनीकी सुविधाओं का विस्तार किया जा सकता है।
5. जनता की भागीदारी: न्यायपालिका में जनता की भागीदारी बढ़ाई जानी चाहिए ताकि वे न्याय प्रक्रिया में विश्वास बनाए रखें। इसके लिए न्यायिक फैसलों को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराया जाना चाहिए और न्यायपालिका की कार्यप्रणाली में सुधार के लिए जनमत संग्रह कराया जा सकता है।
निष्कर्ष:
भारतीय न्यायपालिका को एक निष्पक्ष और प्रभावी संस्था बनाने के लिए गहन सुधार की आवश्यकता है। वर्ग भेदभाव, पक्षपात और न्यायिक निष्क्रियता जैसी समस्याओं को दूर करने के लिए ठोस कदम उठाए जाने चाहिए। जब तक न्यायपालिका में सुधार नहीं होता, तब तक न्याय की असली भावना को प्राप्त करना मुश्किल होगा। न्यायपालिका को अपने कर्तव्यों को निष्पक्षता, संवेदनशीलता और पारदर्शिता के साथ निभाना चाहिए ताकि देश के सभी नागरिकों को न्याय मिल सके।