मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रवि मलिथम के फेयरवेल कार्यक्रम के दौरान एक असाधारण घटना हुई, जिसमें मध्य प्रदेश अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष डी.के. जैन ने न्यायाधीशों के प्रति खरी-खरी बातें कहकर सबको चौंका दिया। यह वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें डी.के. जैन ने न्यायाधीशों के व्यवहार और न्यायालय की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए।
जजों के व्यवहार पर सवाल :
डी.के. जैन ने अपने संबोधन में कहा कि कई जज अधिवक्ताओं से असंयमित भाषा में बात करते हैं और मामूली कारणों से प्रकरणों को डिसमिस कर देते हैं। उन्होंने इसे न्यायाधीशों की गरिमा के प्रतिकूल बताते हुए कहा कि यह अधिवक्ताओं के लिए बेहद असुविधाजनक है। एक अधिवक्ता एक समय में एक से अधिक न्यायालय में उपस्थित नहीं रह सकता है, ऐसे में प्रकरणों को पासओवर करने की बजाय इसे डिसमिस कर देना उचित नहीं है। यह आम होता जा रहा है और अधिवक्ताओं को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
न्यायालय की कार्यप्रणाली पर आलोचना :
डी.के. जैन ने कहा कि न्यायालय में हजारों प्रकरण बिना सुनवाई के लंबित हैं। उन्होंने जजों से सवाल किया कि क्या यह उचित है? उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय को आम लोगों को न्याय देने की बजाय प्रकरणों का बोझ कम करने में अधिक रुचि है। इस संदर्भ में उन्होंने गर्मी छुट्टियों की भी आलोचना की और कहा कि यह छुट्टियां 5-10 दिन आगे बढ़ा दी गई हैं, जिससे बच्चों के स्कूल खुलने पर परेशानी होती है।
अधिवक्ताओं की समस्याएं :
डी.के. जैन ने यह भी कहा कि फाइनल सेक्शन में घंटों इंतजार करने के बाद भी कई बार प्रकरण का नंबर नहीं आता है। अगर कोई डिफॉल्ट आ जाता है तो इसकी भी गारंटी नहीं होती कि सुधार के बाद प्रकरण को सूचीबद्ध किया जाएगा। उन्होंने सुझाव दिया कि फाइनल सेक्शन में ही न्यायाधीशों की प्रतिनियुक्ति की जाए।
मुख्य न्यायाधीश की प्रतिक्रिया :
मुख्य न्यायाधीश रवि मलिथम ने अपने भाषण में कहा कि उनके कई दुश्मन हैं जो उनके करियर को प्रभावित करने में विफल रहे हैं। उन्होंने कहा कि उन्होंने हमेशा संविधान की सेवा की है। डी.के. जैन ने जाते हुए मुख्य न्यायाधीश से कहा कि वे मिनटों में समस्याओं को सुलझाने का सामर्थ्य रखते हैं, जाते-जाते ऐसा कर दें।
न्यायपालिका में कॉलेजियम सिस्टम की भूमिका :
इस घटना ने एक बार फिर से कॉलेजियम सिस्टम को विवादों में ला दिया है, जिसके तहत जज ही जज को चुनते हैं। इस प्रणाली पर पहले से ही कई सवाल उठते रहे हैं, और डी.के. जैन की इस आलोचना ने इस बहस को और प्रबल कर दिया है।
हमारा निष्कर्ष :
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में हुए इस फेयरवेल कार्यक्रम ने न्यायपालिका की कार्यप्रणाली और जजों के व्यवहार पर गंभीर सवाल उठाए हैं। अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष डी.के. जैन की खरी-खरी बातें न्यायपालिका के सुधार की आवश्यकता को उजागर करती हैं। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि इन मुद्दों पर न्यायपालिका किस प्रकार से प्रतिक्रिया देती है और क्या सुधारात्मक कदम उठाए जाते हैं।