Default Image

Months format

View all

Load More

Related Posts Widget

Article Navigation

Contact Us Form

404

Sorry, the page you were looking for in this blog does not exist. Back Home

Ads Area

लेपाक्षी मंदिर का इतिहास जिसके पिलर हवा में झूलते हैं जाने इस मंदिर के बारे में।

जैसा कि हम सब जानते हैं भारत में हजारों की संख्या में ऐसे कई मंदिर हैं जो अपने अनूठी वास्तु कला और पौराणिक इतिहास के लिए जाने जाते हैं इन मंदिरों में ऐसे कई वैज्ञानिक रहस्य छिपे हैं जिनके बारे में आज की विज्ञान भी पता लगाने में असमर्थ है। दोस्तों आज हम बात करेंगे आंध्र प्रदेश के अनंतपुर में स्थित सुप्रसिद्ध श्री वीरभद्र स्वामी मंदिर जिसको की लेपाक्षी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। आपको बता दें कि लेपाक्षी मंदिर भगवान शिव, भगवान विष्णु और वीरभद्र को समर्पित वह मंदिर है जिसमें सदियों से ऐसे कई रहस्य छिपे हैं जिसको आज तक सुलझाया नहीं जा सका है।


मंदिर का निर्माण :
अगर मंदिर के निर्माण की बात की जाए तो इसको लेकर दो मान्यताएं हैं, पहली मान्यता या मानी जाती है कि मंदिर का निर्माण अगस्त्य ऋषि ने करवाया था और यह मंदिर रामायण काल का है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यह भी बताया जाता है कि, जब लंका के राजा रावण माता सीता का अपहरण करके ले जा रहा था तब पक्षीराज जटायु ने माता सीता को बचाने के लिए लंका नरेश रावण से युद्ध किया था... जिसमें जटायु घायल होकर जमीन पर गिर पड़े थे जिसके बाद माता सीता की खोज में आए प्रभु श्री राम और लक्ष्मण को जटायु घायल अवस्था में मिले थे। प्रभु श्री राम ने करुणा भाव से जटायु को अपने गले से लगा लिया और उसी जगह पर उनका क्रिया कर्म किया था जिसके बाद यहां पर लेपाक्षी मंदिर अस्तित्वय में आया।

दूसरी मान्यता :
अगर हम दूसरी मान्यता की बात करें तो, वर्तमान दृश्य में मंदिर के निर्माण के बारे में जो प्रारंभिक प्रमाण मिलते हैं वह 1533 के दौरान विजयनगर साम्राज्य से संबंधित हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मंदिर में स्थित शिलालेख को देखकर यह जानकारी मिलती है कि मंदिर का निर्माण उस वक्त के विजयनगर के साम्राज्य के राजा अच्युत देवराय के अधिकारी विरूपन्ना और विरन्ना ने करवाया था।  कूर्मसेलम पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर विजयनगर साम्राज्य की वास्तु कला का एक बेहतरीन उदाहरण था और आज भी अगर वास्तुकला की बात की जाए तो इस मंदिर का कोई तोड़ नहीं है।

मंदिर की संरचना :
आपको बता दें कि लेपाक्षी का यह वीरभद्र स्वामी मंदिर अंदर से 2 बाड़ों में बंटा हुआ है, मंदिर के पहले बाड़े में प्रवेश के लिए तीन द्वार हैं.. जिसमें मुख्य द्वार पर एक शानदार गोपुरम का निर्माण किया गया है। उत्तरमुखी मुख्य मंदिर दूसरे बाड़े के केंद्र में स्थित है, तो वहीं मंदिर में गर्भगृह, अंतराल, प्रदक्षिणा मार्ग, मुखमंडप और कई स्तंभ वाला एक बरामदा भी मौजूद है। आपको बता दें कि मुखमंडप के समकोण एक पूर्व मुखी भगवान विष्णु को समर्पित मंदिर है और इस मंदिर के ठीक सामने भगवान शिव को भी समर्पित एक दूसरा मंदिर है जिन्हें पाप विनाशेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। इसके साथ ही एक तीसरा मंदिर भी है जो पार्वती तीर्थ कहलाता है।

भगवान विष्णु और भगवान शिव के मंदिर भी है मौजूद :
वहीं अगर हम मंदिर के गर्भगृह की बात करें तो यहां भगवान वीरभद्र विराजमान है। अगर आपको जानकारी ना हो तो आपको बता दें कि वीरभद्र भगवान शिव का क्रोधी स्वरूप माना जाता है, जो राजा दक्ष के यज्ञ समय माता सती द्वारा आत्मदाह किए जाने के बाद अवतरित हुए थे। साथ ही गर्भगृह और अंतराल से जुड़े हुए 3 तीर्थ और भी मौजूद हैं.. जो रामलिंग तीर्थ, भद्रकाली तीर्थ और हनुमलिंग तीर्थ कहे जाते हैं और ये तीनों ही तीर्थ पूर्व मुखी हैं। इसके अलावा मुख्य मंडप के उत्तरी भाग में नव ग्रहों को समर्पित वेदी भी मौजूद है। इस मंदिर का मुख्य आकर्षण मंदिर का महामंडप है जो कि कई स्तंभों से मिलकर बना हुआ है, जिसमें मानव आकार के तुंबुरा, ब्रह्मा, दत्तात्रेय, नारद, रंभा, पद्मिनी और नटराज की मूर्तियां निर्मित की गई है।

इस मंदिर का झूलता पिलर आज भी है बड़ा रहस्य :
इस मंदिर में ऐसे कई रहस्य छिपे हैं जिनका वैज्ञानिक कारण आज का विज्ञान भी पता लगाने में असमर्थ है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस मंदिर में एक स्तंभ ऐसा है जो जमीन से आधा इंच ऊपर है अर्थात हवा में लटका हुआ है। आपको बता दें कि अंग्रेजों के समय भी कई बार अंग्रेज सरकार के तरफ से इस हैंगिंग पिलर का रहस्य जानने का प्रयत्न किया गया लेकिन सब व्यर्थ रहा। अंग्रेज के अधिकारियों ने इस स्तंभ को उसकी जगह से हटाने का भी प्रयास किया था लेकिन वह विफल रहे। पहले तो ऐसा लगता था कि इस स्तंभ का मंदिर  से कोई जुड़ाव नहीं है और ना ही कोई योगदान है, लेकिन जब स्तंभ को हटाने का प्रयास किया गया तब मंदिरों के दूसरे हिस्सों में भी कंपन जैसी स्थिति पैदा हुई थी... इसलिए यह कहा जा सकता है कि यह हैंगिंग पिलर हो सकता है कि मंदिर का वह हिस्सा हो जो मंदिर को मजबूती के साथ जोड़े रखता है।

सिर्फ हैंगिंग पिलर ही नहीं बल्कि इसके अलावा इस मंदिर में एक पैर का निशान भी स्थित है जिसे त्रेतायुग का माना जाता है। कई मान्यताओं के अनुसार तो यह भी कहा जाता है कि ये पैर का निशान और किसी का नहीं बल्कि भगवान श्रीराम का है.. जबकि कई लोगों का यह भी कहना है कि यह पैर का निशान प्रभु श्री राम की पत्नी माता सीता का है।

आपकी प्रतिक्रिया

खबर शेयर करें

Post a Comment

Please Allow The Comment System.*