UP के बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी के दादा आजादी से पहले इंडियन नेशनल कांग्रेस (INC) के अध्यक्ष रहे। नाना महावीर चक्र विजेता तो चाचा देश के उप-राष्ट्रपति रहे। मऊ से पिछले पांच बार से विधायक मुख्तार अंसारी के परिवार का एक गौरवशाली इतिहास रहा है। मगर खुद मुख्तार जुर्म के रास्ते पर चल पड़ा। 40 से ज्यादा मुकदमें सिर पर लिए वो पिछले 13 सालों से जेल में बंद है। जितने मुकदमे हैं उतने ही दुश्मन भी।
उत्तरप्रदेश की राजनीति में जब भी बाहुबली नेताओं की गिनती की जाती है उसमें मुख्तार अंसारी का नाम जरूर आता है। मुख्तार अंसारी पर 40 से ज्यादा मुकदमें दर्ज हैं और वह पिछले 14 सालों से जेल में बंद है। साथ ही मुख्तार UP की मऊ विधानसभा सीट से लगातार पांचवीं बार विधायक है। मुख्तार अंसारी की पहचान माफिया डॉन के रूप में भी है। आइए जानते हैं इस बाहुबली के बारे में कुछ ख़ास बातें…
मुख्तार के खिलाफ 40 से ज्यादा संगीन मामले
UP के मऊ की कहानी भी बहुत अजीब है। बीते 5 बार से जो उनका विधायक है। वो पिछले 13 सालों से जेल में ही बंद है। मर्डर, किडनैपिंग और एक्सटॉर्शन जैसी दर्जनों संगीन वारदातों के आरोप में मुखतार अंसारी के खिलाफ 40 से ज़्यादा मुकदमें दर्ज हैं। फिर भी दबंगई इतनी है कि जेल में रहते हुए भी न सिर्फ चुनाव जीतते हैं बल्कि अपने गैंग को भी चलाते हैं। 2005 में मुख्तार अंसारी पर मऊ में हिंसा भड़काने के आरोप लगे। साथ ही जेल में रहते हुए भाजपा नेता कृष्णानंद राय की 7 साथियों समेत हत्या का इल्ज़ाम भी अंसारी के माथे पर लगा।
गरीबों के लिए रॉबिनहुड
ठेकेदारी, खनन, स्क्रैप, शराब, रेलवे ठेकेदारी में अंसारी का कब्ज़ा है। जिसके दम पर उसने अपनी सल्तनत खड़ी की। मगर ये रॉबिनहुड अगर अमीरों से लूटता है, तो गरीबों में बांटता भी है। ऐसा मऊ के लोग कहते हैं कि सिर्फ दबंगई ही नहीं बल्कि बतौर विधायक मुख्तार अंसारी ने अपने इलाके में काफी काम किया है। सड़कों, पुलों, अस्पतालों और स्कूल-कॉलेजों पर ये रॉबिनहुड अपनी विधायक निधी से 20 गुना ज़्यादा पैसा खर्च करता है।
परिवार का गौरवशाली इतिहास दादा कांग्रेस के रहे अध्यक्ष
सिर्फ डर की वजह से नहीं बल्कि काम की वजह से भी इलाके के गरीब गुरबों में मुख्तार अंसारी के परिवार का सम्मान है। मगर आप में से शायद कम लोगों को ही पता हो कि मऊ में अंसारी परिवार की इस इज़्ज़त की एक वजह और है और वो है इस खानदान का गौरवशाली इतिहास। खानदानी रसूख की जो तारीख इस घराने की है वैसी शायद ही पूर्वांचल के किसी खानदान की हो। बाहुबली मुख्तार अंसारी के दादा डॉ मुख्तार अहमद अंसारी थे। स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के दौरान 1926-27 में इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष रहे और ऐसा भी बताया जाता है कि वे महात्मा गांधी के बेहद करीबी हुआ करते थे। उनकी याद में दिल्ली की एक रोड का नाम उनके नाम पर है।
नाना थे नवशेरा युद्ध के नायक
मुख्तार अंसारी के दादा की तरह नाना भी नामचीन हस्तियों में से एक थे। शायद कम ही लोग जानते हैं कि महावीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर उस्मान मुख्तार अंसारी के नाना थे। जिन्होंने 1947 की जंग में न सिर्फ भारतीय सेना की तरफ से नवशेरा की लड़ाई लड़ी बल्कि हिंदुस्तान को जीत भी दिलाई। हालांकि वो खुद इस जंग में हिंदुस्तान के लिए शहीद हो गए थे। उन्हें भारत सरकार द्वारा महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।
पिता थे बड़े वामपंथी नेता तो चाचा रहे देश के उपराष्ट्रपति
खानदान की इसी विरासत को मुख्तार अंसारी के पिता सुब्हानउल्लाह अंसारी ने आगे बढ़ाया। कम्यूनिस्ट नेता होने के अलावा अपनी साफ सुथरी छवि की वजह से सुब्हानउल्लाह अंसारी को 1971 के नगर पालिका चुनाव में निर्विरोध चुना गया था। इतना ही नहीं भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी भी मुख्तार के रिश्ते में चाचा लगते हैं।
मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास ने किया देश का नाम रोशन
एक तरफ जहां सालों की खानदानी विरासत है तो वहीं दूसरी तरफ कई संगीन इल्ज़ामों से घिरे माफिया डॉन मुख्तार अंसारी हैं। जिन्होंने इस शानदार विरासत पर पाबंद लगाया है। मगर इस खानदान की अगली पीढ़ी से मिलेंगे तो फिर हैरानी होगी। मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी जो भले राजनीति के न सही मगर शॉट गन शूटिंग के इंटरनेशनल खिलाड़ी हैं। दुनिया के टॉप टेन शूटरों में शुमार अब्बास अंसारी न सिर्फ नेशनल चैंपियन रह चुके हैं। बल्कि दुनियाभर में कई पदक जीतकर देश का नाम रौशन कर चुके हैं। अब इस विरासत को आगे बढ़ाने की ज़िम्मेदारी अब्बास अंसारी की ही है।
पूर्वांचल में कायम है दबदबा
मऊ में दंगा भड़काने के मामले में मुख्तार ने गाजीपुर पुलिस के सामने सरेंडर किया था। और तभी से वो जेल में बंद हैं। पहले उन्हें गाजीपुर जेल में रखा गया। फिर वहां से मथुरा जेल भेजा गया। फिर मथुरा से आगरा जेल और आगरा से बांदा जेल भेज दिया गया। उसके बाद से आजतक मुख्तार को बाहर आना नसीब नहीं हुआ। लेकिन फिर भी पूर्वांचल में उनका दबदबा कायम है। वो जेल में रहकर भी चुनाव जीतते रहे।
आपराधिक घटनाओं से कई सारे किस्से जुड़े हुए हैं
साल 1988 में पहली बार एक हत्या के मामले में मुख्तार अंसारी का नाम आया था। लेकिन पुलिस उनके खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं जुटा पाई थी। मुख्तार ने साल 1995 में राजनीति की दुनिया में कदम रखा और साल 1996 में मऊ विधानसभा सीट से विधायक बना।
पूर्वांचल के इन हिस्सों में मुख्तार अंसारी के अलावा ब्रजेश सिंह की भी दबंगई चला करती थी। मुख्तार और ब्रजेश गैंग के बीच कई छोटी-बड़ी गैंगवार हुई। एक ऐसी ही गैंगवार में ब्रजेश सिंह के मारे जाने की भी खबर आई। लेकिन कुछ सालों बाद ब्रजेश जिंदा पाया गया। साल 2008 में उसे उड़ीसा से गिरफ्तार किया गया।
मुख्तार अंसारी साल 2007 में बहुजन समाज पार्टी(बसपा) में शामिल हो गए। सपा प्रमुख मायावती ने मुख्तार को रॉबिनहुड के रूप में पेश किया था। मुख्तार बसपा के टिकट पर वाराणसी से 2009 का लोकसभा चुनाव लड़ा मगर वह भाजपा के मुरली मनोहर जोशी से हार गया। साल 2010 में मुख्तार और उसके भाई अफजल अंसारी को बसपा से निष्कासित कर दिया गया।
इसके बाद तीनों अंसारी भाइयों मुख्तार, अफजल और सिब्गतुल्लाह ने साल 2010 में ‘कौमी एकता दल’ नाम से राजनीतिक पार्टी का गठन किया। 2014 के लोकसभा चुनाव में मुख्तार ने घोसी के साथ-साथ वाराणसी से नरेंद्र मोदी के खिलाफ खड़ा होने की घोषणा की थी। लेकिन चुनाव के पहले उन्होंने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली।
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