सोमवार को डॉ. सायलो की रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव आई और मंगलवार को देर रात 2 बजे के करीब उनकी मौत हो गई। बुधवार को जब उनका शव जलाया जाना था तो शमशान के आसपास रहनेवाले लोग घरों से बाहर निकल आए और विरोध करने लगे, उन्हें डर था कि अंतिम संस्कार से जो धुआं निकलेगा उससे आसपास रहनेवालों को संक्रमण हो सकता है।
डॉ सायलो शिलॉन्ग के पहले कोरोना पॉजिटिव मरीज थे:-
आपको बता दे की डॉ सायलो शिलॉन्ग के पहले कोरोना पॉजिटिव मरीज थे, जो लगातार उनके बीथेनी हॉस्पिटल में मरीजों का इलाज कर रहे थे, ये आशंका जताई जा रही है की डॉ सायलो उनके दामाद के जरिए कोरोना संक्रमित हुए थे, डॉ सायलो के दामाद पायलट हैं और वे न्यूयॉर्क में फंसे भारतीयों को लेकर आए थे।जलाने को लेकर क्या कहता है डब्ल्यूएचओ:-
डब्ल्यूएचओ की एक गाइडलाइन के अनुसार , किसी भी संक्रमित व्यक्ति की मौत होने पर उसके शव को जलाया ही जाना चाहिए ताकि वायरस का पूरी तरह से खात्मा हो सके। डॉ सायलो के मामले में भी स्थानीय प्रशासन यही करनेवाला था और जलाने के बाद अस्थियां ताबूत में रखकर उसे क्रिश्चियन परंपरा के मुताबिक डॉ सायलो के फॉर्म हाउस में दफनाना था लेकिन स्थानीय लोगो ने ये कहकर विवाद खड़ा कर दिया की मृत शरीर को जलाने के बाद जो धुआं निकलेगा उससे आसपास रहनेवालों को संक्रमण हो सकता है, जिस कारण डॉ सायलो को गुरुवार को म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के कर्मचारियों द्वारा उन्हें ईसाईयों के कब्रिस्तान में दफनाया गया।
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