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तुष्टिकरण की राजनीति, अब गणेश चतुर्थी विवाद: क्या तेजस्वी यादव भविष्य के नेता हैं?

भारत की राजनीति में धर्म और तुष्टिकरण हमेशा से महत्वपूर्ण मुद्दे रहे हैं। आज की परिस्थिति में विपक्षी नेताओं पर बार-बार यह आरोप लगता रहा है कि वे हिंदू होते हुए भी हिंदू धर्म की परंपराओं और त्योहारों से दूरी बनाकर रखते हैं और एक खास वर्ग को खुश करने के लिए बयानबाज़ी या दिखावा करते हैं। हाल ही में बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने गणेश चतुर्थी के अवसर पर अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर भगवान श्री गणेश को प्रणाम करते हुए एक AI जनरेटेड तस्वीर पोस्ट की। सवाल यह उठता है कि क्या एक हिंदू होकर भी उनके पास ऐसी कोई असली तस्वीर नहीं थी, जिसमें वे भगवान गणेश की पूजा करते दिखते? यह घटना न केवल तेजस्वी यादव की राजनीतिक मानसिकता को उजागर करती है बल्कि यह भी दिखाती है कि भारत की राजनीति में तुष्टिकरण किस हद तक गहरा चुका है।


1. तुष्टिकरण की राजनीति का इतिहास और वर्तमान

भारतीय राजनीति में तुष्टिकरण की जड़ें आज़ादी के बाद से ही देखने को मिलती हैं। कांग्रेस ने लंबे समय तक "धर्मनिरपेक्षता" की आड़ लेकर मुस्लिम वोटबैंक को साधने की कोशिश की और इसी नीति को बाद में कई क्षेत्रीय दलों ने भी अपनाया। समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और आम आदमी पार्टी जैसे दल इस रणनीति पर चलते हुए बार-बार हिंदू परंपराओं से दूरी बनाते रहे। यही कारण है कि जब हिंदू त्योहार आते हैं तो ये नेता या तो चुप्पी साध लेते हैं या फिर सोशल मीडिया पर एक औपचारिक पोस्ट डालकर "औपचारिकता" निभा लेते हैं। तेजस्वी यादव का AI जनरेटेड पोस्ट इस राजनीति का ताज़ा उदाहरण है। यह दिखाता है कि उनके लिए हिंदू त्योहार महज़ "राजनीतिक दिखावा" बन चुके हैं।


2. तेजस्वी यादव का AI पोस्ट और सवाल

गणेश चतुर्थी जैसे पावन पर्व पर जब हर हिंदू अपने घर और मंदिर में श्रद्धा के साथ भगवान गणेश की पूजा करता है, तब तेजस्वी यादव ने AI जनरेटेड तस्वीर शेयर करके यह साबित कर दिया कि उनके पास कोई वास्तविक अनुभव या तस्वीर नहीं है। सवाल उठता है कि क्या तेजस्वी यादव ने कभी सच्चे मन से पूजा की है? अगर उन्होंने की होती तो निस्संदेह उनकी तस्वीरें उपलब्ध होतीं। लेकिन ऐसा न करके उन्होंने एक "डिजिटल दिखावा" चुना। इससे यह साफ जाहिर होता है कि हिंदू धर्म के प्रति उनकी निष्ठा कितनी सतही है। राजनीतिक लाभ के लिए AI का सहारा लेना दर्शाता है कि उनके लिए धर्म केवल वोटबैंक की सीढ़ी है।


3. क्या हिंदू त्योहार सिर्फ दिखावे का मंच?

तेजस्वी यादव और विपक्षी नेताओं की यह रणनीति लगातार सवाल खड़े करती है कि क्या हिंदू त्योहार इनके लिए केवल "पॉलिटिकल फोटोशूट" या "सोशल मीडिया पोस्ट" का अवसर हैं? जब बात ईद या क्रिसमस की आती है तो यही नेता मस्जिदों और चर्चों में जाकर तस्वीरें खिंचवाते हैं और टोपी पहनकर खुद को "धर्मनिरपेक्ष" दिखाते हैं। लेकिन जब बात गणेश चतुर्थी, नवरात्रि या दीवाली जैसे हिंदू पर्वों की आती है तो यही नेता पीछे हट जाते हैं। यही दोहरा रवैया हिंदू समाज को आहत करता है और यह सवाल उठाता है कि आखिर क्यों उनके लिए हिंदू आस्था केवल दिखावे तक सीमित है।


4. राहुल गांधी और विपक्षी सहयोगियों का रवैया

तेजस्वी यादव का मामला अकेला नहीं है। राहुल गांधी, जो खुद को "शिवभक्त" कहते हैं, हिंदू त्योहारों पर शायद ही कभी कोई पोस्ट करते हैं। कांग्रेस के अन्य नेता भी इस मामले में चुप्पी साधे रहते हैं। वहीं, इंडि गठबंधन के बाकी सहयोगी भी अक्सर हिंदू पर्वों से दूरी बनाए रखते हैं। यही कारण है कि विपक्षी दलों की "हिंदू विरोधी छवि" लगातार गहरी होती जा रही है। तेजस्वी यादव का AI पोस्ट उसी प्रवृत्ति की एक कड़ी है। बिहार और पूरे देश के हिंदू समाज को समझना चाहिए कि यह नेता केवल वोटबैंक साधने के लिए धर्म का इस्तेमाल करते हैं, न कि वास्तव में किसी आस्था से प्रेरित होकर।


5. तुष्टिकरण बनाम आस्था: एक तुलना

जब हम तुष्टिकरण की राजनीति और सच्ची आस्था की तुलना करते हैं तो फर्क साफ दिखता है। भाजपा और अन्य राष्ट्रवादी दलों के नेता खुलकर मंदिरों में पूजा करते हैं और अपने धर्म पर गर्व करते हैं। वहीं विपक्षी नेता केवल उस समय धार्मिक दिखते हैं जब उन्हें मुस्लिम या ईसाई समाज को खुश करना होता है। यह दोहरी राजनीति समाज में विभाजन पैदा करती है। तेजस्वी यादव का AI पोस्ट यह संदेश देता है कि वे वास्तविक पूजा करने से परहेज़ करते हैं लेकिन दिखावे के लिए तकनीक का सहारा लेते हैं। यह हिंदू समाज के साथ विश्वासघात जैसा है।


6. बिहार की राजनीति और हिंदू समाज की भूमिका

बिहार हमेशा से धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध राज्य रहा है। यहां के लोग गणेश चतुर्थी, छठ पूजा और नवरात्रि जैसे पर्व बड़े धूमधाम से मनाते हैं। ऐसे में अगर कोई नेता, जो खुद को भविष्य का मुख्यमंत्री बताता है, असली पूजा की तस्वीर तक साझा नहीं कर सकता तो यह सवाल उठना लाज़मी है। बिहार के हिंदुओं को समझना होगा कि ऐसे नेता केवल सत्ता पाने के लिए उनकी भावनाओं से खेलते हैं। अगर यही राजनीति चलती रही तो बिहार का समाज और अधिक बंट जाएगा और तुष्टिकरण का खेल बढ़ता ही जाएगा।


7. क्या यह सिर्फ तकनीक का खेल है?

कुछ लोग कह सकते हैं कि AI तस्वीर बनाना महज़ तकनीक का इस्तेमाल है और इसमें कुछ गलत नहीं। लेकिन सवाल यह है कि जब वास्तविक पूजा और परंपराएं मौजूद हैं, तो फिर डिजिटल तस्वीर क्यों? असली पूजा से भागना और दिखावे के लिए आर्टिफिशियल तस्वीर डालना इस बात का सबूत है कि उनके पास वास्तविक आस्था नहीं है। यह तकनीकी बहाना केवल उनकी ढकोसला राजनीति को छुपाने का प्रयास है। अगर वे वास्तव में पूजा-अर्चना करते तो उन्हें AI पर निर्भर होने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती।


8. हिंदू समाज की अनदेखी

बार-बार यही देखने को मिलता है कि विपक्षी नेता हिंदू समाज की भावनाओं की अनदेखी करते हैं। वे यह मानकर चलते हैं कि हिंदू समाज विभाजित है और उनकी राजनीति पर असर नहीं डालेगा। इसलिए वे बिना हिचक तुष्टिकरण की राजनीति करते हैं। लेकिन धीरे-धीरे यह रणनीति उलटी पड़ रही है। हिंदू समाज अब जागरूक हो रहा है और समझ रहा है कि किस तरह उनके त्योहारों और परंपराओं को नज़रअंदाज किया जाता है। तेजस्वी यादव का मामला इस जागरूकता को और तेज करेगा।


9. नफरत की राजनीति और समाज का बंटवारा

तुष्टिकरण की राजनीति का असली खतरा यह है कि यह समाज को तोड़ती है। विपक्षी नेता केवल एक खास वर्ग को खुश करने के लिए नीतियां बनाते हैं और बयानों में हिंदुओं की उपेक्षा करते हैं। इससे न केवल असंतोष बढ़ता है बल्कि समाज में विभाजन भी गहरा होता है। बिहार जैसे राज्य में जहां पहले से ही जातिगत राजनीति गहरी है, वहां अगर धार्मिक तुष्टिकरण भी जुड़ जाए तो समाज और अधिक बंट जाएगा। तेजस्वी यादव का AI पोस्ट इसी विभाजनकारी राजनीति का उदाहरण है।


10. निष्कर्ष: बिहार का भविष्य किसके हाथ?

आज बिहार और भारत के हिंदुओं को यह गंभीरता से सोचना होगा कि क्या वे उन नेताओं पर भरोसा करेंगे जो केवल दिखावा करते हैं? तेजस्वी यादव खुद को भविष्य का मुख्यमंत्री बताते हैं लेकिन जब बात अपनी आस्था दिखाने की आती है तो वे डिजिटल तस्वीर डालते हैं। यह स्पष्ट संकेत है कि उनके लिए धर्म महज़ राजनीति का औजार है। अगर बिहार का समाज ऐसे नेताओं को बार-बार मौका देगा तो न केवल उनकी आस्था का अपमान होगा बल्कि बिहार का भविष्य भी खतरे में पड़ जाएगा। अब समय आ गया है कि जनता तुष्टिकरण और ढकोसले की राजनीति को ठुकराकर सच्चे राष्ट्रवादी नेतृत्व को चुने।


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