भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने मास्को में दिया अपना भाषण न केवल कूटनीतिक दृष्टि से बल्कि वैश्विक राजनीति के लिए भी ऐतिहासिक माना जा रहा है। हाल के वर्षों में दुनिया ने कई बड़े आर्थिक संकटों का सामना किया है, जिनसे भारत ने भी महत्वपूर्ण सबक सीखे हैं। इस भाषण में जयशंकर ने साफ़ कहा कि "पहला सबक है – भरोसेमंद साझेदारों का महत्व, और दूसरा यह कि कुछ गिने-चुने देशों पर अत्यधिक निर्भरता खतरनाक हो सकती है।" उन्होंने यह भी जोर दिया कि भारत और रूस ने दशकों से स्थिर और मजबूत साझेदारी निभाई है, जो आज के अशांत अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।
🌍 वैश्विक आर्थिक संकट और भारत के अनुभव
डॉ. जयशंकर ने अपने भाषण की शुरुआत हाल के वर्षों में आए वैश्विक आर्थिक संकटों का उल्लेख करते हुए की। उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी, यूक्रेन-रूस युद्ध और ऊर्जा आपूर्ति संकट ने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया है। भारत जैसे बड़े देश ने इन परिस्थितियों से गुजरते हुए कई सबक सीखे। सबसे बड़ा सबक यह रहा कि केवल कुछ चुनिंदा देशों या कंपनियों पर निर्भरता किसी भी अर्थव्यवस्था को अचानक कमज़ोर और असुरक्षित बना सकती है। उदाहरण के तौर पर, महामारी के समय दवाइयों, टीकों और स्वास्थ्य उपकरणों की सप्लाई में आई बाधाओं ने दिखा दिया कि आत्मनिर्भरता कितनी ज़रूरी है।
उन्होंने जोर दिया कि भारत ने आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत इसी चुनौती को अवसर में बदला। भारत ने न केवल अपने लिए टीके बनाए बल्कि दर्जनों देशों को भी आपूर्ति की। ऊर्जा संकट और खाद्यान्न आपूर्ति में आई चुनौतियों ने भी भारत को अपने पुराने भरोसेमंद साझेदारों की अहमियत का एहसास कराया। यही वजह है कि भारत ने रूस के साथ अपने ऊर्जा सहयोग को मज़बूत किया और कठिन परिस्थितियों में भी तेल व गैस की सप्लाई बनाए रखी।
🤝 भारत-रूस संबंध: स्थिरता की मिसाल
जयशंकर ने विशेष रूप से कहा कि भारत और रूस का रिश्ता आज दुनिया के सबसे स्थिर रिश्तों में से एक है। उन्होंने याद दिलाया कि शीत युद्ध के दौर से लेकर आज तक भारत-रूस के संबंधों ने समय की हर कसौटी पर खरा उतरने का काम किया है। चाहे सुरक्षा परिषद में भारत का साथ देने की बात हो या रक्षा तकनीक साझा करने की, रूस हमेशा भारत का सच्चा मित्र रहा है।
उन्होंने कहा कि भारत और रूस ने न केवल रक्षा और ऊर्जा क्षेत्रों में बल्कि विज्ञान, शिक्षा, अंतरिक्ष और कूटनीति के क्षेत्रों में भी मजबूत साझेदारी बनाई है। जयशंकर ने इस साझेदारी को "विश्वसनीयता और आपसी विश्वास पर आधारित" करार दिया। यह संबंध किसी राजनीतिक लाभ या तात्कालिक फायदे पर नहीं बल्कि लंबी अवधि की सोच और साझा हितों पर आधारित हैं।
आज जब दुनिया बहुध्रुवीय (Multipolar) व्यवस्था की ओर बढ़ रही है, भारत और रूस दोनों ही इस नई व्यवस्था के मुख्य स्तंभ हैं। जयशंकर ने कहा कि जब दुनिया अस्थिर हो रही हो, तब भारत-रूस संबंध स्थिरता और विश्वास का आधार स्तंभ बने हुए हैं।
⚡ ऊर्जा और रक्षा सहयोग का महत्व
अपने भाषण में जयशंकर ने ऊर्जा और रक्षा के क्षेत्र में भारत-रूस संबंधों को विशेष महत्व दिया। उन्होंने कहा कि ऊर्जा किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ होती है, और भारत ने रूस से सस्ते तेल और गैस खरीदकर अपनी जनता और उद्योग जगत को बड़ी राहत दी। पश्चिमी देशों के दबाव और आलोचना के बावजूद भारत ने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दी और रूस से ऊर्जा आपूर्ति जारी रखी।
रक्षा क्षेत्र में भी भारत-रूस सहयोग का इतिहास लंबा है। आज भारत की तीनों सेनाओं में इस्तेमाल हो रहे उपकरण और हथियारों का एक बड़ा हिस्सा रूस से आता है। ब्रह्मोस मिसाइल से लेकर सुखोई-30 लड़ाकू विमान तक, रूस ने भारत की रक्षा क्षमताओं को मजबूत किया है। जयशंकर ने कहा कि यह सहयोग सिर्फ खरीद-बिक्री तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें संयुक्त उत्पादन और तकनीक हस्तांतरण भी शामिल है।
उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि भारत-रूस सहयोग केवल रक्षा और ऊर्जा तक सीमित नहीं रहना चाहिए। दोनों देशों को भविष्य की तकनीकों – जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डिजिटल इकोनॉमी और साइबर सुरक्षा – में भी मिलकर काम करना चाहिए, ताकि बदलते दौर में साझेदारी और मजबूत हो सके।
🌐 बहुध्रुवीय दुनिया और भारत-रूस की भूमिका
जयशंकर ने यह भी स्पष्ट किया कि आज की दुनिया एकतरफा शक्ति संतुलन (Unipolarity) से हटकर बहुध्रुवीयता (Multipolarity) की ओर बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि इस बदलते दौर में भारत और रूस की साझेदारी न केवल दोनों देशों के लिए बल्कि पूरे एशिया और वैश्विक दक्षिण (Global South) के लिए अहम है।
भारत मानता है कि हर देश को अपनी संप्रभुता और स्वतंत्र विदेश नीति का अधिकार है। रूस भी इस सिद्धांत का समर्थन करता है। यही वजह है कि भारत-रूस संबंध पश्चिमी दबावों और भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा से अप्रभावित रहते हैं। जयशंकर ने कहा कि आने वाले समय में भारत और रूस एशिया में शांति, स्थिरता और विकास की गारंटी बन सकते हैं।
उन्होंने BRICS, SCO और G20 जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत-रूस की संयुक्त भूमिका को भी रेखांकित किया। जयशंकर ने कहा कि दोनों देशों को न केवल द्विपक्षीय सहयोग पर ध्यान देना चाहिए बल्कि वैश्विक चुनौतियों जैसे जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा और आतंकवाद पर भी मिलकर काम करना चाहिए।
🛡️ निष्कर्ष: भरोसेमंद साझेदार का संदेश
अपने मास्को भाषण के अंत में जयशंकर ने साफ़ शब्दों में कहा कि दुनिया के आर्थिक और राजनीतिक संकटों ने यह सिखाया है कि "भरोसेमंद साझेदार ही वास्तविक ताकत होते हैं।" भारत और रूस की साझेदारी इस बात का प्रमाण है कि लंबे समय तक टिकने वाले संबंध विश्वास, सम्मान और आपसी हितों पर आधारित होते हैं।
उन्होंने कहा कि भारत आने वाले समय में रूस के साथ न केवल ऊर्जा और रक्षा सहयोग को गहराएगा बल्कि नई तकनीक, शिक्षा, स्वास्थ्य और व्यापार के क्षेत्रों में भी नए अवसर तलाशेगा। भारत-रूस संबंध आने वाली पीढ़ियों के लिए स्थिरता और विकास का मार्ग प्रशस्त करेंगे।
जयशंकर का यह भाषण न केवल भारत की विदेश नीति का दर्शन प्रस्तुत करता है बल्कि यह भी दिखाता है कि भारत अब वैश्विक मंच पर एक स्वतंत्र और आत्मविश्वासी शक्ति के रूप में उभर चुका है। यह भाषण आने वाले वर्षों में भारत-रूस संबंधों की दिशा तय करने वाला ऐतिहासिक दस्तावेज माना जाएगा।