भारतीय राजनीति में कई बार ऐसे दृश्य सामने आते हैं जहाँ नेताओं की कथनी और करनी में भारी अंतर साफ झलकता है। कल तक वही नेता जो बिहार और यूपी के लोगों को अपमानजनक शब्दों से संबोधित करते थे, आज उन्हीं लोगों के सामने हाथ जोड़कर वोट मांगते नजर आते हैं। यह स्थिति न केवल राजनीतिक अवसरवाद को उजागर करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि हमारे समाज में आत्मसम्मान और स्वाभिमान की भावना कितनी बार राजनीति की बलि चढ़ा दी जाती है। आज बिहार के मतदाताओं के सामने सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि क्या वे अपने अपमान को भूल जाएंगे?
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1. अपमान की राजनीति और बिहारी अस्मिता
भारत की राजनीति में समय-समय पर कई राज्यों और समुदायों को लेकर नेताओं द्वारा अपमानजनक टिप्पणियाँ की जाती रही हैं। खासकर बिहारियों के संदर्भ में कई बार ऐसी बातें कही गईं जिन्होंने उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाई। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने एक बार कहा था कि “यूपी और बिहार के लोग हमारे यहाँ पेशाबघर साफ करने आते हैं।” यह बयान किसी भी सभ्य समाज के लिए निंदनीय था। यह टिप्पणी बिहारियों की मेहनतकश छवि को नीचा दिखाने वाली थी। लेकिन आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि वही नेता आज राहुल गांधी की तरफ से बिहार में वोट मांगते नजर आते हैं। सवाल यह है कि क्या ऐसे नेताओं को बिहारियों के मतों का हकदार माना जाना चाहिए? अपमान का जवाब सम्मान से मिलना चाहिए या फिर वोट से?
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2. बिहारियों की मेहनतकश पहचान
बिहारियों की पहचान पूरे भारत में मेहनतकश और संघर्षशील लोगों के रूप में होती है। चाहे मुंबई की मिलें हों, दिल्ली की मेट्रो हो, पंजाब के खेत हों या दुबई की मज़दूरी – हर जगह बिहारियों ने अपनी मेहनत और ईमानदारी से नाम कमाया है। बावजूद इसके, उन्हें बार-बार अलग-अलग राज्यों में अपमानित किया गया। उन्हें “माइग्रेंट” कहकर तिरस्कार का शिकार बनाया गया। नेताओं की गंदी राजनीति ने उनकी छवि को गिराने का प्रयास किया, जबकि हकीकत यह है कि बिहारियों ने हर जगह विकास में योगदान दिया। ऐसे में जब वही नेता वोट मांगने आते हैं तो यह दोहरा चरित्र जनता के सामने खुलकर आता है। बिहारियों को यह समझना होगा कि उनकी मेहनत का अपमान करने वालों को वोट देना उनके आत्मसम्मान से समझौता करना है।
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3. अवसरवाद की राजनीति का चरित्र
राजनीति में अवसरवादिता का सबसे बड़ा उदाहरण तब दिखता है जब नेता अपने पुराने बयानों को भूलकर चुनावी मौसम में पूरी तरह बदले हुए तेवर अपनाते हैं। एमके स्टालिन और कांग्रेस का गठजोड़ इसी राजनीति का ताजा उदाहरण है। कल तक बिहारियों को नीचा दिखाने वाले आज उन्हीं के दरवाजे पर वोट की भीख मांग रहे हैं। इस तरह की राजनीति बताती है कि इन नेताओं के लिए जनता सिर्फ चुनावी मोहरा है। वे मतदाताओं की भावनाओं, संस्कृति और आत्मसम्मान की परवाह नहीं करते। जब सत्ता का लालच होता है, तो अपमान भी इनके लिए महत्वहीन हो जाता है। सवाल यह है कि जनता कब तक इस पाखंड को नजरअंदाज करती रहेगी?
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4. बिहार की राजनीतिक चेतना
बिहार इतिहास से ही राजनीतिक रूप से सजग और जागरूक राज्य रहा है। लोकनायक जयप्रकाश नारायण से लेकर कर्पूरी ठाकुर तक, और आधुनिक दौर में भी, बिहार ने कई बड़े राजनीतिक आंदोलनों को जन्म दिया। यह धरती हमेशा अन्याय और शोषण के खिलाफ खड़ी रही है। ऐसे में अगर आज बिहारी मतदाता उन नेताओं को वोट देते हैं जिन्होंने उनके स्वाभिमान को कुचला है, तो यह राजनीतिक चेतना पर प्रश्नचिह्न होगा। बिहार की जनता को सोचना होगा कि क्या सिर्फ जाति, धर्म और गठबंधन के नाम पर वोट देना उचित है, या फिर आत्मसम्मान और अस्मिता को भी प्राथमिकता देनी चाहिए।
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5. कांग्रेस और डीएमके का गठबंधन
आज बिहार की राजनीति में कांग्रेस और डीएमके का गठबंधन खुलकर दिखाई दे रहा है। राहुल गांधी के प्रचार अभियान में एमके स्टालिन को बिहार भेजा गया है। लेकिन यह वही स्टालिन हैं जिन्होंने बिहारियों के लिए अपमानजनक बातें कही थीं। कांग्रेस इस तथ्य को जानती है, फिर भी उन्होंने उन्हें वोट मांगने भेजा। यह स्पष्ट करता है कि कांग्रेस और उसके सहयोगियों के लिए वोट सिर्फ संख्या है, जनता की भावनाएँ नहीं। अगर कांग्रेस वास्तव में बिहारियों का सम्मान करती, तो वह कभी ऐसे नेता को चुनाव प्रचार में आगे नहीं करती जिसने बिहारियों का मज़ाक उड़ाया हो।
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6. बिहारी समाज और आत्मसम्मान का प्रश्न
आत्मसम्मान हर समाज के लिए सबसे बड़ा मूल्य होता है। अगर किसी समाज का अपमान किया जाता है और फिर भी वह उसी अपमान करने वाले को वोट देता है, तो यह आत्मसम्मान की हार होगी। बिहारियों को यह सोचने की आवश्यकता है कि क्या वे अपनी मेहनतकश छवि और अस्मिता को सिर्फ राजनीतिक नारों में खो जाने देंगे? क्या वे अपने बच्चों के भविष्य के लिए ऐसे नेताओं को चुनेंगे जो कल तक उन्हें मजाक का पात्र बनाते थे? आत्मसम्मान की रक्षा तभी होगी जब जनता अवसरवाद की राजनीति को नकारेगी और अपमान करने वालों को सबक सिखाएगी।
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7. बिहारियों का राष्ट्रीय योगदान
बिहारियों ने सिर्फ बिहार ही नहीं, पूरे भारत और दुनिया में अपनी मेहनत और प्रतिभा से नाम कमाया है। आईएएस, आईपीएस, डॉक्टर, इंजीनियर से लेकर मजदूर और किसान तक – हर क्षेत्र में बिहारियों ने अपनी छाप छोड़ी है। नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविख्यात विश्वविद्यालय इसी धरती पर थे। बौद्ध धर्म का संदेश भी यहीं से पूरी दुनिया तक पहुँचा। बावजूद इसके, बिहारियों को बार-बार अपमानित करना यह दिखाता है कि राजनीतिक मानसिकता कितनी संकीर्ण है। जब इतना बड़ा योगदान करने वाला समाज अपमान सहकर भी वोट देता है, तो यह राजनीतिक वर्ग को और अधिक अहंकारी बना देता है।
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8. मतदाता का कर्तव्य
लोकतंत्र में मतदाता की भूमिका सबसे अहम होती है। अगर मतदाता ही अपने स्वाभिमान और अधिकारों की रक्षा न करे, तो कोई नेता उनकी परवाह नहीं करेगा। बिहार के मतदाताओं को यह समझना होगा कि सिर्फ मुफ्त योजनाओं या चुनावी वादों के आधार पर वोट देना उनके भविष्य को सुरक्षित नहीं कर सकता। उन्हें यह तय करना होगा कि कौन नेता उनके सम्मान और अस्मिता की रक्षा करेगा और कौन सिर्फ चुनाव के समय उन्हें इस्तेमाल करेगा। यह चुनाव बिहारियों के लिए सिर्फ सरकार बनाने का नहीं, बल्कि अपने आत्मसम्मान को बचाने का अवसर भी है।
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9. अवसरवादी राजनीति का अंत कैसे हो?
अवसरवादी राजनीति का अंत तभी होगा जब जनता उसे सबक सिखाएगी। जब जनता यह संदेश देगी कि अपमान करने वालों को वोट नहीं मिलेगा, तभी राजनीतिक दल सुधरेंगे। बिहारियों को एकजुट होकर दिखाना होगा कि वे अपनी मेहनत और अस्मिता का अपमान सहन नहीं करेंगे। सोशल मीडिया और जन आंदोलनों के माध्यम से यह आवाज उठानी होगी कि आत्मसम्मान से समझौता किसी कीमत पर नहीं होगा। जब जनता जागरूक होगी, तभी राजनीतिक दल अपनी रणनीति बदलेंगे और जनता की भावनाओं का सम्मान करेंगे। यह लड़ाई सिर्फ चुनावी नहीं, बल्कि स्वाभिमान की है।
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10. निष्कर्ष – आत्मसम्मान से बड़ा कुछ नहीं
लेख के अंत में यही कहा जा सकता है कि बिहारियों को आज सबसे ज्यादा जरूरत है आत्मसम्मान को पहचानने और उसकी रक्षा करने की। एमके स्टालिन और कांग्रेस का गठबंधन यह दर्शाता है कि राजनीतिक दल जनता की भावनाओं से ज्यादा सत्ता को महत्व देते हैं। लेकिन अगर जनता दृढ़ निश्चय कर ले कि अपमान करने वालों को वोट नहीं मिलेगा, तो यह राजनीति की दिशा बदल सकती है। बिहारियों को यह साबित करना होगा कि वे मेहनतकश हैं, संघर्षशील हैं और अपने आत्मसम्मान से कोई समझौता नहीं करेंगे। यही संदेश पूरे भारत को भी एक नई राजनीति की राह दिखा सकता है।
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