1. अधूरे संघर्षों में दोनों पक्षों का 'विजय' दावा: एक सामान्य प्रवृत्ति
दुनिया के अनेक युद्धों और संघर्षों में यह आम बात रही है कि जब कोई संघर्ष पूरी तरह से निर्णायक नहीं होता, तो दोनों ही पक्ष अपने-अपने तरीके से विजय का दावा करते हैं। यह रणनीति केवल मनोवैज्ञानिक संतुलन बनाने और घरेलू जनमानस को संतुष्ट करने के लिए अपनाई जाती है। चाहे वह कारगिल हो या बालाकोट एयर स्ट्राइक—भारत और पाकिस्तान दोनों ही अपनी-अपनी जनता को यह भरोसा दिलाते हैं कि वे विजयी हुए। लेकिन वास्तविकता केवल सैन्य क्षमताओं से नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर बनने वाले दृष्टिकोण से निर्धारित होती है।
2. पाकिस्तान की 'विजय' की संस्कृति: 1971 जैसा स्पष्ट पराजय भी नकारा गया
दुनिया के अधिकांश देश जब एक बड़ी हार का सामना करते हैं, तो वह आत्ममंथन करते हैं और आगे सुधार की दिशा में प्रयास करते हैं। लेकिन पाकिस्तान जैसे देश, जो अपनी पहचान को ही विरोध और असुरक्षा के आधार पर गढ़ते हैं, कभी-कभी अपने ही इतिहास को नकार देते हैं। 1971 का युद्ध इसका स्पष्ट उदाहरण है। जहां भारत ने निर्णायक सैन्य सफलता हासिल कर के बांग्लादेश को स्वतंत्रता दिलाई, वहीं पाकिस्तान आज भी अपने नागरिकों को यह सिखाता है कि वह युद्ध में विजयी रहा या फिर यह भारत की 'साज़िश' थी। यह एक प्रकार का ऐतिहासिक विकृति (historical distortion) है, जो केवल अपने भीतर ही गूंजता है, विश्व बिरादरी में नहीं।
3. केवल दावों से नहीं, अंतरराष्ट्रीय धारणा से तय होती है असली विजय
किसी भी युद्ध या संघर्ष के बाद सबसे महत्वपूर्ण पक्ष होता है वैश्विक दृष्टिकोण—यानी अंतरराष्ट्रीय समुदाय किसे विजेता मानता है। इतिहास केवल युद्धक्षेत्र में लिखे गए निर्णयों से नहीं, बल्कि बाद में बनने वाली धारणाओं से गढ़ा जाता है। चाहे अमेरिका-इराक़ युद्ध हो या यूक्रेन-रूस संघर्ष—अंतरराष्ट्रीय मीडिया, थिंक टैंक, और वैश्विक राजनीति उस युद्ध के परिणाम की व्याख्या करने में बड़ी भूमिका निभाते हैं। यही कारण है कि भारत जैसे देश को केवल सैन्य रणनीति ही नहीं, बल्कि 'perception management' यानी छवि निर्माण पर भी विशेष ध्यान देना होता है।
4. क्या भारत ने छवि निर्माण में सफलता प्राप्त की है?
पिछले कुछ वर्षों में भारत ने वैश्विक स्तर पर अपनी रणनीतिक स्थिति को बेहतर ढंग से प्रस्तुत किया है। बालाकोट स्ट्राइक के बाद न केवल भारतीय मीडिया, बल्कि विदेशी मीडिया में भी इसकी विस्तृत चर्चा हुई। भारत की कार्रवाई को "सर्जिकल और निर्णायक" बताया गया। संयुक्त राष्ट्र में भारत की आवाज अधिक प्रबल हुई है, और वैश्विक शक्तियाँ—जैसे अमेरिका, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया—भारतीय दृष्टिकोण को अधिक गंभीरता से ले रही हैं। यही नहीं, सोशल मीडिया और डिजिटल डिप्लोमेसी के क्षेत्र में भारत की सक्रियता ने भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जनमत को प्रभावित करने में योगदान दिया है।
5. पाकिस्तान का छवि संकट: अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग
जहां भारत वैश्विक मंचों पर अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है, वहीं पाकिस्तान की छवि एक 'आतंक प्रायोजक राष्ट्र' की बनती जा रही है। FATF की ग्रे लिस्टिंग, विदेशी निवेश की कमी, और लगातार बिगड़ती अर्थव्यवस्था ने पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता को कम किया है। जब पाकिस्तान किसी संघर्ष में अपनी 'विजय' का दावा करता है, तो अधिकांश राष्ट्र इसे केवल एक प्रचार रणनीति मानते हैं। 1971 की बात करें या कारगिल की—वैश्विक समुदाय ने हमेशा भारत को निर्णायक और आत्मरक्षात्मक पक्ष के रूप में देखा है।
6. भविष्य की रणनीति: सैन्य शक्ति के साथ-साथ सूचनात्मक युद्ध भी आवश्यक
आज का युग केवल परंपरागत युद्धों का नहीं रहा, यह 'information warfare' यानी सूचनात्मक युद्ध का भी दौर है। भारत को यह समझना होगा कि सीमाओं पर सफलता के साथ-साथ वैश्विक जनमत को अपने पक्ष में मोड़ने के लिए निरंतर प्रयास करना आवश्यक है। इसमें मीडिया का प्रशिक्षण, डिजिटल डिप्लोमेसी, संस्कृति और विकास की अंतरराष्ट्रीय पहचान, और विदेश नीति की सक्रिय भूमिका शामिल है। जब तक भारत सच को वैश्विक रूप से सही तरीके से प्रस्तुत नहीं करेगा, तब तक पाकिस्तान जैसे देश झूठे दावों के सहारे भ्रम फैलाने की कोशिश करते रहेंगे।