भारत में घुसपैठियों की समस्या कोई नई नहीं है, लेकिन जब कोई सालों तक एक राज्य में शांति से रहकर काम करे, पहचान बना ले और फिर एक दिन उसका असली चेहरा सामने आए — तो यह न केवल चौंकाने वाला होता है, बल्कि देश की आंतरिक सुरक्षा पर गंभीर सवाल भी खड़े करता है। ऐसा ही एक मामला हाल ही में सामने आया है जब बंगलुरु में बिजली मिस्त्री का काम करने वाला रोबिउल इस्लाम (Robiul Islam) असल में एक अवैध बांग्लादेशी नागरिक निकला।
बंगलुरु में बसा था एक 'साधारण' मिस्त्री
रोबिउल इस्लाम का जीवन बंगलुरु में देखने से किसी को यह अंदाजा नहीं होता कि वह भारतीय नागरिक नहीं है। वह एक मेहनती और कुशल बिजली मिस्त्री के रूप में वहां की स्थानीय बस्तियों में जाना जाता था। स्थानीय निवासियों के अनुसार, रोबिउल शांत स्वभाव का व्यक्ति था और कभी किसी झगड़े या अपराध से उसका नाम नहीं जुड़ा। उसने बंगलुरु में न केवल काम-धंधा जमा लिया था, बल्कि स्थानीय भाषा कन्नड़ भी सीख ली थी और खुद को एक 'स्थानीय' की तरह पेश करता था।
साल में एक बार जाता था छुट्टी पर बांग्लादेश
हाल ही में सामने आई जांच में यह पता चला कि रोबिउल इस्लाम हर साल कुछ हफ्तों के लिए 'छुट्टियों' पर गायब हो जाता था। वह अपने परिचितों को बताता था कि वह गांव जा रहा है। परंतु अब यह स्पष्ट हुआ है कि वह उस दौरान बांग्लादेश जाता था — अपने असली घर, अपने देश।
पूछताछ में यह सामने आया है कि वह बगैर वैध दस्तावेजों के भारत में प्रवेश करता और फिर चुपचाप बंगलुरु लौट आता था। यह प्रक्रिया वह कई वर्षों से करता आ रहा था, और सुरक्षा एजेंसियों की नज़र से बचता रहा।
मेघालय में हुई गिरफ्तारी से खुला पर्दाफाश
हाल ही में, मेघालय के भारत-बांग्लादेश सीमा के पास बीएसएफ (BSF) ने कुछ संदिग्धों की पहचान और पूछताछ के दौरान रोबिउल इस्लाम को गिरफ्तार किया। उसके पास से न कोई वैध पहचान पत्र मिला और न ही भारत में रहने का कोई कानूनी आधार।
जब जांच एजेंसियों ने उससे पूछताछ की, तब वह टूट गया और स्वीकार किया कि वह बांग्लादेश का नागरिक है और अवैध रूप से भारत में घुस आया था। यही नहीं, उसने यह भी बताया कि वह पिछले कई वर्षों से बंगलुरु में रह रहा है और वहीं बिजली मिस्त्री का काम करता है।
फर्जी पहचान के सहारे सालों तक चला खेल
सूत्रों के अनुसार, रोबिउल इस्लाम ने भारत में फर्जी पहचान पत्र बनवाए थे — आधार कार्ड, राशन कार्ड, और शायद मतदाता पहचान पत्र भी। यही नहीं, वह बंगलुरु में जिस मकान में रह रहा था, वहां मकान मालिक ने कभी उसका सत्यापन नहीं कराया था।
यह मामला न केवल एक व्यक्ति की पहचान को लेकर धोखाधड़ी का है, बल्कि इसमें एक बड़ा सुरक्षा खतरा भी जुड़ा हुआ है। अगर एक विदेशी नागरिक इस तरह बिना दस्तावेजों के देश में रह सकता है, काम कर सकता है, और सालों तक किसी की नज़र में न आए — तो यह व्यवस्था की गंभीर चूक को दर्शाता है।
क्या भारत के मेट्रो शहर अवैध घुसपैठियों के लिए सुरक्षित ठिकाने बनते जा रहे हैं?
यह कोई पहला मामला नहीं है जब किसी बांग्लादेशी नागरिक को भारत के मेट्रो शहरों में बसते हुए पकड़ा गया हो। कोलकाता, मुंबई, दिल्ली और बंगलुरु जैसे शहरों में अवैध रूप से रहने वाले घुसपैठियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।
इनमें से कई लोग मजदूरी, रिक्शा चलाने, घरेलू कामकाज, या फिर रोबिउल की तरह इलेक्ट्रिशियन जैसे कामों में लग जाते हैं। धीरे-धीरे वे अपने लिए एक नकली पहचान बना लेते हैं और स्थानीय समाज में घुल-मिल जाते हैं।
इन मामलों में जब तक कोई विशेष खुफिया सूचना न मिले या संदिग्ध गतिविधि का पता न चले, तब तक सुरक्षा एजेंसियों के लिए इन्हें पकड़ना बेहद मुश्किल हो जाता है।
अवैध घुसपैठ पर सख्त नीति की ज़रूरत
भारत-बांग्लादेश सीमा हजारों किलोमीटर लंबी है और पूरी तरह सील नहीं है। कई इलाकों में यह नदी, जंगल या खुले मैदान के रूप में फैली हुई है, जिससे अवैध घुसपैठ को पूरी तरह रोकना आज भी एक चुनौती है।
हालांकि बीएसएफ और सुरक्षा एजेंसियां सतर्क हैं, लेकिन सीमावर्ती क्षेत्रों से हर साल सैकड़ों की संख्या में लोग अवैध रूप से भारत में प्रवेश कर जाते हैं। फिर वे देश के विभिन्न शहरों में बस जाते हैं, नकली दस्तावेज बनवा लेते हैं और आम नागरिक की तरह रहने लगते हैं।
रोबिउल इस्लाम का मामला इस खतरे की एक जीवंत मिसाल है। यह दिखाता है कि किस तरह एक अवैध घुसपैठिया एक बड़े शहर में सालों तक आराम से रह सकता है और पहचान की आड़ में एक सामान्य जीवन जी सकता है।
सरकार और नागरिकों की भूमिका
इस प्रकार के मामलों को रोकने के लिए न केवल सरकार को सख्त कदम उठाने होंगे, बल्कि आम नागरिकों को भी सतर्क रहना होगा। मकान मालिकों को किराएदारों का पुलिस वेरिफिकेशन कराना अनिवार्य किया जाना चाहिए और इस नियम के उल्लंघन पर सख्त सजा दी जानी चाहिए।
इसके साथ ही, हर साल की जनगणना और पहचान सत्यापन प्रणाली को और मजबूत करने की आवश्यकता है ताकि फर्जी दस्तावेजों के आधार पर कोई व्यक्ति सरकारी सुविधाएं प्राप्त न कर सके।
निष्कर्ष
रोबिउल इस्लाम की गिरफ्तारी एक चेतावनी है कि अवैध घुसपैठियों का नेटवर्क अब केवल सीमावर्ती राज्यों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह देश के अंदरूनी भागों तक भी फैल चुका है।
अब वक्त आ गया है कि हम इस खतरे को केवल एक स्थानीय समस्या समझने के बजाय राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़कर देखें। केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर एक प्रभावी नीति बनानी चाहिए ताकि ऐसे मामले भविष्य में न दोहराए जा सकें।
यह घटना एक बार फिर इस बात की याद दिलाती है कि सुरक्षा के मोर्चे पर कोई भी लापरवाही देश को भारी पड़ सकती है। अवैध घुसपैठ को केवल सुरक्षा एजेंसियों का ही नहीं, बल्कि पूरे समाज का साझा मुद्दा मानकर समाधान की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।