राजीव गांधी भारतीय राजनीति के सबसे चर्चित नेताओं में से एक थे। उनकी छवि एक युवा, आधुनिक और तकनीक-प्रेमी नेता की बनाई गई, लेकिन उनके कार्यकाल में कई विवाद भी सामने आए। उनकी शिक्षा, राजनीति में प्रवेश, सिख विरोधी दंगे, शाहबानो केस, भोपाल गैस त्रासदी, श्रीलंका में भारतीय शांति सेना की विफलता और बोफोर्स घोटाले से जुड़े कई सवाल आज भी चर्चा में हैं। यह लेख उनके जीवन और कार्यकाल की उन घटनाओं पर केंद्रित है जो भारतीय इतिहास में गहरी छाप छोड़ गईं।
राजीव गांधी का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
राजीव गांधी का जन्म एक राजनीतिक परिवार में हुआ था, लेकिन वे पढ़ाई में विशेष रूप से अच्छे नहीं थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा दून स्कूल में हुई, जो एक प्रतिष्ठित निजी स्कूल है। 1961 में उन्हें इंग्लैंड के ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज भेजा गया, जहां उन्हें इंजीनियरिंग की पढ़ाई करनी थी।
हालांकि, वे अपने अकादमिक जीवन में संघर्ष करते रहे और लगातार असफल होते रहे। 1965 तक वे विभिन्न विषयों में फेल होते रहे और अंततः उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया। इसके बाद, उन्होंने 1966 में इम्पीरियल कॉलेज, लंदन में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में दाखिला लिया, लेकिन वहां भी वे असफल रहे।
इसी दौरान, उनकी मुलाकात एडवीज अंतोनियो अल्बिना माइनो से हुई, जिन्हें आज हम सोनिया गांधी के नाम से जानते हैं। दोनों की दोस्ती बढ़ी और बाद में विवाह हुआ। 1966 में जब इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री बनीं, तो राजीव गांधी पढ़ाई छोड़कर भारत लौट आए और दिल्ली फ्लाइंग क्लब में दाखिला लिया, जहां उन्होंने विमान उड़ाने की ट्रेनिंग ली।
राजनीति में प्रवेश और पारिवारिक पृष्ठभूमि
राजीव गांधी ने शुरू में राजनीति में रुचि नहीं दिखाई और एयर इंडिया में बतौर कमर्शियल पायलट काम किया। 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान जब भारतीय सेना को लॉजिस्टिक सपोर्ट के लिए पायलट्स की जरूरत थी, तो एयर इंडिया के सभी पायलट्स सेवा में शामिल हो गए, लेकिन राजीव गांधी ने ऐसा नहीं किया। यह कहा जाता है कि वे डर के मारे इटली के दूतावास में जाकर छिप गए थे।
उनके छोटे भाई संजय गांधी राजनीति में अधिक सक्रिय थे और उन्हें इंदिरा गांधी का उत्तराधिकारी माना जाता था। लेकिन 1980 में संजय गांधी की एक विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई, जिससे इंदिरा गांधी को अपने उत्तराधिकारी के रूप में राजीव गांधी को आगे लाना पड़ा।
1981 में राजीव गांधी ने अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। इसके बाद वे राजनीति में सक्रिय हो गए। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद वे देश के प्रधानमंत्री बने।
प्रधानमंत्री बनने की यात्रा और 1984 सिख विरोधी दंगे
31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या के बाद, कांग्रेस ने राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बना दिया। उस समय पूरे देश में गुस्से और आक्रोश का माहौल था।
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे। हजारों निर्दोष सिखों को जिंदा जलाया गया, महिलाओं के साथ अत्याचार किए गए, और सिखों की संपत्तियों को नष्ट कर दिया गया। कहा जाता है कि कांग्रेस के नेताओं ने इन दंगों को उकसाया और सिखों को चुन-चुनकर मारा गया।
राजीव गांधी ने इस हिंसा पर विवादित बयान दिया – "जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है।" यह बयान सिख विरोधी दंगों को जायज ठहराने के रूप में देखा गया। इस घटना ने उनकी छवि को बहुत नुकसान पहुंचाया।
शाहबानो केस और मुस्लिम तुष्टिकरण
1985 में, सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो नाम की एक मुस्लिम महिला को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया, जिससे मुस्लिम समाज में असंतोष फैल गया। मुस्लिम कट्टरपंथियों के दबाव में आकर, राजीव गांधी ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलट दिया और एक नया कानून बनवाया जिससे मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता मिलने का अधिकार समाप्त हो गया।
यह फैसला मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति का उदाहरण बना और इससे देश की धर्मनिरपेक्षता पर सवाल उठने लगे।
भोपाल गैस त्रासदी और यूनियन कार्बाइड कांड
1984 में भोपाल गैस त्रासदी हुई, जिसमें हजारों निर्दोष लोग मारे गए। इस त्रासदी के जिम्मेदार यूनियन कार्बाइड कंपनी के सीईओ वारेन एंडरसन को भारत लाया गया, लेकिन राजीव गांधी की सरकार ने उसे अमेरिका भागने दिया।
यह भी कहा जाता है कि राजीव गांधी ने अमेरिका के साथ एक गुप्त सौदा किया था, जिसके तहत यूनियन कार्बाइड के सीईओ को बचाने के बदले अमेरिका ने भारत में बंद एक कैदी आदिल शहरयार को रिहा किया।
श्रीलंका में भारतीय शांति सेना की असफलता
राजीव गांधी ने श्रीलंका में लिट्टे (LTTE) के आतंकियों को काबू करने के लिए भारतीय शांति सेना भेजी। लेकिन यह मिशन पूरी तरह विफल रहा। भारतीय सेना को भारी नुकसान हुआ – 1400 सैनिक मारे गए और 3000 से अधिक घायल हुए।
इस असफलता के कारण राजीव गांधी को श्रीलंका में एक सैनिक द्वारा सार्वजनिक रूप से थप्पड़ मारा गया।
बोफोर्स घोटाला और भ्रष्टाचार के आरोप
राजीव गांधी के कार्यकाल में सबसे बड़ा घोटाला बोफोर्स घोटाला था। यह आरोप लगा कि उन्होंने स्वीडिश कंपनी बोफोर्स से तोपों की खरीद में दलाली खाई। इस मामले में सोनिया गांधी के करीबी मित्र ओटावियो क्वात्रोच्ची का नाम भी सामने आया, जो बाद में विदेश भाग गया।
1989 में जनता ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया और वी.पी. सिंह की सरकार बनी। बोफोर्स घोटाले ने राजीव गांधी की छवि को पूरी तरह धूमिल कर दिया।
राजीव गांधी की राजनीतिक रणनीतियाँ और विरासत
राजीव गांधी ने अपनी छवि सुधारने के लिए धार्मिक भावनाओं का भी सहारा लिया। उन्होंने टीवी पर रामायण धारावाहिक के अभिनेता अरुण गोविल को अपने प्रचार में शामिल किया।
इसके अलावा, एक स्विस मैगज़ीन ने 1991 में खुलासा किया कि राजीव गांधी का स्विस बैंक में 2.5 बिलियन स्विस फ्रैंक जमा था।
1992 में "टाइम्स ऑफ इंडिया" और "द हिंदू" ने रिपोर्ट प्रकाशित की कि राजीव गांधी को सोवियत संघ की खुफिया एजेंसी केजीबी से धन प्राप्त हुआ था।
निष्कर्ष
राजीव गांधी का कार्यकाल कई विवादों से घिरा रहा। उनके फैसले और घोटालों ने भारतीय राजनीति पर गहरा प्रभाव डाला। वे एक ऐसे प्रधानमंत्री थे जिनकी विरासत को लेकर आज भी बहस होती रहती है।
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