नेपाल में एक बार फिर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। इस बार लड़ाई राजनीतिक दलों के बीच नहीं, बल्कि राजशाही बनाम लोकतंत्र की हो रही है। नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह राजधानी काठमांडू लौटे, जहां लाखों की भीड़ ने उनका स्वागत किया। लोग हिन्दू राजशाही की वापसी की मांग कर रहे हैं। ज्ञानेंद्र ने अपने संदेश में नेपाल की वर्तमान सरकार पर हमला बोलते हुए खुद को देश की जिम्मेदारी संभालने के लिए तैयार बताया। नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता और राजशाही के प्रति जनता के बढ़ते समर्थन ने सरकार को चिंता में डाल दिया है।
नेपाल में हिन्दू राजशाही की वापसी की मांग क्यों बढ़ रही है?
नेपाल में 2008 में राजशाही खत्म कर लोकतंत्र की स्थापना की गई थी। लेकिन पिछले 17 वर्षों में नेपाल लगातार राजनीतिक अस्थिरता से जूझता रहा है। बार-बार सरकारें बदलीं, भ्रष्टाचार बढ़ा, और जनता के बीच लोकतंत्र को लेकर निराशा फैलने लगी। नेपाल के लोगों को लगने लगा कि राजशाही के समय की स्थिरता और हिंदू राष्ट्र की पहचान अब खत्म हो रही है। इसी कारण हाल ही में पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह की वापसी पर हजारों की भीड़ सड़कों पर उतर आई और "राजशाही वापस लाओ" के नारे लगाए।
नेपाल की जनता को यह महसूस हो रहा है कि लोकतंत्र समर्थक नेताओं ने जो वादे किए थे, वे पूरे नहीं हुए। देश की अर्थव्यवस्था कमजोर हो गई है, बेरोजगारी बढ़ रही है, और विदेश जाने वाले नेपाली नागरिकों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। इसी असंतोष के कारण लोगों ने फिर से राजशाही की ओर रुख किया है। नेपाल में हिन्दू राजशाही की मांग इसलिए भी बढ़ रही है क्योंकि कई नागरिक मानते हैं कि एक मजबूत नेतृत्व ही देश को सही दिशा में ले जा सकता है।
ज्ञानेंद्र शाह की काठमांडू वापसी और जनता का जबरदस्त समर्थन
रविवार, 9 मार्च 2025 को नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह एक विशेष हेलिकॉप्टर से पोखरा से काठमांडू लौटे। एयरपोर्ट पर हजारों समर्थक उनके स्वागत के लिए पहले से मौजूद थे। जैसे ही वे बाहर आए, "राजशाही वापस लाओ" और "नेपाल का राजा ज्ञानेंद्र" जैसे नारे गूंजने लगे। इस भीड़ को नियंत्रित करने में पुलिस को काफी मशक्कत करनी पड़ी।
भीड़ में कई समर्थक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तस्वीरें भी लिए हुए थे। ऐसा इसलिए क्योंकि नेपाल के राजपरिवार का नाथ पंथ के साथ पुराना रिश्ता रहा है। यह दिखाता है कि नेपाल की जनता अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक जड़ों को फिर से मजबूत करने की इच्छा रखती है।
भीड़ का यह उत्साह तब और बढ़ गया जब ज्ञानेंद्र शाह अपने निवास "निर्मल निवास" पहुंचे। वहां भी हजारों की संख्या में लोग जमा थे। यह किसी राजनीतिक सभा से कम नहीं था, और इससे यह स्पष्ट हुआ कि नेपाल में राजशाही के समर्थक अब पहले से ज्यादा संगठित और मुखर हो गए हैं।
ज्ञानेंद्र शाह का संदेश: "नेपाल को बचाने का समय आ गया है"
नेपाल में राजशाही के समर्थन में जनता के उतरने के पीछे ज्ञानेंद्र शाह का हाल ही में जारी किया गया वीडियो संदेश भी एक बड़ी वजह रहा। इस वीडियो में उन्होंने नेपाल के नेताओं पर कड़ा प्रहार किया और कहा कि उन्होंने देश की भलाई के लिए अपना पद त्याग दिया था, लेकिन अब नेपाल की स्थिति बेहद खराब हो गई है।
ज्ञानेंद्र शाह ने कहा कि नेपाल का इतिहास मिटाने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने नेपाली युवाओं के विदेश पलायन पर भी चिंता जताई। उनका कहना था कि देश को बचाने का समय आ गया है और वे किसी भी जिम्मेदारी को उठाने के लिए तैयार हैं।
इस संदेश के बाद जनता में भारी उत्साह देखा गया। यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, और देखते ही देखते सड़कों पर राजशाही समर्थकों की भीड़ उमड़ पड़ी। इससे यह साफ हो गया कि नेपाल में राजशाही की मांग अब केवल कुछ लोगों तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह एक बड़े जन आंदोलन का रूप ले चुकी है।
नेपाल की सरकार और राजनीतिक दलों में मची खलबली
ज्ञानेंद्र शाह की काठमांडू वापसी और भारी जनसमर्थन ने नेपाल की सरकार और राजनीतिक दलों को हिला कर रख दिया है। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इस आंदोलन को "राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने की साजिश" करार दिया है। उन्होंने ज्ञानेंद्र शाह को चुनाव में उतरने की चुनौती दी और पूछा कि वे किस अधिकार से लोगों का समर्थन मांग रहे हैं।
नेपाल की सरकार ने राजशाही समर्थकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की घोषणा की है। कई स्थानों पर प्रदर्शनकारियों पर जुर्माना लगाया गया है और कुछ लोगों को हिरासत में भी लिया गया है। हालांकि, सरकार की इन कोशिशों का जनता पर कोई खास असर नहीं पड़ा, और राजशाही के समर्थन में प्रदर्शन लगातार बढ़ते जा रहे हैं।
नेपाल की अन्य पार्टियां इस मुद्दे पर अब तक चुप्पी साधे हुए हैं। ऐसा लग रहा है कि वे इस जन भावना के खिलाफ जाने से डर रही हैं। अगर जनता का समर्थन राजशाही के प्रति इसी तरह बढ़ता रहा, तो आने वाले समय में नेपाल की राजनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है।
नेपाल में राजशाही क्यों खत्म हुई थी?
नेपाल में राजशाही का अंत 2008 में हुआ था। इससे पहले नेपाल एक हिंदू राष्ट्र था और राजा को देश का सर्वोच्च नेता माना जाता था। लेकिन 1996 में नेपाल में माओवादी आंदोलन शुरू हुआ, जिसने देश में भारी अशांति फैला दी। इस आंदोलन में हजारों लोग मारे गए और अंततः 2006 में राजा को सत्ता छोड़नी पड़ी।
2008 में नेपाल को आधिकारिक रूप से गणराज्य घोषित कर दिया गया और लोकतंत्र की स्थापना हुई। लेकिन इसके बाद से नेपाल राजनीतिक अस्थिरता की चपेट में आ गया। बार-बार सरकारें बदलीं, भ्रष्टाचार बढ़ा, और जनता के बीच यह भावना घर करने लगी कि लोकतंत्र से कोई खास सुधार नहीं आया।
आज, जब नेपाल में फिर से राजशाही की मांग उठ रही है, तो यह सवाल उठता है कि क्या जनता वास्तव में लोकतंत्र से असंतुष्ट है, या फिर यह सिर्फ एक अस्थायी लहर है?
क्या नेपाल में फिर से राजशाही लौट सकती है?
नेपाल में राजशाही की वापसी आसान नहीं होगी। इसके लिए या तो संवैधानिक संशोधन करना होगा या फिर जनमत संग्रह के जरिए जनता की राय लेनी होगी। वर्तमान में नेपाल की सरकार और संसद राजशाही के पक्ष में नहीं हैं, लेकिन अगर जनता का समर्थन इसी तरह बढ़ता रहा, तो राजनीतिक दलों को इस मुद्दे पर विचार करना पड़ सकता है।
अगर नेपाल में राजशाही लौटती है, तो यह एशिया की राजनीति में एक बड़ा बदलाव होगा। इससे नेपाल की विदेश नीति, आंतरिक प्रशासन और आर्थिक दिशा पर भी गहरा प्रभाव पड़ेगा।
फिलहाल, नेपाल की सड़कों पर उमड़ी भीड़ यह संकेत दे रही है कि नेपाल में लोकतंत्र के प्रति जनता की निराशा बढ़ रही है और वे अपने पुराने गौरव को फिर से हासिल करने की इच्छा रखते हैं। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह आंदोलन किस दिशा में जाता है और नेपाल की राजनीति पर इसका क्या असर पड़ता है।