वकील इंदिरा जयसिंह ने एक बार कहा था, "जब हम धर्मनिरपेक्षता की रक्षा करते हैं, तो हम मुस्लिम समुदाय को खुश करने के लिए नहीं करते। हम इसे भारत के हित में करते हैं।" यह कथन सुनने में बहुत आदर्शवादी प्रतीत होता है, लेकिन जब इसे गहराई से देखा जाता है, तो यह एक महत्वपूर्ण बहस को जन्म देता है। यह बहस केवल धर्मनिरपेक्षता बनाम तुष्टीकरण तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें भारत के राष्ट्रीय हितों की भी बात आती है।
याकूब मेमन की फांसी और धर्मनिरपेक्षता की परीक्षा
इंदिरा जयसिंह उन वकीलों में से एक थीं, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट पर दबाव डाला कि वह आधी रात को अपने दरवाजे खोले और आतंकवादी याकूब मेमन की दया याचिका पर सुनवाई करे ताकि उसकी फांसी रोकी जा सके। यह वही याकूब मेमन था, जो 1993 के मुंबई बम धमाकों में शामिल था। इन धमाकों में 257 निर्दोष लोगों की जान गई और सैकड़ों लोग घायल हुए। यह भारत के इतिहास में सबसे घातक आतंकवादी हमलों में से एक था।
अब सवाल यह उठता है कि क्या एक आतंकवादी के लिए इतनी संवेदनशीलता दिखाना वास्तव में भारत के हित में था? क्या यही धर्मनिरपेक्षता है, जिसमें आतंकवादियों के लिए दया की मांग की जाती है, लेकिन उनके पीड़ितों के लिए कोई संवेदनशीलता नहीं दिखाई जाती?
संविधान और मृत्युदंड का प्रश्न
जो लोग बार-बार संविधान की दुहाई देते हैं, उन्हें यह भी याद रखना चाहिए कि भारत में मृत्युदंड को संविधानिक स्वीकृति प्राप्त है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी याकूब मेमन को दोषी करार दिया और उसे मृत्युदंड दिया। ऐसे में, यदि कोई व्यक्ति या समूह इस निर्णय को रोकने की कोशिश करता है, तो यह न केवल न्यायपालिका के आदेशों को कमजोर करने का प्रयास है, बल्कि यह आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को भी कमजोर करता है।
जब न्यायपालिका द्वारा दिए गए फैसले को बाधित करने का प्रयास किया जाता है, तो इससे आतंकवादियों को ही बल मिलता है। उन्हें यह संदेश जाता है कि देश में कुछ ऐसे प्रभावशाली लोग मौजूद हैं, जो उनके लिए अंतिम क्षणों तक लड़ सकते हैं। क्या यह भारत के हित में है?
क्या भारत इसलिए धर्मनिरपेक्ष है क्योंकि हिंदू बहुसंख्यक हैं?
भारत की धर्मनिरपेक्षता हमेशा चर्चा का विषय रही है। यह तर्क दिया जाता है कि भारत इसलिए धर्मनिरपेक्ष है क्योंकि यहाँ हिंदू बहुसंख्यक हैं। यदि हिंदू समाज में सहिष्णुता और सहनशीलता न होती, तो क्या भारत आज धर्मनिरपेक्ष बना रह पाता? कई इस्लामिक और ईसाई बहुल देशों में जिस प्रकार धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों का हनन किया जाता है, उसकी तुलना में भारत एक आदर्श मॉडल है।
भारत में धार्मिक सहिष्णुता का प्रमाण हमें हजारों वर्षों के इतिहास में मिलता है। यहाँ पारसी, यहूदी, बौद्ध, जैन, सिख और कई अन्य धर्मों के लोग शांति से रहते आए हैं। लेकिन जब धर्मनिरपेक्षता की आड़ में तुष्टीकरण होने लगता है, तो यह एक गंभीर समस्या बन जाती है।
तुष्टीकरण बनाम धर्मनिरपेक्षता
धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि राज्य सभी धर्मों के प्रति समान व्यवहार करेगा। लेकिन जब एक विशेष समुदाय के पक्ष में लगातार नीतियां बनाई जाती हैं, जब विशेष समुदाय के लिए विशेष सुविधाएं दी जाती हैं, और जब आतंकवादियों के लिए विशेष सहानुभूति दिखाई जाती है, तो यह धर्मनिरपेक्षता नहीं बल्कि तुष्टीकरण बन जाता है।
याकूब मेमन की फांसी के बाद जब उसके जनाजे में हजारों लोगों की भीड़ उमड़ी, तो यह एक गंभीर प्रश्न खड़ा करता है। क्या ये लोग आतंकवाद के समर्थन में थे? क्या इनका भारत की न्याय प्रणाली में विश्वास नहीं था? आतंकवादी के लिए सहानुभूति दिखाना और उसे एक नायक की तरह प्रस्तुत करना न केवल देश के कानून-व्यवस्था के लिए खतरनाक है, बल्कि यह आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को भी कमजोर करता है।
भारत के सच्चे हितों की पहचान
भारत के असली हित क्या हैं? क्या यह राष्ट्र आतंकवाद के प्रति नरमी बरतकर मजबूत बनेगा या फिर सख्ती से आतंकवादियों को दंड देकर? क्या यह देश धर्मनिरपेक्षता के नाम पर तुष्टीकरण की नीति अपनाकर आगे बढ़ेगा, या फिर सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार करेगा?
भारतीय समाज का असली बल उसकी सहिष्णुता में है, लेकिन यह सहिष्णुता तब तक ही ठीक है जब तक कि इसे कमजोरी न समझा जाए। यदि कोई समाज या सरकार लगातार एक विशेष समुदाय को खुश करने की नीति अपनाती है, तो इससे बाकी समाज में असंतोष फैलता है और राष्ट्र की एकता को खतरा होता है।
निष्कर्ष
इंदिरा जयसिंह जैसे लोग जब धर्मनिरपेक्षता की बात करते हैं, तो उन्हें यह भी देखना चाहिए कि उनका कार्य कहीं तुष्टीकरण की श्रेणी में तो नहीं आ रहा। भारत का संविधान न्याय के सिद्धांतों पर आधारित है और जब किसी को न्यायालय द्वारा मृत्युदंड दिया जाता है, तो उसे रोकने का प्रयास करना न केवल न्यायपालिका का अपमान है, बल्कि यह आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को भी कमजोर करता है।
भारत इसलिए धर्मनिरपेक्ष है क्योंकि यहाँ हिंदू बहुसंख्यक हैं, जिन्होंने हमेशा धार्मिक सहिष्णुता दिखाई है। लेकिन जब आतंकवादियों के समर्थन में भीड़ उमड़ती है, जब आतंकवादियों के लिए विशेष दया की मांग की जाती है, तो यह धर्मनिरपेक्षता नहीं, बल्कि तुष्टीकरण होता है। और यह तुष्टीकरण भारत के हित में नहीं, बल्कि इसके खिलाफ जाता है।
जो लोग इस सच्चाई को जितनी जल्दी समझ लेंगे, वे उतनी जल्दी भारत के असली हित और इसकी धर्मनिरपेक्षता का वास्तविक स्वरूप पहचान पाएंगे।