तालिबान के अफ़ग़ानिस्तान में सत्ता में आने के बाद, क्षेत्रीय राजनीति में बड़े बदलाव देखने को मिले हैं। पाकिस्तान, जो तालिबान का दशकों से समर्थक रहा है, अब उसके साथ संघर्षरत है। दूसरी ओर, भारत और तालिबान के बीच बढ़ती नज़दीकियां पाकिस्तान के लिए चिंता का विषय बन गई हैं। भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में अपने रणनीतिक और आर्थिक हितों को ध्यान में रखते हुए तालिबान से संपर्क बढ़ाया है। यह लेख पाकिस्तान-तालिबान के संबंधों में गिरावट और भारत-तालिबान संबंधों में उभरती गर्मजोशी पर केंद्रित है।
पाकिस्तान और तालिबान के संबंध: शुरुआत में उम्मीद, अब संघर्ष
15 अगस्त 2021 को, तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान पर कब्जा कर लिया। पाकिस्तान ने इसे अपनी जीत मानते हुए जश्न मनाया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने कहा था कि अफ़ग़ानिस्तान के लोगों ने "ग़ुलामी की ज़ंजीरें तोड़ दी हैं।" यह प्रतिक्रिया इस बात का संकेत थी कि पाकिस्तान को तालिबान से बड़ी उम्मीदें थीं।
हालांकि, चार सालों में यह परिदृश्य पूरी तरह बदल गया है। तालिबान और पाकिस्तान अब आमने-सामने हैं। दोनों के बीच हमलों का आदान-प्रदान हो रहा है। अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक़्क़ानी ने इस नीति को विफल बताते हुए कहा है कि तालिबान के आने से पाकिस्तान को फायदा होने की बजाय मुसीबतें बढ़ी हैं।
भारत और अफ़ग़ानिस्तान: बदलती रणनीति और बढ़ते संबंध
अशरफ़ ग़नी की सरकार के पतन और तालिबान के सत्ता में आने से भारत के लिए बड़ा झटका माना गया था। भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में अरबों डॉलर का निवेश किया था, जो ख़तरे में पड़ता दिख रहा था। लेकिन कुछ महीनों में भारत ने तालिबान से संपर्क स्थापित किया।
8 जनवरी 2025 को दुबई में भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने तालिबान के कार्यकारी विदेश मंत्री आमिर ख़ान मुत्ताक़ी से मुलाकात की। इस बैठक में अफ़ग़ानिस्तान और भारत के बीच आर्थिक और राजनीतिक संबंधों को मज़बूत करने पर चर्चा हुई।
चाबहार पोर्ट और भारत का रणनीतिक निवेश
तालिबान ने भारत को "अहम क्षेत्रीय और आर्थिक साझेदार" बताया। अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मंत्रालय ने भारत के चाबहार पोर्ट के माध्यम से व्यापार बढ़ाने की बात कही। भारत चाबहार पोर्ट को पाकिस्तान के ग्वादर और कराची पोर्ट को बाईपास करने के लिए विकसित कर रहा है।
तालिबान के साथ भारत की बातचीत का मुख्य उद्देश्य विकास परियोजनाओं को फिर से शुरू करना और व्यापारिक सहयोग बढ़ाना है। तालिबान के आने के बाद से रुकी हुई परियोजनाओं को फिर से चालू करने की दिशा में यह बातचीत एक महत्वपूर्ण कदम है।
पाकिस्तान की तालिबान नीति की विफलता
पाकिस्तान ने तालिबान से लंबे समय तक समर्थन की उम्मीद लगाई थी। लेकिन तालिबान ने पाकिस्तान के आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करने से इनकार कर दिया है। पाकिस्तान तालिबान (टीटीपी) के बढ़ते हमलों से परेशान है।
पाकिस्तान के राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि तालिबान के साथ संबंधों को लेकर पाकिस्तान ने गलत अनुमान लगाया। पाकिस्तानी विश्लेषक मोहम्मद आमिर राना ने कहा कि पाकिस्तान ने तालिबान को हक्कानी गुट के नजरिए से देखा और इस वजह से अपने हितों को सही ढंग से समझ नहीं पाया।
भारत-तालिबान संपर्क पर पाकिस्तान की प्रतिक्रिया
दुबई में भारत और तालिबान के बीच बैठक ने पाकिस्तान को चिंतित कर दिया है। भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान के हवाई हमलों की निंदा की है। अमेरिका के राजनीतिक विश्लेषक क्रिस्टोफर क्लैरी ने कहा कि पाकिस्तान को यह समझना चाहिए कि तालिबान का समर्थन करना उसके लिए रणनीतिक रूप से फायदेमंद नहीं रहा।
माइकल कुगलमैन ने भारत-तालिबान संबंधों को व्यावहारिक बताते हुए कहा कि भारत अफ़ग़ानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल आतंकवादी हमलों के लिए नहीं चाहता। इसके अलावा, चाबहार के माध्यम से अफ़ग़ानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच बढ़ाने की भारत की कोशिशें भी अहम हैं।
Foreign Secy @VikramMisri met Acting Foreign Minister of Afghanistan Mawlawi Amir Khan Muttaqi in Dubai today.
— Randhir Jaiswal (@MEAIndia) January 8, 2025
Both sides discussed 🇮🇳's ongoing humanitarian assistance to Afghanistan, bilateral issues and security situation in the region. India reiterated its commitment to… pic.twitter.com/a3UyuIqkAG
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत-तालिबान के संबंध
भारत और तालिबान के बढ़ते संबंधों को पाकिस्तान के आईने में देखना सही नहीं होगा। भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में विकास परियोजनाओं और आतंकवाद के खतरों को ध्यान में रखकर तालिबान से संपर्क बढ़ाया है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसी भी देश ने तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है। भारत भी तालिबान के साथ धीरे-धीरे संबंध सुधारने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है। स्टैनली जॉनी ने लिखा कि भारत और तालिबान के बीच संपर्क बढ़ने का मतलब यह नहीं कि संबंध सामान्य हो गए हैं। यह एक रणनीतिक कदम है।
तालिबान से बढ़ते संबंधों पर भारत में मतभेद
तालिबान से संपर्क को लेकर भारत में भी आलोचना हो रही है। अफ़ग़ान रिपब्लिक के राजदूत एम अशरफ़ हैदरी और फ़रीद मामुन्दजई ने इसे अफ़ग़ान जनता और भारत के मूल्यों के खिलाफ बताया। उन्होंने कहा कि तालिबान का समर्थन करना भारत के लिए लंबे समय में खतरनाक हो सकता है।
निष्कर्ष
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद दक्षिण एशिया की राजनीति में महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं। पाकिस्तान और तालिबान के बीच बढ़ते तनाव और भारत-तालिबान के बीच बढ़ते संपर्क इस क्षेत्र की नई कूटनीति को दर्शाते हैं। भारत ने अपने रणनीतिक और आर्थिक हितों को ध्यान में रखते हुए तालिबान के साथ संबंध बनाए रखना शुरू किया है। यह स्पष्ट है कि भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए तालिबान एक चुनौती और अवसर दोनों बन गया है।