सारांश: इस लेख में कांग्रेस पार्टी और चीन के बीच संबंधों की पड़ताल की गई है, खासकर 2008 में हुए एमओयू के संदर्भ में। ताजा मामला केन्या में अडानी इंटरप्राइजेज द्वारा नैरोबी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के संचालन और रखरखाव की बोली जीतने से जुड़ा है। कांग्रेस के नेताओं, विशेषकर जयराम रमेश, ने अडानी ग्रुप की सफलता को लेकर सवाल उठाए हैं, यह दावा करते हुए कि इससे भारत-केन्या संबंध खराब हो सकते हैं। इसके अलावा, लेख में बांग्लादेश और श्रीलंका में हुए घटनाक्रमों में अडानी ग्रुप की भूमिका पर भी चर्चा की गई है, जहां कांग्रेस पार्टी के आरोपों को हास्यास्पद और आधारहीन है।
कांग्रेस और चीन के बीच पुराने संबंधों की समीक्षा : कांग्रेस पार्टी और चीन के बीच संबंधों का जिक्र अक्सर चर्चा में आता रहा है। खासकर 2008 में कांग्रेस और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के बीच हुए एमओयू (मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग) ने इन संबंधों को गहरा किया। यह समझौता आज कई सवालों के घेरे में है, क्योंकि हाल की घटनाओं से यह स्पष्ट हो रहा है कि चीन और कांग्रेस के बीच गहरे संबंध हैं। अडानी ग्रुप के केन्या में जोमो केन्याटा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का ठेका जीतने के बाद कांग्रेस की प्रतिक्रिया इस संबंध को और उजागर करती है।
केन्या में अडानी की जीत से कांग्रेस को चिंता क्यों? : हाल ही में अडानी इंटरप्राइजेज ने केन्या के जोमो केन्याटा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के संचालन और रखरखाव का ठेका चीन के बोली के विरुद्ध जीता। यह एक बड़ी जीत थी, लेकिन कांग्रेस पार्टी के नेताओं को यह खबर बुरी लगी की आखिर चीन के सामने अडानी को ये ठेका कैसे मिल गया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने ट्वीट करके दावा किया कि इस ठेके से भारत-केन्या संबंध खराब हो सकते हैं। रमेश के अनुसार, यह स्थिति केन्या में भी वैसी ही उथल-पुथल पैदा कर सकती है, जैसी बांग्लादेश में देखी गई। हालांकि, इस तर्क की कोई ठोस बुनियाद नहीं है और यह सिर्फ अडानी ग्रुप के खिलाफ एक राजनीतिक आरोप है।
श्रीलंका और बांग्लादेश में अडानी की भूमिका पर कांग्रेस की आलोचना : कांग्रेस ने अडानी ग्रुप की श्रीलंका और बांग्लादेश में परियोजनाओं को भी निशाना बनाया है। जयराम रमेश ने दावा किया कि श्रीलंका में अडानी की गैर पारंपरिक ऊर्जा परियोजना के कारण वहां अस्थिरता पैदा हुई थी। इसी तरह, बांग्लादेश में अडानी ग्रुप के पावर प्लांट से बिजली की आपूर्ति को लेकर कांग्रेस का आरोप है कि बांग्लादेश की जनता नाराज हो गई, जिससे वहां तख्तापलट की स्थिति बनी। लेकिन वास्तव में, बांग्लादेश में तख्तापलट अमेरिकी सरकार के इशारे पर हुआ था, न कि अडानी की वजह से।
कांग्रेस की चीन से नजदीकियां और राष्ट्रीय सुरक्षा पर सवाल : चीन और कांग्रेस के बीच गहरे संबंध देश की सुरक्षा के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बनते जा रहे हैं। राहुल गांधी और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के बीच हुए समझौते के बाद से यह सवाल उठता रहा है कि कांग्रेस का चीन से इतना लगाव क्यों है? अगर भविष्य में भारत और चीन के बीच किसी भी प्रकार की मुठभेड़ होती है, तो कांग्रेस पार्टी के सदस्य चीन का समर्थन कर सकते हैं, जो कि देश की सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है। यह मुद्दा राजनीतिक दृष्टिकोण से बेहद संवेदनशील है।
मोदी के खिलाफ कांग्रेस का एजेंडा और अडानी ग्रुप का मुद्दा : कांग्रेस पार्टी और उसके नेताओं का मुख्य उद्देश्य मोदी सरकार को हटाना है, चाहे इसके लिए उन्हें कितनी भी निचली स्तर की राजनीति करनी पड़े। अडानी ग्रुप की सफलताओं को मोदी सरकार से जोड़कर कांग्रेस उसे निशाना बनाती रही है। चाहे वह श्रीलंका, बांग्लादेश, या केन्या का मामला हो, कांग्रेस हर जगह अडानी ग्रुप को निशाना बनाकर मोदी सरकार पर सवाल उठाती है। लेकिन इन आरोपों के पीछे कोई ठोस प्रमाण या तथ्य नहीं होते, और यह सिर्फ राजनीतिक विरोध की एक रणनीति बन गई है।
निष्कर्ष: कांग्रेस का राजनीतिक विरोध और देशहित की उपेक्षा : कांग्रेस पार्टी का अडानी ग्रुप और मोदी सरकार के खिलाफ लगातार विरोध केवल राजनीतिक लाभ उठाने का एक तरीका बन गया है। चीन के साथ कांग्रेस के पुराने संबंध और वर्तमान में उठाए जा रहे आरोप इस बात का प्रमाण हैं कि पार्टी राष्ट्रीय हितों को ताक पर रखकर केवल सत्ता पाने की चाह में लगी है। कांग्रेस का यह रवैया देश की सुरक्षा और विकास के लिए खतरनाक हो सकता है, और इसका विरोध जरूरी है।