सारांश, पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने अहमदिया समुदाय के पक्ष में दिए गए अपने एक फैसले को वापस ले लिया है, जिसमें उन्हें अपने धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता दी गई थी। इस फैसले के बाद कट्टरपंथियों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया और जजों को धमकियाँ दी गईं, जिसके चलते न्यायालय ने अपना फैसला पलट दिया। यह घटना पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय के प्रति बढ़ते दबाव और धार्मिक कट्टरता का उदाहरण है। सुप्रीम कोर्ट ने मजबूर होकर मौलवियों की सलाह के अनुसार फैसला बदल दिया, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि पाकिस्तान में धार्मिक स्वतंत्रता कितनी सीमित है।
1. अहमदिया समुदाय पर प्रतिबंध
पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय को मुस्लिम नहीं माना जाता और उनके खिलाफ कई प्रकार के कानूनी और सामाजिक प्रतिबंध हैं। उन्हें मस्जिदों में नमाज पढ़ने, इस्लामी अभिवादन का उपयोग करने, और कुरान का सार्वजनिक उद्धरण करने जैसे धार्मिक कार्यों से रोका जाता है। इसके अलावा, अहमदिया समुदाय को अपनी धार्मिक सामग्री का उत्पादन और प्रसार करने से भी प्रतिबंधित किया गया है। उनके लिए केवल उन्हीं मस्जिदों का उपयोग करना अनिवार्य है जो विशेष रूप से अहमदिया संप्रदाय के लिए बनाई गई हैं।
2. सुप्रीम कोर्ट का अहमदिया समुदाय के पक्ष में निर्णय
पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अहमदिया समुदाय के पक्ष में एक निर्णय दिया था, जिसमें उन्होंने अहमदिया समुदाय को अपने धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता दी थी। यह फैसला मुबारक सानी मामले में आया था, जिसमें उन्हें एक धार्मिक पुस्तक के प्रसार के लिए गिरफ्तार किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि यह कानून सानी के खिलाफ पूर्वव्यापी रूप से लागू नहीं किया जा सकता, क्योंकि उन्होंने यह कार्य कानून लागू होने से पहले किया था।
3. फैसले के बाद विरोध प्रदर्शन
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद कट्टरपंथियों ने भारी विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) जैसे संगठनों ने इस फैसले के खिलाफ आंदोलन चलाया और इसे सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से प्रसारित किया। इसके बाद सड़कों पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए, जिसमें फजलुर रहमान जैसे कट्टरपंथियों ने भी हिस्सा लिया। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट पर फैसले को वापस लेने का दबाव डाला।
4. कट्टरपंथियों के दबाव में सुप्रीम कोर्ट
कट्टरपंथियों के बढ़ते दबाव के चलते सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले पर पुनर्विचार करना शुरू कर दिया। मुख्य न्यायाधीश काज़ी फ़ैज़ ईसा ने मुफ़्ती तकी उस्मानी और मौलाना फ़ज़लुर रहमान जैसे इस्लामी विद्वानों से परामर्श लिया। अंततः, सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में संशोधन किया और अहमदिया समुदाय को दी गई स्वतंत्रता को वापस ले लिया। इसके साथ ही, न्यायालय ने अपने पहले के आदेश से वे सभी पैराग्राफ हटा दिए, जिनमें अहमदिया समुदाय को अपने धार्मिक विश्वासों का पालन करने का अधिकार दिया गया था।
5. मौलवियों की सलाह पर फैसला बदलना
सुप्रीम कोर्ट के जजों ने फैसले में संशोधन करते समय मौलवियों से सलाह ली। मुफ़्ती तकी उस्मानी ने धर्मांतरण की व्याख्या पर चिंताओं का हवाला देते हुए फैसले के कुछ हिस्सों को हटाने की सिफारिश की, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। इसके बाद, सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि अहमदिया समुदाय अभी भी मुस्लिम के रूप में पहचान नहीं रखते और उन्हें अपनी इबादतगाहों के बाहर अपने विश्वासों का प्रचार करने की अनुमति नहीं है।
6. सरकार और मजहबी उलेमाओं का दबाव
पाकिस्तान की संघीय सरकार और मजहबी उलेमाओं ने भी इस फैसले के खिलाफ अपनी याचिकाएँ दायर कीं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से फैसले की समीक्षा करने का अनुरोध किया, क्योंकि सिविल प्रक्रिया के तहत दूसरी समीक्षा संभव नहीं थी। इस्लामिक विचारधारा परिषद (सीआईआई) की सिफारिशों पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में बदलाव किया और अहमदिया समुदाय को दी गई स्वतंत्रता को वापस ले लिया।
7. पाकिस्तान में धार्मिक कट्टरता का बढ़ता प्रभाव
यह घटना पाकिस्तान में बढ़ती धार्मिक कट्टरता और धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ते दबाव का एक और उदाहरण है। अहमदिया समुदाय के खिलाफ विरोध और सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए मजबूर होना यह दर्शाता है कि पाकिस्तान में धार्मिक स्वतंत्रता कितनी सीमित है। यह स्थिति देश के अल्पसंख्यकों के लिए चिंता का विषय है और उनके अधिकारों की सुरक्षा के लिए गंभीर प्रयासों की आवश्यकता है।
8. सुप्रीम कोर्ट की माफी और निर्णय में सुधार
सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहले के फैसले के लिए माफी मांगी और मौलवियों से सलाह लेकर निर्णय में सुधार किया। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि संघीय सरकार ने निर्णय की समीक्षा की मांग की थी और इस्लामिक विचारधारा परिषद (सीआईआई) की सिफारिशों पर विचार किया था। अदालत ने उन सभी 'विवादास्पद पैराग्राफों' को हटाने का फैसला किया जिनमें अहमदिया समुदाय को धार्मिक स्वतंत्रता दी गई थी।
9. भविष्य में अहमदिया समुदाय की स्थिति
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से स्पष्ट है कि पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय की स्थिति बहुत ही नाजुक है। उन्हें न केवल कानूनी रूप से, बल्कि सामाजिक रूप से भी उत्पीड़न और भेदभाव का सामना करना पड़ता है। यह घटना पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए गंभीर चिंताओं को जन्म देती है और इस बात की आवश्यकता पर जोर देती है कि धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यक अधिकारों की सुरक्षा के लिए गंभीर प्रयास किए जाएं।