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मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने कट्टरपंथियों के विरुद्ध UCC को बताया महत्वपूर्ण

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने समान नागरिक संहिता (UCC) को लागू करने की जरूरत पर जोर दिया है। कोर्ट ने कहा कि UCC से रूढ़िवादी प्रथाओं पर लगाम लग सकती है। यह टिप्पणी कोर्ट ने तीन तलाक के एक मामले की सुनवाई के दौरान की। जस्टिस अनिल वर्मा ने कहा कि समाज में कई कट्टरपंथी प्रथाएँ प्रचलित हैं जिन्हें समाप्त करने के लिए UCC की आवश्यकता है। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 44 का उल्लेख किया, जो समान नागरिक संहिता का समर्थन करता है। हाल ही में, कई भाजपा शासित राज्यों ने UCC लागू करने की पहल की है, और उत्तराखंड में इसे लागू भी किया गया है।

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की टिप्पणी :
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने तीन तलाक के एक मामले की सुनवाई करते हुए समान नागरिक संहिता (UCC) को लागू करने की आवश्यकता पर जोर दिया। कोर्ट ने कहा कि UCC से कट्टरपंथी और अंधविश्वासी प्रथाओं पर लगाम लगाई जा सकती है। जस्टिस अनिल वर्मा ने कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 44 में UCC का समर्थन किया गया है, लेकिन इसे केवल कागज़ों पर नहीं, बल्कि असलियत में लागू करने की जरूरत है।

तीन तलाक और UCC :
कोर्ट ने कहा कि 2019 में तीन तलाक को अवैध घोषित करते हुए भारत की संसद ने कानून पास किया था, जो एक अच्छा कदम था। हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि हमारे जनप्रतिनिधियों को यह जानने में कई साल लग गए कि तीन तलाक असंवैधानिक और समाज के लिए बुरा है। इसी के साथ, कोर्ट ने कहा कि हमें बहुत जल्द ही देश में UCC की आवश्यकता को समझने की जरूरत है।

तीन तलाक का मामला :
कोर्ट में दो महिलाओं ने राहत की माँग करते हुए अपील की थी। मुस्लिम महिला ने आरोप लगाया था कि उसकी ननद और सास ने उसे निकाह के बाद प्रताड़ित किया और दहेज़ को लेकर मारपीट की। महिला ने यह भी कहा कि उसके शौहर ने उसे प्रताड़नाएँ दीं और विरोध करने पर तीन बार तलाक बोलकर घर से बाहर निकाल दिया।

कोर्ट का निर्णय :
मुस्लिम महिला ने इस मामले में शौहर के साथ ही उसके घरवालों पर तीन तलाक कानून के तहत मामला चलाने की अपील की थी। हालाँकि, कोर्ट ने कहा कि यह कानून शौहर के तीन तलाक देने पर ही लागू होता है, इसलिए कोर्ट ने उसकी सास और ननद को राहत दे दी। कोर्ट ने इस मामले में UCC की आवश्यकता को भी स्पष्ट किया।

UCC का मुद्दा :
बीते कुछ समय से देश भर में UCC का मुद्दा जोर पकड़ रहा है। कई भाजपा शासित राज्य इसे लागू करने की तैयारी में हैं। उत्तराखंड में धामी सरकार इसे लागू भी कर चुकी है और इसके क्रियान्वन पर काम चल रहा है। भाजपा ने भी लगातार UCC को व्यापक तरीके से लागू किए जाने की वकालत की है।

UCC का महत्व :
समान नागरिक संहिता का उद्देश्य सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून व्यवस्था स्थापित करना है। यह विभिन्न धार्मिक समुदायों में प्रचलित रूढ़िवादी और अंधविश्वासी प्रथाओं को समाप्त करने में मदद कर सकता है। इससे महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा और समाज में समानता स्थापित करने में मदद मिलेगी।

संवैधानिक समर्थन :
भारत के संविधान का अनुच्छेद 44 समान नागरिक संहिता का समर्थन करता है। यह कहता है कि राज्य को यह प्रयास करना चाहिए कि भारत के सभी नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता हो। इस संदर्भ में, मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की टिप्पणी इस संवैधानिक सिद्धांत के प्रति समर्थन को दर्शाती है।

सामाजिक परिवर्तन :
समान नागरिक संहिता लागू करने से समाज में व्यापक बदलाव आ सकते हैं। यह विभिन्न धार्मिक समुदायों में प्रचलित अंधविश्वासी और बुरी प्रथाओं को समाप्त करने में मदद करेगा। इससे महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा होगी और समाज में समानता और न्याय की स्थापना होगी।

राजनीतिक समर्थन :
विभिन्न राजनीतिक दलों ने भी UCC का समर्थन किया है। खासकर भाजपा ने इसे अपने एजेंडे में प्रमुखता दी है। भाजपा शासित राज्यों में UCC लागू करने की पहल हो रही है और इसके क्रियान्वन पर काम चल रहा है। इससे अन्य राज्यों में भी UCC लागू करने की दिशा में कदम बढ़ सकते हैं।

चुनौतियाँ :
UCC लागू करने में कई चुनौतियाँ भी हैं। विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच इसे लेकर विरोध और असहमति हो सकती है। इसे लागू करने के लिए सरकार को सभी समुदायों के साथ संवाद और समन्वय करना होगा। इसके अलावा, कानूनी और प्रशासनिक ढांचे में भी बदलाव की आवश्यकता होगी।

निष्कर्ष :
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की टिप्पणी और UCC के प्रति समर्थन ने इसे एक महत्वपूर्ण मुद्दा बना दिया है। UCC लागू करने से समाज में प्रचलित रूढ़िवादी और अंधविश्वासी प्रथाओं को समाप्त करने में मदद मिलेगी। इससे महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा और समाज में समानता और न्याय की स्थापना होगी। इसे लागू करने के लिए सरकार और समाज को मिलकर प्रयास करना होगा।