मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु के तिरुनेलवेली जिले के इरवाडी शहर में मुहर्रम समारोह के दौरान ढोल, संगीत और रथ यात्रा (कुथिराई पंच) के आयोजन की अनुमति दी है। कोर्ट ने इस फैसले में उन मुस्लिमों को घर में रहने की सलाह दी है जिन्होंने इस आयोजन पर आपत्ति जताई थी। कोर्ट ने इस दौरान कहा कि मौलिक अधिकारों को कट्टरपंथी ताकतों पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए। यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 19 (1)(बी) और (डी) के तहत संरक्षित अधिकारों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है।
मुहर्रम समारोह की अनुमति :
मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु के तिरुनेलवेली जिले के इरवाडी शहर में ढोल, संगीत और कुथिराई पंचा (रथ यात्रा) के साथ मुहर्रम समारोह आयोजित करने की इजाजत दी है। कोर्ट ने इस दौरान उन मुस्लिमों को घर में रहने की सलाह दी जिन्होंने इस तरह के आयोजन से आपत्ति जताई थी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मौलिक अधिकारों को कट्टरपंथी ताकतों पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
मौलिक अधिकारों की रक्षा :
जस्टिस जी आर स्वामीनाथन ने सुनवाई के दौरान जोर दिया कि मजहबी जुलूस निकालने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19 (1)(बी) और (डी) के तहत संरक्षित है और कट्टरपंथी तौहीद जमात को यह बताने का हक नहीं है कि अन्य समुदाय के लोगों को त्योहार कैसे मनाना चाहिए।
प्रशासन की नपुंसकता :
अदालत ने यह भी कहा कि जब किसी के मौलिक अधिकार खतरे में हों तो प्रशासन का कर्तव्य है कि वह उन अधिकारों को बनाए रखने का प्रयास करें। लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक कोर्ट ने कहा, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिला प्रशासन ने कट्टरपंथी तत्वों द्वारा दी गई धमकियों के आगे घुटने टेक दिए। अगर किसी के मौलिक अधिकार खतरे में हैं तो प्रशासन का कर्तव्य है कि वह अधिकारों को बनाए रखे और अधिकारों के प्रयोग में बाधा डालने वालों को दबाए। मौलिक अधिकारों को कट्टरपंथी ताकतों पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए। अगर जिला प्रशासन कानून और व्यवस्था के मुद्दों का हवाला देकर अधिकारों के प्रयोग को प्रतिबंधित करने का आसान और आलसी विकल्प अपनाता है, तो यह उनकी नपुंसकता को दर्शाता है।”
रीति-रिवाज और भाषा में विविधता :
कोर्ट ने यह भी कहा कि जैसे जगह के साथ भाषा बदलती है वैसे ही रीति-रिवाज में भी बदलाव होता है। अगर इरवाडी के लोग संगीत, ढोल की थाप और रथ जुलूस में विश्वास करते हैं तो उनसे सऊदी अरब के व्यवहार के अनुरूप होने की उम्मीद करना तालिबानी दृष्टिकोण से कम नहीं है।
कट्टरपंथी तौहीद-ए-जमात को फटकार :
कोर्ट ने कट्टरपंथी संगठन 'तौहीद-ए-जमात' को भी फटकार लगाई। कोर्ट ने उन्हें कहा कि अगर इस समूह का यह मानना है कि ऐसे कार्यक्रम उनकी मान्यता के मुताबिक नहीं हैं, तो वे इसमें शामिल न हों और अपने घर में रहें, लेकिन किसी और को ऐसा करने से न रोकें।
मुहर्रम जुलूस पर विवाद :
मुहर्रम जुलूस को लेकर कुछ समय पहले मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी। तौहीद जमात ने इस बात का विरोध किया था कि मुहर्रम ढोल के साथ नहीं मनाया जाना चाहिए। वहीं, थमीम सिंधा मदार नामक व्यक्ति ने बताया था कि इरवाडी शहर में मुस्लिम श्रद्धालुओं का एक वर्ग परंपरागत रूप से वर्षों से ढोल और संगीत के साथ मुहर्रम जुलूस निकालता रहा है, जिसे संथानाकुडु जुलूस और कुथिराई पंच के रूप में जाना जाता है।
हाईकोर्ट का फैसला :
इसी याचिका पर मद्रास हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाया और कट्टरपंथी समूह को फटकार लगाई। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 19 (1)(बी) और (डी) के तहत हर नागरिक को अपने मजहबी और सांस्कृतिक कार्यक्रम मनाने का अधिकार है। यह फैसला न्याय और अधिकारों की रक्षा के पक्ष में एक महत्वपूर्ण कदम है।
निष्कर्ष :
मद्रास हाईकोर्ट का यह फैसला न केवल इरवाडी के लोगों के लिए बल्कि पूरे देश के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है। यह दिखाता है कि संविधान द्वारा प्रदान किए गए मौलिक अधिकारों की रक्षा हर हाल में की जानी चाहिए और कट्टरपंथी ताकतों के आगे झुकना नहीं चाहिए। यह फैसला एक नजीर बन सकता है जिससे यह साबित होता है कि भारतीय न्याय प्रणाली मौलिक अधिकारों की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है।