कॉन्ग्रेस को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से हमेशा से समस्या रही है। 60 के दशक में कॉन्ग्रेस ने सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की गतिविधियों में शामिल होने पर प्रतिबंध लगाया था। 1966 में केंद्र सरकार में काम करने वाले कर्मचारियों को आरएसएस की गतिविधियों में शामिल होने पर बैन लगा था, जिसे मोदी सरकार ने अब हटाया है। कॉन्ग्रेस नेता जयराम रमेश ने 1966 के आदेश की फोटो भी शेयर की और नाराजगी जताई। यह समस्या महात्मा गाँधी की हत्या के बाद से ही शुरू हुई थी और 1975 और 1992 में फिर से बैन लगाया गया था। कई सरकारी कर्मचारियों को आरएसएस से जुड़े होने पर नौकरी से निकाला भी गया था।
कॉन्ग्रेस और आरएसएस के बीच टकराव :
कॉन्ग्रेस और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के बीच का टकराव लंबे समय से चला आ रहा है। यह टकराव महात्मा गाँधी की हत्या के बाद शुरू हुआ, जब कॉन्ग्रेस ने आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया था। उस समय गृहमंत्री सरदार पटेल ने आरएसएस के समर्थन में आवाज उठाई थी और सत्याग्रह के बाद बैन हटा दिया गया था। लेकिन इसके बावजूद कॉन्ग्रेस की नजरें आरएसएस पर बनी रहीं और 1966 में सरकारी कर्मचारियों को आरएसएस की गतिविधियों में भाग लेने से रोकने के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया।
1966 का प्रतिबंध और मोदी सरकार का फैसला :
1966 में केंद्र सरकार में काम करने वाले कर्मचारियों को आरएसएस की गतिविधियों में शामिल होने पर प्रतिबंध लगाया गया था। यह प्रतिबंध 58 साल तक लागू रहा, जिसे अब मोदी सरकार ने हटाया है। इस प्रतिबंध को हटाने के फैसले पर कॉन्ग्रेस ने नाराजगी जताई है। कॉन्ग्रेस नेता जयराम रमेश ने 1966 के आदेश की फोटो शेयर करते हुए इस फैसले की आलोचना की है। इस प्रतिबंध का हटना कॉन्ग्रेस और आरएसएस के बीच के टकराव का एक नया अध्याय है।
फरवरी 1948 में गांधीजी की हत्या के बाद सरदार पटेल ने RSS पर प्रतिबंध लगा दिया था।
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) July 21, 2024
इसके बाद अच्छे आचरण के आश्वासन पर प्रतिबंध को हटाया गया। इसके बाद भी RSS ने नागपुर में कभी तिरंगा नहीं फहराया।
1966 में, RSS की गतिविधियों में भाग लेने वाले सरकारी कर्मचारियों पर प्रतिबंध लगाया… pic.twitter.com/17vGKJmt3n
आरएसएस पर आपातकाल और बाबरी मस्जिद विवाद :
1975 में इमरजेंसी के दौरान भी आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया गया था। तब भी आरएसएस ने अपने ऊपर लगे बैन के खिलाफ आवाज उठाई और 1977 के चुनावों में कॉन्ग्रेस के खिलाफ प्रदर्शन किया। नतीजतन, इंदिरा गाँधी और उनके बेटे संजय गाँधी अपनी सीटों से हार गए और आरएसएस से बैन हटा दिया गया। 1992 में बाबरी मस्जिद गिराने के बाद फिर से आरएसएस पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की गई, लेकिन कोर्ट ने आरएसएस के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं पाए और बैन हटाने का आदेश दिया।
सरकारी कर्मचारियों पर आरएसएस से जुड़े होने का आरोप :
कॉन्ग्रेस ने जब आरएसएस पर प्रतिबंध लगाने की इच्छा पूरी नहीं कर पाई, तो उन्होंने सरकारी कर्मचारियों को आरएसएस की गतिविधियों में शामिल होने से रोकने का प्रयास किया। पुलिस को कहा गया कि वे सत्यापित करें कि केंद्र में काम करने वाले लोग आरएसएस से तो नहीं जुड़े, और अगर जुड़े हैं तो उनकी नियुक्ति रद्द कर दी जाए। इसके कई उदाहरण सामने आए, जैसे कि रामशंकर रघुवंशी, रंगनाथाचार्य अग्निहोत्री और नागपुर के चिंतामणि, जिन्हें आरएसएस से जुड़े होने के कारण नौकरी से हटा दिया गया।
रामशंकर रघुवंशी का मामला :
रामशंकर रघुवंशी एक स्कूल शिक्षक थे, जिन्हें पहले स्कूल में शामिल कर लिया गया था। लेकिन बाद में पुलिस ने सरकार को बताया कि वे आरएसएस और जनसंघ की गतिविधियों में शामिल थे, इसलिए उन्हें नौकरी से हटा दिया गया। यह मामला आरएसएस से जुड़े सरकारी कर्मचारियों के प्रति कॉन्ग्रेस के रुख को स्पष्ट करता है। रघुवंशी का मामला उन कई मामलों में से एक है, जिसमें सरकारी कर्मचारियों को आरएसएस से जुड़े होने के कारण नौकरी से हटाया गया।
रंगनाथाचार्य अग्निहोत्री का मामला :
रंगनाथाचार्य अग्निहोत्री को कर्नाटक में मुंसिफ के पद के लिए चुना गया था। लेकिन पुलिस सत्यापन में पता चला कि वे अतीत में येलबुर्गा में आरएसएस के आयोजक थे, इसलिए सरकार ने उन्हें नौकरी में प्रवेश देने से मना कर दिया। यह मामला भी कॉन्ग्रेस के आरएसएस विरोधी रुख का एक उदाहरण है। अग्निहोत्री का मामला उन कई मामलों में से एक है, जिसमें आरएसएस से जुड़े सरकारी कर्मचारियों को नौकरी से हटाने का प्रयास किया गया।
नागपुर के चिंतामणि का मामला :
नागपुर के चिंतामणि उप पोस्ट मास्टर थे, जिन्हें आरएसएस के सदस्य होने के आरोप में सेवा से हटा दिया गया था। उन पर आरोप था कि वे संक्रांति के अवसर पर आरएसएस कार्यालय गए थे। चिंतामणि ने मैसूर हाई कोर्ट में इंसाफ की गुहार लगाई, जहाँ अदालत ने कहा कि आरएसएस एक गैर-राजनीतिक सांस्कृतिक संगठन है और इसमें गैर-हिंदुओं के प्रति कोई घृणा या दुर्भावना नहीं है। अदालत ने चिंतामणि के मामले में सरकार के आरोपों को बेहद अस्पष्ट पाया और उनके पक्ष में फैसला सुनाया।
कोर्ट के महत्वपूर्ण फैसले :
चिंतामणि के मामले में कोर्ट ने कहा कि जब तक किसी व्यक्ति पर उचित रूप से यह संदेह न हो कि वह कुछ गैरकानूनी काम कर रहा है या सार्वजनिक सुरक्षा के लिए हानिकारक है, तब तक यह कहना मुश्किल है कि किसी ऐसी संस्था से जुड़ाव मात्र, जिसे न तो गैरकानूनी घोषित किया गया है और न ही किसी असामाजिक या देशद्रोही गतिविधियों में लिप्त होने का आरोप है, नियम 3 के तहत कार्रवाई का आधार बन सकता है। यह फैसला कॉन्ग्रेस की नीतियों के खिलाफ एक महत्वपूर्ण न्यायिक हस्तक्षेप था।
It is sad that it has taken 58 years to stop apartheid against #RSS Swayamsevaks. Aren't you ashamed @Pawankhera that Congress labelled patriot RSS as a criminal community though you couldn't find anything to #cancel them from society? Three bans, nothing worked. https://t.co/Zy2SGdydhM
— Ratan Sharda 🇮🇳 रतन शारदा (@RatanSharda55) July 21, 2024
मोदी सरकार का नया कदम :
अब मोदी सरकार ने 58 साल बाद इस प्रतिबंध को हटाया है, जिसे कॉन्ग्रेस ने नकारात्मक दिखाने का प्रयास किया है। लेकिन जो लोग आरएसएस को जानते और समझते हैं, वे इस कदम की सराहना कर रहे हैं। मोदी सरकार के इस फैसले ने सरकारी कर्मचारियों को उनकी विचारधारा के आधार पर भेदभाव से मुक्त करने का प्रयास किया है। यह फैसला कॉन्ग्रेस और आरएसएस के बीच के लंबे समय से चले आ रहे टकराव का एक नया अध्याय है और सरकारी कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।