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भारत में रोहिंग्या घुसपैठ: एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा

भारत, एक बहुसांस्कृतिक और बहुधार्मिक देश होने के नाते, विभिन्न प्रकार की चुनौतियों का सामना करता है। इन चुनौतियों में से एक प्रमुख समस्या है अवैध घुसपैठियों का प्रवेश, विशेषकर रोहिंग्या मुस्लिमों का। म्यांमार और बांग्लादेश से आने वाले रोहिंग्या घुसपैठियों ने देश की आंतरिक सुरक्षा और सामाजिक स्थिरता को प्रभावित किया है। 

रोहिंग्या घुसपैठ की पृष्ठभूमि :
रोहिंग्या मुस्लिम म्यांमार के रखाइन प्रांत से आते हैं। 1982 में म्यांमार सरकार ने इन्हें नागरिकता से वंचित कर दिया, जिससे ये वहां के निर्वासित नागरिक बन गए। 2015 के बाद, म्यांमार में हुई हिंसा के कारण, लाखों रोहिंग्या लोग बांग्लादेश और भारत समेत अन्य देशों में शरण लेने के लिए मजबूर हुए। वर्तमान में, अनुमान है कि भारत में 40,000 से अधिक रोहिंग्या घुसपैठिए बसे हुए हैं और प्रति महीने 200 से अधिक नए रोहिंग्या घुसपैठियों को भारत में घुसाया जा रहा है।

मानव तस्करी और जलील मियाँ का गिरोह :
NIA (राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण) ने हाल ही में एक अंतरराष्ट्रीय मानव तस्करी गिरोह के मास्टरमाइंड जलील मियाँ को गिरफ्तार किया है। जलील मियाँ और उसके गिरोह के अन्य सदस्य रोहिंग्या मुस्लिमों को फर्जी दस्तावेज देकर भारत में बसाने का काम कर रहा था। इस गिरोह का प्रमुख जिबोन रूद्र पाल उर्फ सुमन पहले ही NIA के शिकंजे में आ चुका है। 

रोहिंग्या घुसपैठियों का भारत में जीवन :
भारत में बसने के बाद, रोहिंग्या घुसपैठियों को हिंदी और असमिया जैसी भाषाओं का प्रशिक्षण दिया जाता है ताकि वे पकड़े न जाएं। पहचान छिपाने के लिए इनका हुलिया तक बदल दिया जाता है। दिल्ली जैसे शहरों में कई शिविर हैं, जहां ये रोहिंग्या मुस्लिम रहते हैं। पिछले दो वर्षों में इनकी संख्या में दोगुनी वृद्धि हुई है।

केंद्र सरकार की नीति :
केंद्र सरकार ने स्पष्ट रूप से कहा है कि देश में रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए किसी भी प्रकार की कैम्प व्यवस्था नहीं है। सरकार इन्हें अवैध अप्रवासी मानती है और इन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा तक घोषित कर चुकी है। सरकार का कहना है कि रोहिंग्या घुसपैठियों की वजह से देश की आंतरिक सुरक्षा को खतरा हो सकता है, खासकर जब आतंकवादी लगातार हमले की फिराक में रहते हैं।

विपक्षी दलों का रुख :
जब भी सरकार एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) जैसे कानून लाने की कोशिश करती है, तो विपक्षी दल इस्लामी घुसपैठियों के समर्थन में उठ खड़े होते हैं। विपक्ष का कहना है कि रोहिंग्या शरणार्थी हैं और उन्हें मानवीय आधार पर मदद की जानी चाहिए। हालांकि, सरकार का तर्क है कि रोहिंग्या घुसपैठियों की बढ़ती संख्या और उनसे जुड़े अपराध देश की सुरक्षा और सामाजिक संतुलन के लिए खतरा बन सकते हैं।

विभिन्न राज्यों में रोहिंग्या घुसपैठ :
भारत के एक दर्जन से अधिक राज्यों में रोहिंग्या मुस्लिमों को बसाया जा रहा है। मुस्लिम बहुल जम्मू कश्मीर में इनकी संख्या 10,000 के आसपास बताई जाती है। यहां तक कि दक्षिण भारत के चेन्नई जैसे शहरों में भी ये घुसपैठिए बसाए जा रहे हैं। त्रिपुरा, जो बांग्लादेश से 856 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है, अकेले इस राज्य में पिछले 16 महीनों में 1018 घुसपैठियों को पकड़ा गया है।

अवैध गतिविधियों में संलिप्तता :
रोहिंग्या घुसपैठियों के कई अपराधों में शामिल होने के मामले सामने आए हैं। शाहीन बाग और जफराबाद में CAA (नागरिकता संशोधन अधिनियम) के खिलाफ हुए आंदोलन में भी इनका बड़ा हिस्सा रहा है। विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार, ये घुसपैठिए मानव तस्करी, जालसाजी, और अन्य अवैध गतिविधियों में शामिल रहे हैं।

संदर्भ:
1. राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि: सरकार के अनुसार, रोहिंग्या घुसपैठियों का बढ़ता प्रभाव राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है। 

2. संवैधानिक और मानवीय दृष्टिकोण: विपक्षी दल और मानवाधिकार संगठनों का मानना है कि रोहिंग्या शरणार्थियों को मानवीय आधार पर मदद मिलनी चाहिए।

3. NIA की कार्रवाई: NIA द्वारा जलील मियाँ और उसके गिरोह के 29 सदस्यों की गिरफ्तारी अवैध घुसपैठ के खिलाफ बड़ी सफलता है।

4. सीमा सुरक्षा: BSF की ओर से त्रिपुरा और अन्य सीमावर्ती राज्यों में अवैध घुसपैठ रोकने के लिए किए जा रहे प्रयासों की सराहना की जानी चाहिए।

निष्कर्ष:
रोहिंग्या घुसपैठ भारत के लिए एक गंभीर चुनौती है। इस समस्या का समाधान सरकार, सुरक्षा एजेंसियों, और सामाजिक संगठनों के संयुक्त प्रयासों से ही संभव है। जहां एक ओर मानवीय आधार पर शरणार्थियों की मदद करना आवश्यक है, वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय सुरक्षा को भी प्राथमिकता देनी होगी। अवैध घुसपैठ को रोकने और रोहिंग्या घुसपैठियों के मुद्दे का स्थायी समाधान खोजने के लिए एक संतुलित और प्रभावी नीति की आवश्यकता है।