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नालंदा विश्वविद्यालय: विध्वंश से लेकर आज उद्घाटन तक का सफर:

नालंदा विश्वविद्यालय, भारत की धरोहर और शिक्षा का प्रतीक, आज भी अपने इतिहास और गौरव के कारण चर्चा में है। 19 जून 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसके नए कैंपस का उद्घाटन किया, जिसके बाद यह प्राचीन विश्वविद्यालय एक बार फिर से सुर्खियों में आ गया है। इस लेख में हम नालंदा विश्वविद्यालय के इतिहास, महत्व, और इससे जुड़ी कहानियों पर विस्तृत चर्चा करेंगे।

नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना, आरंभिक इतिहास :
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना सन् 450 ईस्वी में गुप्त वंश के शासक कुमारगुप्त प्रथम द्वारा की गई थी। इसकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य था ध्यान और अध्यात्म के साथ-साथ ज्ञान का प्रसार। इस विश्वविद्यालय ने धीरे-धीरे भारत में उच्च शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण केंद्र बन गया और पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो गया। स्वयं गौतम बुद्ध ने कई बार इस विश्वविद्यालय की यात्रा की थी और यहाँ पर ध्यान भी लगाया था।

वास्तुकला और संरचना :
नालंदा विश्वविद्यालय की संरचना अद्वितीय थी। इसमें नौ मंजिला पुस्तकालय था, जिसे 'धर्म गूंज' कहा जाता था। इस पुस्तकालय को तीन हिस्सों में बाँटा गया था - रत्नरंजक, रत्नोदधि, और रत्नासागर। इस विशाल पुस्तकालय में एक समय में 90 लाख से ज्यादा किताबें थीं।

बख्तियार खिलजी का आक्रमण, चिढ़ और तबाही :
1193 में, मुगल आक्रांता बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय पर हमला किया। खिलजी ने विश्वविद्यालय को आग लगा दी, जिससे उसमें रखी गई पुस्तकें करीब तीन महीनों तक जलती रहीं। इस आक्रमण में हजारों धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षु मारे गए। खिलजी का नालंदा पर आक्रमण सिर्फ शारीरिक विध्वंस नहीं था, बल्कि यह एक सांस्कृतिक और बौद्धिक संपत्ति का भी नाश था।

इलाज और प्रतिशोध :
कहते हैं कि खिलजी बहुत बीमार पड़ा था और उसके हकीम उसकी बीमारी का इलाज नहीं कर पा रहे थे। तब उसे नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्रजी से इलाज कराने की सलाह दी गई। आचार्य ने कुरान के पन्नों पर एक अदृश्य दवा लगाई थी, जिसे पढ़ने पर खिलजी स्वस्थ हो गया। इसके बावजूद, उसने आचार्य का एहसान मानने के बजाय, भारतीय वैद्यों से चिढ़ में आकर नालंदा को नष्ट कर दिया।

नालंदा विश्वविद्यालय का महत्व,  उच्च शिक्षा का केंद्र :
नालंदा विश्वविद्यालय तक्षिला के बाद विश्व का सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय माना जाता है। सातवीं शताब्दी में चीन के यात्री ह्नेनसांग और इत्सिंग ने अपनी किताबों में इस विश्वविद्यालय का वर्णन किया है। यह विश्वविद्यालय केवल भारत ही नहीं, बल्कि कोरिया, जापान, तिब्बत, चीन, ईरान, इंडोनेशिया, ग्रीस, मंगोलिया समेत कई अन्य देशों के छात्रों के लिए भी शिक्षा का प्रमुख केंद्र था।

विविधता और विषयों की व्यापकता :
इस विश्वविद्यालय में सामान्य विषयों के अलावा धर्म, दर्शन, तर्कशास्त्र, चित्रकला, वास्तु, अंतरिक्ष विज्ञान, धातु विज्ञान, और अर्थशास्त्र की भी शिक्षा दी जाती थी। यहाँ शिक्षक और छात्रों के साथ सन्यासियों के विचारों को भी महत्व दिया जाता था। नालंदा में ज्ञान की विविधता और गहराई ने इसे एक अनूठा शैक्षिक संस्थान बनाया।

नालंदा की वर्तमान स्थिति, पुनर्निर्माण और विकास :
साल 2016 में, यूनेस्को ने नालंदा के प्राचीन अवशेषों को विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया। इसके बाद, नालंदा के पुनर्निर्माण का कार्य तेज हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नालंदा को एक विश्वविद्यालय नहीं बल्कि एक गौरव गाथा कहा है। आज, नालंदा विश्वविद्यालय न केवल अपने प्राचीन गौरव को पुनः प्राप्त कर रहा है, बल्कि आधुनिक शिक्षा का भी महत्वपूर्ण केंद्र बनता जा रहा है।

प्रधानमंत्री मोदी का उद्घाटन :
19 जून 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नालंदा विश्वविद्यालय के नए कैंपस का उद्घाटन किया गया। इस उद्घाटन ने एक बार फिर से इस प्राचीन विश्वविद्यालय की महत्ता को उजागर किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में कहा कि नालंदा न केवल एक शैक्षिक संस्थान है, बल्कि यह भारत की गौरवमयी शिक्षा परंपरा का प्रतीक भी है।

नालंदा का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व, वैश्विक ज्ञान का केंद्र :
नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन भारत के उन गिने-चुने संस्थानों में से एक था जिसने विश्व भर के विद्वानों को आकर्षित किया। यह ज्ञान और बौद्धिकता का केंद्र था, जहाँ विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों के विचारों का आदान-प्रदान होता था। इसके पुस्तकालय और शिक्षकों ने ज्ञान के क्षेत्र में अनगिनत योगदान दिए।

ऐतिहासिक धरोहर :
नालंदा के अवशेष आज भी इसकी प्राचीन महिमा और सांस्कृतिक समृद्धि की गवाही देते हैं। यहाँ की खुदाई में मिले अवशेष नालंदा की प्राचीनता और उसके वैभव को उजागर करते हैं। यह स्थल भारत की ऐतिहासिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसके संरक्षण और विकास के प्रयास निरंतर जारी हैं।

उपसंहार :
नालंदा विश्वविद्यालय न केवल भारत की बल्कि विश्व की धरोहर है। इसके इतिहास, शिक्षा प्रणाली, और बौद्धिक योगदान ने इसे एक अद्वितीय स्थान प्रदान किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इसके नए कैंपस का उद्घाटन एक महत्वपूर्ण कदम है, जो नालंदा की महत्ता और उसके योगदान को पुनः स्थापित करने का प्रयास है। नालंदा की कहानी न केवल अतीत की एक गौरवमयी गाथा है, बल्कि यह भविष्य के लिए एक प्रेरणा भी है, जो हमें ज्ञान और शिक्षा के महत्व को समझने और संजोने की सीख देती है।