हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट ने फ़िल्म 'हमारे बारह' को रिलीज़ करने की अनुमति दे दी है। इस फ़िल्म के कुछ संवादों और विषयों को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ था, जिसमें सूरा अल-बकरा, आयत 223 की व्याख्या भी शामिल थी। विवादित संवादों में औरतों के प्रति विचारधारा पर सवाल उठाए गए थे।
फ़िल्म में एक संवाद में कहा गया है, "तुम्हारी औरतें तुम्हारी खेती हैं, जाओ जैसे मर्जी चाहे अपनी औरतों पर खेती करो।" इस संवाद का संदर्भ इस्लामी शिक्षाओं से जोड़ा गया है, जो विवाद का कारण बना। साथ ही, संवादों में यह भी कहा गया है कि "औरत अगर गर्भवती भी हो और शौहर उसे अपने पास बुलाए तो औरत को न कहने की इजाजत नहीं है" और "औरत सिर्फ और सिर्फ अपने पति की गुलामी के लिए पैदा की गई है।"
हालांकि, कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि फ़िल्म में महिलाओं के हक की बात की गई है और इसमें कुछ भी गलत नहीं है। कोर्ट ने यह भी माना कि फ़िल्म में औरतों की स्थिति और उनके अधिकारों पर विचार करने का प्रयास किया गया है। फ़िल्म 'हमारे बारह' समाज में महिलाओं की भूमिका और उनके अधिकारों पर ध्यान आकर्षित करती है, और इसे सकारात्मक दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए।
इस निर्णय के बाद, फ़िल्म की रिलीज़ के साथ ही यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि दर्शक इसे कैसे ग्रहण करते हैं और समाज में इस पर क्या प्रभाव पड़ता है।