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नरेंद्र मोदी की तीसरी पारी: गठबंधन सरकार की चुनौतियाँ और भविष्य की योजनाएँ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राजनीतिक सफर भारतीय राजनीति में कई मील के पत्थर स्थापित कर चुका है। अपने दस वर्षों के कार्यकाल में उन्होंने न केवल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को लगातार दो बार पूर्ण बहुमत दिलाया, बल्कि अनेक महत्वपूर्ण नीतिगत और विधायी निर्णय भी लिए। अब, तीसरी बार सत्ता में लौटने के बाद, संभावनाएँ और चुनौतियाँ दोनों ही उनके सामने हैं। खासकर जब गठबंधन सरकार की बात आती है, तो कई नए प्रश्न उभर कर आते हैं। इस लेख में हम मोदी सरकार की उपलब्धियाँ, संभावित चुनौतियाँ और भविष्य की योजनाओं का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।

2014 और 2019: पूर्ण बहुमत की सरकार :
नरेंद्र मोदी ने 2014 और 2019 में क्रमशः 282 और 303 सीटें जीतकर भारतीय राजनीति में भाजपा को मजबूत स्थिति में स्थापित किया। इस दौरान उन्होंने कई अहम निर्णय लिए, जैसे राम मंदिर निर्माण, अनुच्छेद 370 का निरसन, तीन तलाक का खात्मा, नई शिक्षा नीति और नया दंड कानून। मोदी सरकार की ये निर्णय न केवल भाजपा के कोर एजेंडे का हिस्सा थे, बल्कि उन्होंने देश के सामाजिक और कानूनी ढांचे को भी प्रभावित किया।

गठबंधन की चुनौती :
अब, जब मोदी सरकार तीसरी बार सत्ता में आई है, तो यह देखना होगा कि गठबंधन सरकार की चुनौतियों का सामना कैसे करेगी। अटल बिहारी वाजपेयी ने भी 1999 में 182 सीटों के साथ गठबंधन सरकार चलाई थी, जो अपने आप में एक बड़ा राजनीतिक कौशल था। इसी प्रकार, 2004 और 2009 में कांग्रेस ने क्रमशः 145 और 206 सीटों के बावजूद UPA के बैनर तले गठबंधन सरकार चलाई थी।

गठबंधन और कोर एजेंडा :
गठबंधन सरकार के तहत भाजपा के कोर एजेंडे पर काम करना एक बड़ी चुनौती हो सकती है। समान नागरिक संहिता (UCC), नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स (NRC), जनसंख्या नियंत्रण और वक्फ बोर्ड को निरस्त करने जैसे मुद्दे भाजपा के कोर एजेंडे में शामिल हैं। लेकिन, सहयोगी दलों की सहमति के बिना इन मुद्दों पर काम करना मुश्किल हो सकता है। विपक्षी दल हर फैसले को हिन्दू-मुस्लिम की नज़र से देखेंगे और सहयोगी दलों पर दबाव बनाएँगे कि वो बयान दें, जिससे सरकार पर दबाव बढ़ सकता है।

विदेश नीति की सफलता :
नरेंद्र मोदी की विदेश नीति ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ख्याति दिलाई है। अमेरिका-अरब देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ मित्रता, संयुक्त राष्ट्र में भारत की मजबूत स्थिति, इजरायल-फलिस्तीन और रूस-यूक्रेन युद्ध जैसी स्थितियों में भारतीयों को सुरक्षित निकालना और 100 से अधिक देशों को कोरोना वैक्सीन उपलब्ध कराना उनकी कुशल विदेश नीति का प्रमाण है। यह अनुभव मोदी को गठबंधन सरकार चलाने में भी सहायक हो सकता है।

राजनाथ सिंह और नितिन गडकरी का अनुभव :
मोदी सरकार में राजनाथ सिंह और नितिन गडकरी जैसे अनुभवी नेताओं की उपस्थिति एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। राजनाथ सिंह वाजपेयी सरकार में भी मंत्री रहे हैं और नितिन गडकरी महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा सरकार में मंत्री थे। इनका अनुभव गठबंधन सरकार की चुनौतियों का सामना करने में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।

विकास और जन-कल्याणकारी योजनाएँ :
मोदी सरकार की विकास और जन-कल्याणकारी योजनाएँ जैसे शत-प्रतिशत गाँवों का विद्युतीकरण, महिलाओं को गैस सिलिंडर, हर घर नल सुविधा, चंद्रयान-3 की सफलता, गगनयान की तैयारी, कोरोना वैक्सीन की 200 करोड़ से अधिक खुराक, 80 करोड़ लोगों को राशन, करोड़ों शौचालय और घर, और देश की सुरक्षा सुदृढ़ करना – ये सब जारी रहेंगे। ये योजनाएँ मोदी सरकार की लोकप्रियता का एक बड़ा आधार हैं और इन्हें जारी रखना आवश्यक होगा।

न्यायिक सुधार और काशी-मथुरा का मुद्दा :
न्यायिक सुधारों को लेकर भी मोदी सरकार को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। कॉलेजियम सिस्टम के तहत जज ही जज को चुनते हैं, जो सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती हो सकती है। काशी और मथुरा में हिन्दुओं की जो लड़ाई चल रही है, वह भी एक बड़ा मुद्दा है। ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का एजेंडा, PoK (पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर) को वापस लाने की बातें, और वर्शिप एक्ट हटाने जैसे मुद्दे भी मोदी सरकार के एजेंडे में शामिल हैं। ये मुद्दे किस हद तक लागू हो पाएंगे, यह गठबंधन सरकार के समर्थन पर निर्भर करेगा।

भविष्य की योजनाएँ :
मोदी सरकार की भविष्य की योजनाओं में कई बड़े मुद्दे शामिल हैं। समान नागरिक संहिता, NRC, जनसंख्या नियंत्रण और वक्फ बोर्ड को निरस्त करना प्रमुख एजेंडे में हैं। इसके अलावा, न्यायिक सुधार, काशी-मथुरा का अतिक्रमण हटाना, और वन नेशन, वन इलेक्शन जैसे मुद्दे भी महत्वपूर्ण हैं। इन मुद्दों पर काम करना गठबंधन सरकार के समर्थन पर निर्भर करेगा।

निष्कर्ष :
नरेंद्र मोदी की तीसरी पारी में सरकार के सामने कई चुनौतियाँ और संभावनाएँ हैं। गठबंधन सरकार चलाना एक बड़ा राजनीतिक कौशल है और मोदी के पास इसका अनुभव और क्षमता दोनों ही हैं। विकास और जन-कल्याणकारी योजनाएँ जारी रहेंगी, लेकिन नीतिगत फैसलों में अड़चनें आ सकती हैं। मोदी सरकार का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि वे कैसे इन चुनौतियों का सामना करते हैं और अपने कोर एजेंडे को किस हद तक लागू कर पाते हैं। राजनाथ सिंह और नितिन गडकरी जैसे अनुभवी नेताओं का अनुभव और मोदी की कुशल विदेश नीति इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। समय ही बताएगा कि मोदी सरकार कैसे इन चुनौतियों का सामना करती है और भारतीय राजनीति में नए मील के पत्थर स्थापित करती है।