प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राजनीतिक अनुभव काफी विस्तृत और समृद्ध है। उन्होंने 23 वर्षों तक लगातार सरकार चलाने का अनुभव प्राप्त किया है, जिसमें से अधिकांश समय भाजपा के पूर्ण बहुमत वाली सरकारें रही हैं। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद, मोदी पहली बार एक ऐसी गठबंधन सरकार का नेतृत्व करेंगे जिसमें भाजपा अल्पमत में होगी। यह स्थिति उनके और भाजपा दोनों के लिए एक नई चुनौती होगी।
2024 लोकसभा चुनाव का परिणाम :
2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 240 सीटें मिली हैं। सरकार बनाने के लिए बहुमत के लिए 23 अन्य सांसदों की भी आवश्यकता होगी। हालांकि, इसमें कोई संदेह नहीं है कि नरेंद्र मोदी ही प्रधानमंत्री बनेंगे और भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार बनेगी, क्योंकि एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) के पास पूर्ण बहुमत से अधिक सीटें हैं।
एनडीए के महत्वपूर्ण सहयोगी दल :
एनडीए में भाजपा के दो सबसे बड़े साथी दल हैं – चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु दशम पार्टी (टीडीपी) और नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) यानी जेडीयू। आंध्र प्रदेश की टीडीपी के पास 16 सीटें हैं जबकि बिहार की जेडीयू को 12 सीटें मिली हैं। इन तीनों पार्टियों को मिलाकर कुल 268 सीटें होती हैं।
अन्य महत्वपूर्ण सहयोगी :
एनडीए में दो और बड़े दल हैं – महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना (शिंदे) जिसने 6 सीटें जीती हैं, और बिहार में चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) जिसने 5 सीटें जीती हैं। इसके अलावा, अपना दल (सोनेलाल) और अजीत पवार की एनसीपी को एक-एक सीट मिली है। इस तरह एनडीए को कुल मिलाकर 290 सीटें मिली हैं, जो बहुमत से 18 अधिक हैं।
गठबंधन सरकार चलाने की चुनौती :
भाजपा, टीडीपी और जेडीयू के अलावा शिवसेना (शिंदे) या एलजेपी (रामविलास) की भी आवश्यकता पड़ेगी। गठबंधन के सभी दलों की भूमिका और उनकी वैल्यू महत्वपूर्ण होगी। इसमें हर सांसद की अपनी महत्वपूर्ण भूमिका होगी और हर पार्टी की अच्छी हैसियत होगी। भाजपा के बाद एनडीए के दोनों सबसे बड़े दल – टीडीपी और जेडीयू के नेता हाल ही में विपक्षी एकता बनाने के प्रयास कर रहे थे।
चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार का राजनैतिक परिदृश्य :
चंद्रबाबू नायडू ने 2019 में राज्य-राज्य घूमकर विपक्षी एकता के लिए पहल की थी। वहीं, 2023 में यही काम नीतीश कुमार ने किया। चंद्रबाबू नायडू की 2019 के लोकसभा और आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनावों में करारी हार हुई थी, लेकिन अब उनकी टीडीपी ने आंध्र प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी वाईएसआरसीपी को हराकर 175 में से 134 सीटें जीती हैं। वहीं, नीतीश कुमार राजद से नाता तोड़कर वापस भाजपा के साथ आ गए हैं।
भरोसे की कमी और गठबंधन सरकार का प्रबंधन :
चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार दोनों ने अपने-अपने राज्यों में विभिन्न गठबंधनों के साथ काम किया है और विभिन्न विचारधारा के नेताओं के करीबी रहे हैं। ऐसे में उन पर भरोसा करना थोड़ा कठिन हो सकता है।
शिवसेना और एलजेपी का परिदृश्य :
चिराग पासवान के साथ 2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा का तालमेल नहीं बन पाया था और उन्होंने अकेले चुनाव लड़ा था। उनके पिता रामविलास पासवान को 'राजनीति के मौसम वैज्ञानिक' कहा जाता है क्योंकि वे सत्ताधारी लहर के हिसाब से अपना रुख बदलते रहते थे। वहीं, एकनाथ शिंदे हाल तक शिवसेना में थे और पार्टी तोड़कर भाजपा के साथ आए हैं।
चुनौतीपूर्ण नेतृत्व :
इन सभी दलों को साथ लेकर चलना नरेंद्र मोदी के लिए एक चुनौती होगी। प्रधानमंत्री के रूप में यह उनका पहला अनुभव होगा जब वह एक गठबंधन सरकार का नेतृत्व करेंगे जिसमें भाजपा अल्पमत में होगी। हालांकि, भाजपा के लिए यह स्थिति नई नहीं है, क्योंकि उसने अतीत में भी गठबंधन सरकारें चलाई हैं।
भाजपा की रणनीति और भविष्य की दृष्टि :
भाजपा को गठबंधन में अपनी स्थिति मजबूत रखने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाने होंगे। उन्हें न केवल अपने सहयोगियों के साथ बेहतर तालमेल बनाए रखना होगा, बल्कि अपने विकास और सुधार के एजेंडे को भी आगे बढ़ाना होगा। इसके लिए उन्हें निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान देना होगा:
1.विश्वास और सहयोग का निर्माण :
गठबंधन सरकार की स्थिरता के लिए सहयोगी दलों के साथ विश्वास और सहयोग का निर्माण महत्वपूर्ण होगा। इसके लिए नियमित संवाद और सहयोगियों की समस्याओं और चिंताओं का समाधान करना आवश्यक होगा।
2.विकास के एजेंडे को प्राथमिकता :
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विकास के एजेंडे को प्राथमिकता देनी होगी ताकि देश की जनता को सरकार के प्रति विश्वास बना रहे। इसके लिए बुनियादी ढांचा, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में निवेश बढ़ाना होगा।
3.सभी सहयोगियों के साथ संतुलन बनाना :
गठबंधन सरकार चलाने के लिए सभी सहयोगियों के साथ संतुलन बनाए रखना महत्वपूर्ण होगा। इसके लिए सभी दलों को समान महत्व देना और उनके योगदान को सम्मानित करना आवश्यक होगा।
4.राजनीतिक स्थिरता की आवश्यकता :
भाजपा को राजनीतिक स्थिरता बनाए रखने के लिए अपने सहयोगियों के साथ बेहतर तालमेल बनाए रखना होगा। इसके लिए नियमित बैठकों और सलाह-मशविरा का आयोजन करना होगा ताकि कोई भी समस्या उभरने से पहले ही उसका समाधान किया जा सके।
निष्कर्ष :
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए 2024 का चुनाव एक नई चुनौती लेकर आया है। अल्पमत में भाजपा और गठबंधन सरकार का प्रबंधन उनके लिए एक नया अनुभव होगा। उन्हें अपने सहयोगियों के साथ बेहतर तालमेल बनाकर सरकार की स्थिरता सुनिश्चित करनी होगी। इसके साथ ही विकास के एजेंडे को प्राथमिकता देकर जनता का विश्वास बनाए रखना होगा।
हालांकि, नरेंद्र मोदी का राजनीतिक अनुभव और नेतृत्व क्षमता इस नई चुनौती को पार करने में सहायक होंगे। भाजपा के सहयोगी दलों के साथ मिलकर एक मजबूत और स्थिर सरकार का निर्माण करना संभव है। यह समय ही बताएगा कि नरेंद्र मोदी और भाजपा इस चुनौती का सामना कैसे करते हैं और देश को विकास की दिशा में कैसे आगे बढ़ाते हैं।

