किसी भी देश पर शासन करना है तो उस देश के लोगों का ऐसा ब्रेनवाश कर दो कि वो अपने देश, अपनी संस्कृति और अपने पूर्वजों पर गर्व करना छोड़ दें। इस्लामी हमलावरों और अंग्रेजों ने भारत में इसी नीति का अनुसरण किया। हम अपने पूर्वजों पर गर्व करना भूल गए और उन अत्याचारियों को महान समझने लगे जिन्होंने भारत पर बे हिसाब जुल्म किए थे। इसी संदर्भ में दिल्ली का प्रसिद्ध क़ुतुबमीनार भी महत्वपूर्ण है, जिसे कुतुबुद्दीन ऐबक से जोड़ा जाता है।
कुतुबुद्दीन ऐबक: एक गुलाम से सुल्तान तक :
कुतुबुद्दीन ऐबक कौन था : कुतुबुद्दीन ऐबक, एक गुलाम था जिसे मोहम्मद गौरी ने खरीदा था। मोहम्मद गौरी ने कई बार भारत पर आक्रमण किया लेकिन हर बार उसे हार का सामना करना पड़ा। कुतुबुद्दीन ऐबक की रणनीति और ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की जासूसी की वजह से गौरी ने तराइन की लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान को हरा दिया और दिल्ली पर कब्जा कर लिया। इसके बाद, गौरी ने कुतुबुद्दीन ऐबक को पश्चिमी भारत की जिम्मेदारी सौंप दी।
ढाई दिन का झोपड़ा: एक मंदिर का विध्वंश : अजमेर पर कब्जा करने के बाद, मोहम्मद गौरी ने ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती को इनाम देने का वादा किया। चिश्ती ने एक भव्य मंदिर की तरफ इशारा करते हुए कहा कि इस मंदिर को तोड़कर मस्जिद बना दिया जाए। कुतुबुद्दीन ने इसे ढाई दिन में पूरा कर दिया, और इस मस्जिद को आज "अढाई दिन का झोपड़ा" के नाम से जाना जाता है।
दिल्ली के शासक के रूप में : कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1206 से 1210 तक दिल्ली पर शासन किया। इस चार साल के शासनकाल में उसने कई क्षेत्रों पर कब्जा किया और इस्लाम का प्रचार किया। उसने हांसी, कन्नौज, बदायूं, मेरठ, अलीगढ़, कालिंजर, और महोबा आदि क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की। राजस्थान के कई इलाकों में उसने आतंक मचाया।
क़ुतुबमीनार: एक विवादित धरोहर
विष्णु स्तम्भ की सच्चाई : जिसे आज क़ुतुबमीनार कहा जाता है, वह वास्तव में महाराजा वीर विक्रमादित्य की वेधशाला थी। इस वेधशाला का निर्माण खगोलशास्त्री वराहमिहर ने ग्रहों, नक्षत्रों, और तारों का अध्ययन करने के लिए किया था। इसे ध्रुव स्तम्भ या विष्णु स्तम्भ भी कहा जाता था।
27 नक्षत्र मंदिर : विष्णु स्तम्भ के आसपास 27 छोटे मंदिर थे, जो 27 नक्षत्रों के प्रतीक थे। जब कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली पर कब्जा किया, तो उसने इन मंदिरों को तोड़ दिया और विष्णु स्तम्भ का नाम बदलकर क़ुतुबमीनार रख दिया।
कुतुबुद्दीन ऐबक : निर्माता या विध्वंशक : कुतुबुद्दीन ऐबक ने क़ुतुबमीनार का निर्माण नहीं किया था। वह एक विध्वंशक था, जिसने मंदिरों को तोड़ा और उनका पुनः उपयोग मस्जिदों और अन्य इस्लामी संरचनाओं के निर्माण में किया।
कुतुबुद्दीन ऐबक की मौत :
पोलो खेलते समय मौत की कथा : इतिहास की किताबों में कहा जाता है कि कुतुबुद्दीन की मौत पोलो खेलते समय घोड़े से गिरने पर हुई। हालांकि, यह तथ्य सही नहीं है। तुर्क लोग पोलो नहीं खेलते थे, वे बुजकशी खेलते थे जिसमें एक मरे हुए बकरे को लेकर घोड़े पर दौड़ते हैं।
राजकुंवर कर्णसिंह और शुभ्रक की कहानी :
कुतुबुद्दीन ऐबक की मौत का एक और संस्करण है। उसने उदयपुर के राजा को हराने के बाद, राजकुंवर कर्णसिंह को बंदी बना लिया था। एक दिन, जब कर्णसिंह ने भागने की कोशिश की, तो शुभ्रक घोड़े ने कुतुबुद्दीन को गिरा दिया और उसे मार डाला। यह कहानी फारसी लेखकों द्वारा वर्णित की गई है।
कुतुबमीनार परिसर में ही एक अधूरी इमारत है, जिसे अलई मीनार कहा जाता है। अलाउद्दीन खिलजी ने इसे कुतुबमीनार की तरह बनाने की कोशिश की, लेकिन वह असफल रहा। यह इस बात का प्रमाण है कि कुतुबमीनार को बनाना इतना आसान नहीं था।
27 नक्षत्र मंदिरों के अवशेष :
अलई मीनार संभवतः उन 27 नक्षत्र मंदिरों के अवशेषों से बनाई जा रही थी, जिन्हें कुतुबुद्दीन ऐबक ने तोड़ा था।
हमारा निष्कर्ष :
कुतुबमीनार और कुतुबुद्दीन ऐबक की सच्चाई हमारे इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। कुतुबमीनार वास्तव में एक प्राचीन भारतीय वेधशाला थी जिसे विध्वंश कर इस्लामी संरचना के रूप में प्रस्तुत किया गया। यह जानना आवश्यक है कि इतिहास की सही जानकारी प्राप्त कर हम अपने पूर्वजों पर गर्व कर सकें और उनके योगदान को सही रूप में पहचान सकें।
कुतुबुद्दीन ऐबक, एक गुलाम से सुल्तान बनने तक की यात्रा में विध्वंशक के रूप में अधिक जाना जाता है। उसने जो भी निर्माण किया, वह अधिकांशत: तोड़े गए हिंदू और जैन मंदिरों के अवशेषों से ही था। हमें अपने इतिहास को सही परिप्रेक्ष्य में समझने की जरूरत है ताकि हम अपने देश, अपनी संस्कृति और अपने पूर्वजों पर गर्व कर सकें।