बंगाल में इस बार के चुनावों में सभी की निगाहें टिकी हुई हैं। ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के बीच घमासान जारी है। हर चरण में 70 से 80% तक मतदान हुआ है, जो यह दर्शाता है कि बंगाल के मतदाता अपने भविष्य को लेकर कितने गंभीर हैं। लेकिन यह भारी मतदान किसके लिए है? ममता के लिए या मोदी के लिए?
बंगाल की जटिल राजनीति :
बंगाल की राजनीति सदियों से जटिल रही है। यहां का मुस्लिम मतदाता जो कभी मार्क्सवादी और कांग्रेस का समर्थक था, अब तृणमूल कांग्रेस के साथ है। दूसरी ओर, हिंदू मतदाता बीजेपी की ओर झुक गए हैं, जिसे दिलीप घोष, शुभेंदु अधिकारी और नरेंद्र मोदी का समर्थन प्राप्त है। इससे स्पष्ट है कि चुनावी मुकाबला तीव्र हो चुका है।
केंद्रीय सुरक्षा बलों की भूमिका :
बंगाल में केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती ने चुनावी माहौल को बदल दिया है। टीएमसी के गुंडों का सामना करने के लिए केंद्रीय सुरक्षा बलों की मौजूदगी आवश्यक हो गई है। मोदी और अमित शाह ने ममता बनर्जी के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए उनके प्रशासन को चुनौती दी है, जिससे ममता को भी सावधानी बरतनी पड़ रही है।
अन्य राज्यों में भी तीव्र मुकाबला :
1.उत्तर प्रदेश: दो लड़के या बाबा?
उत्तर प्रदेश में भी चुनावी मुकाबला कम दिलचस्प नहीं है। समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव और कांग्रेस के प्रियंका गांधी के गठबंधन का मुकाबला मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से है। यह देखना दिलचस्प होगा कि यहां की जनता किसे अपना नेता चुनती है।
2.महाराष्ट्र: चाचा या भतीजा?
महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के बीच संघर्ष जारी है। दोनों ही नेताओं के पास अपने-अपने समर्थक हैं, और यहां का चुनावी परिणाम भी महत्वपूर्ण हो सकता है।
3.बिहार: तेजस्वी या मोदी?
बिहार में तेजस्वी यादव की राष्ट्रीय जनता दल और नरेंद्र मोदी की बीजेपी के बीच मुकाबला है। तेजस्वी युवाओं में लोकप्रिय हैं, जबकि मोदी की नीतियों का समर्थन भी बहुत है।
भारत की बागडोर कौन संभालेगा?
1.मोदी या राहुल?
जब सवाल देश की बागडोर का आता है, तो मुख्य मुकाबला नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के बीच है। मोदी के पास पिछले वर्षों के कार्यों की लंबी सूची है, जिसमें कई महत्वपूर्ण योजनाओं और सुधारों का उल्लेख है। दूसरी ओर, राहुल गांधी की कांग्रेस पार्टी लगातार आलोचना करती रही है, लेकिन ठोस विकल्पों की कमी महसूस होती है।
2.जनता का फैसला :
चुनाव का परिणाम चाहे जो भी हो, यह जनता की अदालत है और जनता का फैसला ही सर्वोपरि होता है। राजनीति के तमाम दांवपेंच और चुनावी वादों के बावजूद, जनता सब जानती है और सोच-समझकर ही अपना निर्णय लेती है।
निष्कर्ष :
इस बार के चुनाव कई मायनों में महत्वपूर्ण हैं। बंगाल से लेकर बिहार, उत्तर प्रदेश से लेकर महाराष्ट्र तक, हर राज्य में जनता की अपनी पसंद है और अपने मुद्दे हैं। चुनावी भाषण और वादों के बाद, असली परीक्षा 4 जून को होगी जब नतीजे सामने आएंगे। तब ही पता चलेगा कि दीदी जीतेगी या दादा, बाबा का राज होगा या दो लड़कों का, चाचा सफल होंगे या भतीजा, और अंततः कौन भारत की बागडोर संभालेगा – मोदी या राहुल?
इस चुनावी महासमर में, जनता की बुद्धिमत्ता और जागरूकता ही सबसे बड़ी ताकत है। और यही लोकतंत्र की सबसे बड़ी विशेषता है।