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भारत में बांग्लादेशी और रोहिंग्या प्रवासियों का बसना: मज़हबी मददगारों की भूमिका

भारत में अवैध रूप से प्रवेश करने वाले बांग्लादेशी और रोहिंग्या प्रवासियों को मज़हबी मददगारों की सहायता से बसने की प्रक्रिया को समझने के लिए, एक व्यापक और सटीक दृष्टिकोण आवश्यक है। यह लेख उन विभिन्न चरणों और तंत्रों पर प्रकाश डालता है जिनके माध्यम से ये प्रवासी भारत में स्थायी रूप से बस जाते हैं।

मुख्य बिंदु जिनपर हम चर्चा करेंगे :
  • 1.मज़हबी मददगारों की संरचना : मस्जिद नेटवर्क :
  • 2.शाही मस्जिद से जामा मस्जिद तक का सफर :
  • 3.शरण और रोजगार की व्यवस्था : वक़्फ बोर्ड की भूमिका :
  • 4.भ्रष्टाचार और राजनीतिक संरक्षण :
  • 5.राजनीतिक दलों की भूमिका : विभिन्न राजनीतिक दलों की मिलीभगत :
  • 6.धार्मिक और जनसांख्यिकीय परिवर्तन :
  • 7.हमारा निष्कर्ष :

मज़हबी मददगारों की संरचना : मस्जिद नेटवर्क :
प्रवासी जब भारत में प्रवेश करते हैं, तो सबसे पहले वे निकटतम मस्जिद में पहुंचते हैं। यह मस्जिद उन्हें बिना किसी देरी के शरण प्रदान करती है। यह सहायता मुसलमान होने के नाते उन्हें मिलती है। 

हर जिले में एक प्रमुख शाही मस्जिद होती है, जो जिले की अन्य मस्जिदों से जुड़ी होती है। जब कोई प्रवासी मस्जिद में पहुंचता है, तो उसे जिले की शाही मस्जिद में भेज दिया जाता है, जहां उसकी सुरक्षा और आगे की यात्रा की व्यवस्था की जाती है।

शाही मस्जिद से जामा मस्जिद तक का सफर :
हर जिले की शाही मस्जिद दिल्ली की जामा मस्जिद से जुड़ी होती है। जामा मस्जिद उत्तर भारत के इस्लामीकरण की दिशा में काम करती है और उसके पास हर लोक सभा क्षेत्र का और उसमें रहने वाली मुस्लिम आबादी का सटीक रिकॉर्ड होता है। 

जब कोई प्रवासी दिल्ली पहुंचता है, तो जामा मस्जिद यह सुनिश्चित करती है कि उसे उत्तर भारत के उस क्षेत्र में भेजा जाए जहां मुस्लिम आबादी कम है। मान लीजिए, उत्तर प्रदेश के झांसी जिले में मुस्लिम आबादी कम है, तो उसे झांसी जिले की शाही मस्जिद में भेज दिया जाता है।

शरण और रोजगार की व्यवस्था : वक़्फ बोर्ड की भूमिका :
शाही मस्जिद के इमाम वक़्फ बोर्ड की सहायता से प्रवासी के रहने और रोजगार की व्यवस्था करते हैं। वक़्फ बोर्ड का नेटवर्क बहुत व्यापक है और यह स्थानीय नेताओं, मुस्लिम समुदाय और सरकारी अधिकारियों के साथ मिलकर प्रवासियों को भारतीय नागरिकता के दस्तावेज़ प्राप्त करने में सहायता करता है।

भ्रष्टाचार और राजनीतिक संरक्षण :
स्थानीय नेता, चाहे वे किसी भी पार्टी के हों, प्रवासियों को बसाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कई बार भ्रष्ट अधिकारी और नेता रिश्वत लेकर बर्थ सर्टिफिकेट, आधार कार्ड, और पासपोर्ट जैसे दस्तावेज तैयार करवा देते हैं। 

कुछ प्रमुख उदाहरणों में दिल्ली के मंत्री अमानतुल्लाह खान शामिल हैं, जिन्होंने यमुना खादर क्षेत्र में रोहिंग्या मुसलमानों को अवैध तरीके से बसाया है और उन्हें सरकारी सहायता प्रदान की है।

राजनीतिक दलों की भूमिका : विभिन्न राजनीतिक दलों की मिलीभगत :
विभिन्न राजनीतिक दल, जैसे कि समाजवादी पार्टी, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, TMC, JMM, और यहां तक कि भाजपा के अल्पसंख्यक वर्ग के नेता, इन प्रवासियों को बसाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह देखा गया है कि जब किसी एक पार्टी का मुस्लिम नेता यह अवैध काम करता है, तो दूसरी पार्टी के मुस्लिम नेता भी इसमें पूरी मदद करते हैं।

धार्मिक और जनसांख्यिकीय परिवर्तन :
इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप, उत्तर प्रदेश, केरल, और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों के कई जिलों का धार्मिक समीकरण बदल चुका है। 2021-22 की जनगणना में यह देखा जा सकता है कि इन जिलों में हिंदू आबादी अल्पसंख्यक हो सकती है।

हमारा निष्कर्ष :
भारत में बांग्लादेशी और रोहिंग्या प्रवासियों के बसने की प्रक्रिया में मज़हबी मददगारों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। मस्जिद नेटवर्क, वक़्फ बोर्ड, राजनीतिक संरक्षण, और भ्रष्टाचार इन प्रवासियों को भारतीय नागरिकता दिलाने और उन्हें बसाने में सहायक होते हैं। यह एक गंभीर मुद्दा है जो भारत के धार्मिक और जनसांख्यिकीय परिदृश्य को प्रभावित कर रहा है। भारत के लोगों को इस प्रक्रिया को समझना और जागरूक होना आवश्यक है ताकि वे उचित कदम उठा सकें।