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नाथूराम गोडसे, न्यायपालिका और कांग्रेस: एक विवेचना

नाथूराम गोडसे द्वारा महात्मा गांधी की हत्या भारतीय इतिहास का एक संवेदनशील और महत्वपूर्ण अध्याय है। इस कृत्य के बाद हुई अदालती कार्यवाही और न्यायिक फैसले पर आज भी चर्चाएं होती हैं। जस्टिस जी. डी. खोसला, जिन्होंने गोडसे के मामले की सुनवाई की थी, ने अपनी पुस्तक "द मर्डर ऑफ महात्मा एन्ड अदर केसेज फ्रॉम ए जजेज़ डायरी" में इस घटना के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण टिप्पणियां की हैं। इस लेख में हम गोडसे की सुनवाई, जस्टिस खोसला के विचार, और कांग्रेस पार्टी पर उठाए गए सवालों का विवेचन करेंगे।

नाथूराम गोडसे का बयान और अदालती कार्यवाही :
गोडसे ने अदालत में अपना पक्ष पाँच घंटे के लंबे बयान के रूप में प्रस्तुत किया था, जो 90 पृष्ठों का था। जस्टिस खोसला के अनुसार, गोडसे का बयान सुनने के बाद अदालत में उपस्थित लोग स्तब्ध और विचलित थे। महिलाओं की आँखों में आँसू थे और पुरुष भी खाँसते हुए रुमाल ढूँढ रहे थे। गोडसे का यह बयान अदालत में उपस्थित लोगों पर गहरा प्रभाव डाल रहा था।

गोडसे का पक्ष और जनता की प्रतिक्रिया :
जस्टिस खोसला ने लिखा है कि यदि उस दिन अदालत में उपस्थित लोगों की ज्यूरी बनाई जाती और लोगों को गोडसे पर फैसला देने को कहा जाता, तो उन्होंने भारी बहुमत से गोडसे को ‘निर्दोष’ करार दिया होता। यह बताता है कि गोडसे का बयान कितना प्रभावशाली था और उसने लोगों के मन में क्या प्रभाव छोड़ा था।

जस्टिस खोसला की विवशता और अंतर्द्वंद :
जस्टिस खोसला ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि गोडसे का बयान सुनने के बाद वह उन्हें फांसी की सजा नहीं देना चाहते थे, लेकिन सरकार और प्रशासन के दबाव में उन्हें मजबूर होना पड़ा। यह बयान न्यायिक स्वतंत्रता और प्रशासनिक दबाव के बीच की संघर्ष को उजागर करता है। खोसला का यह मानना कि गोडसे को फांसी देकर उन्होंने एक पापकर्म किया है, उनके अंदर चल रहे अंतर्द्वंद को दर्शाता है। 

न्यायपालिका और प्रशासनिक दबाव :
यह सवाल उठता है कि न्यायपालिका कितनी स्वतंत्र है और क्या प्रशासनिक दबाव में फैसले प्रभावित हो सकते हैं? जस्टिस खोसला की यह स्वीकारोक्ति कि उन्होंने सरकार के दबाव में गोडसे को फांसी की सजा दी, इस मुद्दे को और गंभीर बना देती है। 

कांग्रेस और हिंदू समाज के प्रति नीतियाँ :
कई लोग कांग्रेस पर आरोप लगाते हैं कि उसने अपने कार्यकाल में मुस्लिम समुदाय के लिए विशेष नीतियाँ अपनाई और हिंदू समाज के साथ भेदभाव किया। इस संदर्भ में, जस्टिस खोसला की पुस्तक में कुछ ऐसे ही विचार सामने आते हैं।

कांग्रेस की नीतियाँ और हिंदू समाज :
कांग्रेस पर आरोप है कि उसने मुसलमानों के लिए विशेष नीतियाँ बनाईं जैसे पाकिस्तान का निर्माण, बांग्लादेश का निर्माण, कश्मीर में धारा 370 लागू करना, और अल्पसंख्यक बिल, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, वक़्फ़ बोर्ड, और अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय का निर्माण। इसके विपरीत, हिंदू समाज के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं किए गए। 

हिंदू कोड बिल और हिंदू समाज :
कांग्रेस द्वारा लाया गया हिंदू कोड बिल भी एक विवादित विषय है। आरोप है कि यह बिल हिंदू समाज को दोयम दर्जे का नागरिक बनाने के लिए लाया गया था। 

गोडसे का महिमामंडन और राजनीतिक ध्रुवीकरण :
नाथूराम गोडसे का महिमामंडन और उसके कार्यों को सही ठहराने का प्रयास भारतीय समाज को ध्रुवीकृत करने का एक साधन बन गया है। गोडसे के समर्थक उसे एक महान देशभक्त मानते हैं, जबकि आलोचक उसे एक हत्यारा और आतंकवादी के रूप में देखते हैं।

राजनीतिक दलों का ध्रुवीकरण :
बीजेपी और कांग्रेस जैसे प्रमुख राजनीतिक दल इस मामले में अलग-अलग रुख अपनाते हैं। बीजेपी, जो खुद को हिंदुत्व की धारा से जुड़ा हुआ मानती है, गोडसे के समर्थकों के साथ सहानुभूति रखती है। दूसरी ओर, कांग्रेस, जो गांधीवादी विचारधारा का समर्थन करती है, गोडसे की निंदा करती है।

हमारा निष्कर्ष :
नाथूराम गोडसे और महात्मा गांधी की हत्या का मामला भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। जस्टिस जी. डी. खोसला की पुस्तक में व्यक्त विचार इस घटना के प्रति न्यायिक और प्रशासनिक दृष्टिकोण को उजागर करते हैं। 

कांग्रेस की नीतियों और हिंदू समाज के प्रति उसके रवैये पर उठाए गए सवाल भी महत्वपूर्ण हैं। इस पूरे प्रकरण में गोडसे का महिमामंडन और राजनीतिक ध्रुवीकरण भारतीय समाज के लिए एक चुनौती बना हुआ है। 

भारतीय समाज को इन मुद्दों पर गहन विचार-विमर्श की आवश्यकता है ताकि हम अपनी इतिहास की गलतियों से सीख सकें और एक समावेशी और न्यायपूर्ण समाज का निर्माण कर सकें।