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हनुमानजी की अद्भुत पराक्रम भक्ति कथा...

जब रावण ने देखा कि उसकी पराजय निश्चित है तो उसने अपने एक हजार अमर राक्षसों को बुलाकर उनको रणभूमि में भेजने का आदेश दिया! ये ऐसे थे जिनको काल भी नहीं खा सका था!

अंजनानंदन हनुमान जी वानर वाहिनी के साथ श्रीराम को चिंतित देखकर बोले: प्रभो! क्या बात है? विभीषण जी ने सारी बात बतलाई! अब तो विजय असंभव है!

पवन पुत्र ने कहा: प्रभो! आप केवल मुझे आज्ञा दीजिए मैं अकेले ही जाकर रावण की अमर सेना को नष्ट कर दूँगा! कैसे हनुमान? वे तो अमर हैं! श्री राम जी ने पूछा।

प्रभो! इसकी चिंता आप न करें सेवक पर विश्वास करें!

एका एक हनुमानजी को रणभूमि में देखकर राक्षसों ने पूछा तुम कौन हो क्या हम लोगों को देखकर भय नहीं लगता जो अकेले रणभूमि में चले आये!

भयंकर युद्ध आरम्भ हुआ पवनपुत्र की मार से राक्षस रणभूमि में गिर कर ढेर होने लगे लेकिन वे फिर खड़े हो कर लड़ने लगते उन्होंने अट्टाहस लगा कर कहा हनुमान हम लोग अमर हैं हमें जीतना असंभव है! अतः अपने स्वामी के साथ लंका से लौट जावो इसी में तुम सबका कल्याण है!

आंजनेय ने कहा लौटूंगा अवश्य पर तुम्हारे कहने से नहीं! अपितु अपनी इच्छा से!

हाँ तुम सब एक साथ मिलकर मुझ पर आक्रमण करो फिर मेरा बल देखो। राक्षसों ने जैसे ही एक साथ मिलकर हनुमानजी पर आक्रमण करना चाहां वैसे ही पवनपुत्र ने उन सबको अपनी पूंछ में लपेटकर ऊपर आकाश में उछाल कर फेंक दिया! वे सब पृथ्वी कि गुरुत्वाकर्षण शक्ति जहाँ तक है वहां से भी ऊपर चले गए! चले ही जा रहे हैं!

चले मग जात सूखि गए गात: गोस्वामी तुलसीदास!

उनका शरीर सूख गया अमर होने के कारण मर सकते नहीं! अतः रावण को गाली देते हुए और कष्ट के कारण अपनी अमरता को कोसते हुए अभी भी ऊपर ही जा रहे हैं! 

इधर हनुमान जी ने आकर प्रभु के चरणों में शीश झुकाया! श्रीराम बोले: क्या हुआ हनुमान! प्रभो! उन्हें ऊपर भेजकर आ रहा हूँ!

राघव: पर वे अमर थे हनुमान! हाँ स्वामी इसलिए उन्हें जीवित ही ऊपर भेज आया हूँ अब वे कभी भी नीचे नहीं आ सकते? रावण को अब आप शीघ्रातिशीघ्र ऊपर भेजने की कृपा करें जिससे माता जानकी का आपसे मिलन और महाराज विभीषण का राजसिंहासन हो सके!

पवनपुत्र को प्रभु ने उठाकर गले लगा लिया! श्रीराम उनके ऋणी बन गए! और बोले:

हनुमानजी आपने जो उपकार किया है वह मेरे अंग अंग में ही जीर्ण शीर्ण हो जाय मैं उसका बदला न चुका सकूँ, क्योकि उपकार का बदला विपत्तिकाल में ही चुकाया जाता है!

पुत्र! तुम पर कभी कोई विपत्ति न आये!