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योगी आदित्यनाथ और माफिया मुख्तार अंसारी की कहानी !

योगी आदित्यनाथ और मुख्तार अंसारी की कहानी जानने से पहले हम आपको वर्ष 2008 में हम लेकर चलते हैं जब गुजरात के अहमदाबाद में 26 जुलाई को एक के बाद एक 70 मिनट में 21 धमाके हुए थे। धमाकों में 56 लोगों की मौत तो वहीं 200 से ज्यादा लोग इस आत्मघाती हमले में घायल हुए थे। इसी बात को लेकर उस वक्त के तत्कालीन गोरखपुर से सांसद योगी आदित्यनाथ जी चिंतित थे।

मुख्तार अंसारी और धमाको के आरोपी :
अमदाबाद बम धमाकों के कुछ आरोपी आजमगढ़ से पकड़े गए थे, आजमगढ़ उस समय माफिया, अपराधी, गैंगस्टर मुख्तार अंसारी का गढ़ था, मुख्तार तो उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुलायम सिंह यादव का संरक्षण प्राप्त था, न पुलिस का डर, न कानून का भय, सब अपनी जेब में। बड़े से बड़े रसूखदार जज, पुलिस महकमे के आला अधिकारी मुख्तार की जेब में हुआ करते थे।

योगी आदित्यनाथ जी की रैली:
उसी आजमगढ़ में गोरखपुर से तब के 3 बार के सांसद योगी आदित्यनाथ बड़ी रैली करने जा रहे थे। रैली में एक लाख से ऊपर लोगों के जुटने की तैयारी थी। साल था 2008 का और तारीख थी 7 सितंबर। उस वक्त के तत्कालीन गोरखपुर से सांसद योगी आदित्यनाथ जी का काफिला धीरे धीरे पूर्वांचल के अपराध का गढ़ आजमगढ़ की ओर बढ़ रहा था। काफिले में 100 से ऊपर कारें और 1000 से ऊपर मोटरसाइकिल। ये वही समय था जब पूर्वांचल में योगी आदित्यनाथ का उदय हो रहा था, मुख़्तार के आतंक से आतंकित हिन्दू समाज योगी आदित्यनाथ एक मसीहा के रूप में मिले।

हिन्दू युवा वाहिनी का गठन :
2004 में योगी आदित्यनाथ तीसरी बार गोरखपुर से लोकसभा चुनाव जीत चुके थे। पूर्वांचल के हिन्दू समाज को एकत्रित करने के लिए, हिन्दू समाज की रक्षा के लिए 2002 में योगी आदित्यनाथ ने "हिन्दू युवा वाहिनी" का गठन कर दिया था। एक ओर लगातार लोकसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ के जीत का अंतर बढ़ रहा था तो दूसरी ओर हिन्दू युवा वाहिनी से बड़ी संख्या में लोग जुड़ रहे थे।

योगी जी के काफिले पर हमला :
योगी आदित्यनाथ की यह लोकप्रियता न तो मुख्तार अंसारी को पसंद आ रहा था न ही मुलायम सरकार को। जब योगी 2008 में अपने काफिले के साथ आजमगढ़ की ओर बढ़ रहे थे तब उन्हें कहां पता था कुछ पल बाद ही उनके काफिले पर जानलेवा हमला होने वाला था, घात लगाए माफिया मुख्तार अंसारी के गुर्गे योगी आदित्यनाथ के काफिले का इंतजार कर रहे थे।

जैसे ही काफिला आजमगढ़ से थोड़ा पहले टकिया के पास पहुंचा दोपहर 1 बजकर 20 मिनट पर एक पत्थर काफिले की सातवीं गाड़ी पर आकर लगा। इसके बाद चारों तरफ से पत्थरों की बारिश शुरू हो गई। चंद पलों में ही पेट्रोल बम से हमला किया गया। यह एक सिंक्रनाइज हमला था, जिसकी पहले ही अच्छी तरह योजना बनाई गई थी। इससे योगी के समर्थक तितर-बितर हो गए। काफिला तीन हिस्सों में बंट गया। 6 वाहन आगे चले गए और बाकी पीछे रह गए। इसके बाद हमलावरों ने वाहनों को घेरकर हमला करना शुरू कर दिया। लेकिन उनका निशाना योगी आदित्यनाथ थे, जिन्हें वह अब तक ढूंढ नहीं पाए थे। योगी के न मिलने के कारण वह और उग्र हो गए। जब काफिले के लोगों को होश आया तो सबकी जुबान पर एक ही सवाल था-योगी कहां हैं?

योगी जी के काफिले को गाड़ी को बदलना :
हमले की सूचना मिलते ही पुलिस स्टेशनों से टीमें भेजी गईं। इस बीच आसपास के विक्रेता मदद के लिए दौड़े और गाड़ियों के आसपास सुरक्षा घेरा बना लिया। सिटी सर्किल ऑफिसर शैलेन्द्र श्रीवास्तव ने जवाबी कार्रवाई का आदेश दिया। इसमें एक शख्स मारा गया। घायलों को अस्पताल पहुंचाया गया, लेकिन योगी का अब तक कोई अता-पता नहीं था। उनकी खोजबीन और तेज कर दी गई। लेकिन योगी तो पहले ही बहुत आगे निकल चुके थे और बाकी गाड़ियों के आने का इंतजार कर रहे थे। दरअसल योगी को काफिले की पहली गाड़ी में शिफ्ट कर दिया गया था। यह सब PWD के गेस्ट हाउस में हुआ, जहां काफिला कुछ देर के लिए रुका था। अंतिम समय में हुए इस बदलाव की जानकारी हमलावरों को नहीं थी।

अंततः ईश्वर की लाठी चली :
इस घटना को आज तकरीबन 16 वर्ष बीत चुके हैं और आज वही मुख्तार अंसारी जो कभी आजमगढ़ में डर और भय का दूसरा नाम हुआ करता था, आज वही योगी आदित्यनाथ जी की सरकार में सिर्फ इस दर से हार्ट अटैक से मर गया क्योंकि उसे यह डर सता रहा था कि कहीं कोई उसे जेल में जहर देकर ना मार दे। हमारे यहां एक कहावत मशहूर है की उस परमात्मा की लाठी दिखती नही और न ही आवाज करती है लेकिन जब पड़ती है तो बहुत दर्द देती है। आज उत्तर प्रदेश जंगल राज्य से पूर्ण रूप से मुक्त होकर एक मार्गदर्शक विकसित राज्य के रूप में पूरे भारत में आगे बढ़ रहा है।