बंगाल की धरती पे हुए हिंसा को समझने के लिए कभी समय मिले तो मीरज़ाफर को पढ़ियेगा। मातृभूमि और कौम से गद्दारी कायरता फट्टूपन का जब जब इतिहास लेखन होता है। मीरज़ाफर का नाम गद्दारों की सूची में सर्वोच्च आता है। मीरज़ाफर एक अरबी खच्चर (सैलानी) था। बचपन से भारत की भव्यता और अमीरी के किस्से पढ़ के बड़ा हुआ था। जनाब बड़े हुए जवानी की दहलीज पे कदम रखे तो भारत भ्रमण पे आये और बंगाल की भव्यता सुंदरता ने उनको इतना मोहित किया कि मियां यहीं के हो के रह गए।
अब मियां मीरज़ाफर की नज़र ए इनायत हुई बंगाल के तख्त पे, उसे शक्तिशाली शौर्यशाली वैभवशाली बंगाल रियासत का सुल्तान बनने की चूल उठनी शुरू हुई।
बंगाल में उन दिनों मुगलों का राज़ था और सत्ता पे काबिज़ थे नवाब अलीवर्दी। मीरज़ाफर बोलने में काफी वाकपट्टू था अपनी वाणी से किसी को भी आकर्षित कर लेता था सो उसने नवाब अलीवर्दी से नजदीकियां बढ़ानी शुरू की। कुछ ही दिनों में मीरज़ाफर ने अलीवर्दी का भरोसा जीता और बंगाल की सेना में बतौर सैनिक भर्ती हो गया। दो एक छोटी मोटी लड़ाइयां भी लड़ी उनमें जीत हासिल की मीरज़ाफर की इस नाममात्र की वीरता वाकपट्टूता चापलूसी और चाटुकारिता से खुश हो कर अलीवर्दी ने उसे बंगाल का सेनापति बना दिया।
लेकिन सत्तालोलुप अतिमहत्त्वकांक्षी मीरज़ाफर को तो नवाब बनना था बंगाल का। इसके लिए वो आये दिन तिकड़म भिड़ाने लगा। मन ही मन योजनाओं साजिशों के कुचक्र अलीवर्दी के खिलाफ रचने लगा। एक दिन मीरज़ाफर को सूचना मिली कि मेदिनीपुर में मराठाओं ने हमला किया है। स्वघोषित वीरता की आत्ममुग्धता में चूर जनाब एक छोटी सी सेना की टुकड़ी ले के मेदिनीपुर मराठाओं को खदेड़ने के लिए कूच करते हैं।
किंतु, मेदिनीपुर पहुंचकर जब फट्टू मीरज़ाफर मराठाओं की विशाल सेना शौर्य और पराक्रम देखता है तो मियां जी का अगवाड़ा गीला और पिछवाड़ा पीला हो जाता है... दस्ते शुरू हो जाती है। मीरज़ाफर पे अब दो रास्ते थे, या तो वीरों की भांति मराठाओं से युद्ध लड़कर रणभूमि में बलिदानी हो जाये या फिर मराठाओं से रहम की भीख मांगकर जान बचाकर वापस लौट जाए। मीरज़ाफर ने दूसरा रास्ता चुना क्योंकि बलिदानी होने से वो बंगाल का नवाब कैसे बनता इसलिए उसने मराठाओं के पांव पकड़कर अपनी जान की भीख मांगी और उल्टे पाँव युद्धभूमि से लौट आया।
नवाब अलीवर्दी को जब मीरज़ाफर की दोगलापन्ति वाली हरकतों की जानकारी मिली तो उन्होंने मीरज़ाफर को हड़काते हुए बंगाल निकाला दे दिया।
मीरज़ाफर अब बदले और पश्चाताप की अग्नि में जलने लगा और नवाब अलीवर्दी को रास्ते से हटाने के लिए अताउल्लाह नामक अलीवर्दी के एक मजबूत दुश्मन से हाथ मिला लिया। अलीवर्दी को जब अपने खिलाफ इस साजिश की जानकारी मिली तो नवाब ने अताउल्लाह को मौत के घाट उतार दिया लेकिन फट्टू गद्दार मीरज़ाफर वहां भी मौत को चकमा दे के निकल गया। अपराध बोध से ग्रस्त सत्तालोलुप मीरज़ाफर ने फिर भी हार नहीं मानी। उसे किसी भी कीमत पे बंगाल के तख्त पे काबिज़ होना ही होना था।
कालांतर में एक दिन नवाब अलीवर्दी अल्लाह मियां को प्यारे हो जाते हैं... और बंगाल की सत्ता और तख्त पे काबिज़ होता है उनका शक्तिशाली पौत्र सिराजुद्दोला। भारत मे ये वो दौर था जब ईस्ट इंडिया कम्पनी का प्रवेश भारत में होता है और भारत को फतेह करने के लिए अंग्रेजों को बंगाल को फतेह करना जरूरी था। किंतु अंग्रेज अब बंगाल को कैसे फतेह करें? बंगाल में ताकतवर सिराजुद्दोला का राज़ था ब्रितानी फौजें संख्या और ताकत में बंगाल की फौजों के सामने बौनी थी। तब अंग्रेजी अफसरों ने एक योजना का ताना बाना बुना जिससे बंगाल को फतेह किया जा सके...
अंग्रेजों ने तलाश शुरू की बंगाल के एक ऐसे कायर निर्लज्ज फट्टू बिकाऊ सत्तालोलुप हरामखोर देशद्रोही और मातृभूमि के गद्दार की जो चंद सोने की अशर्फियों और तख्त की खातिर मातृभूमि से अपनी कौम से गद्दारी कर सके। और अंग्रेजों की तलाश खत्म हुई मीरज़ाफर पे आ के। 1757 ईस्वी में प्लासी का प्रथम युद्ध शुरू होता है। मुर्शिदाबाद (बंगाल) में ब्रितानी फौजें और सिराजुद्दोला की फौजें आमने सामने होती है। शक्तिशाली बंगाल की फौजें ब्रितानी फौजों को गाजर मूली की तरह काटने लगती है।
नवाब सिराजुद्दोला इस बात से आश्वस्त थे कि मीरज़ाफर उनसे मातृभूमि से और अपनी कौम से गद्दारी नहीं करेगा और अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध मे बंगाल का साथ देगा। लेकिन नीच नराधम सत्ता पिपासु गद्दार मीरज़ाफर सिराजुद्दोला की पीठ पे वार करता है और अंग्रेजों से जा मिलता है। नतीज़ा बंगाल की हार।
शेष जो हुआ इतिहास है। भारत 200 सालों तक कम्पनी का गुलाम रहा गुलामी अन्याय अत्याचार शोषण का लंबा इतिहास सबको मालूम ही है। मीरज़ाफर बेशक बंगाल का सुल्तान बन गया लेकिन नाम-मात्र का सुल्तान।अधिकार और पॉवर सब कम्पनी पे थे। मीरज़ाफर सत्ता का वफादार वो कुत्ता बन चुका था जिसके गले मे ब्रितानी पट्टा डल चुका था। 1757 से 1760 तक 3 साल मीरज़ाफर बंगाल का सुल्तान रहा अंग्रेज़ो के अत्याचार ज़ुल्म देख के अपराधबोध से ग्रस्त हो के सन 1760 में वो सड़ सड़ के जहन्नुम नशीन हो गया।
मातृभूमि कौम और अपनी आने वाली नस्लों से गद्दारी की सज़ा यही होती है। जो सज़ा मीरज़ाफर को मिली। घसीट घसीट के मरने वाली सज़ा। लेकिन हिंदुस्तान में मीरजाफरों की ना कल कमी थी न आज कमी है ना आगे कमी होगी। बंगाल की भूमि पे 275 वर्षों बाद कल एक वार फिर भ्रष्टाचारी बलात्कारी राष्ट्र का शोषण करने वाले मीरजाफर रूपी लूटेरों का जमावड़ा हुआ है।
इस देश की ईमानदार देशभक्त जनता अब 275 साल पहले वाली गलती नहीं दोहरायेगी। हिंदुस्तान की जनता अब मिजाफ़रों के मंसूबे पूरे नहीं होने देगी!!!!